- सोशल मीडिया साइट पर मिली अभिव्यक्ति की आजादी

- सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा 66 ए को रद्द किया

- अब गिरफ्तारी के लिए कोर्ट से लेनी होगी इजाजत

- लखनवाइट्स दे रहे हैं सलाह कि कमेंट करें बिंदास होकर लेकिन आहत न हों भावनाएं

LUCKNOW: विवादों में रहे आईटी एक्ट की धारा 66ए पर सुप्रीम कोर्ट ने ट्यूज्डे को बड़ा फैसला लिया है। कोर्ट ने अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लघंन मानते हुए इस धारा को रद्द कर दिया है। इस आदेश के बाद से सोशल मीडिया साइट का यूज करने वाले काफी खुश हैं। अब उन्हें खुले मंच पर ऐसा मौका मिलेगा, जिससे वह अपनी अभिव्यक्ति बिना किसी डर या भय के रख सकेंगे। मगर लखनवाइट्स का कहना है कि कमेंट की बिंदास छूट मिलना अच्छा तो है लेकिन पूरा संख्य बरतते हुए इस प्लेटफॉर्म को यूज करना चाहिए। सोशल मीडिया में कमेंट की वजह से दो छात्राओं की गिरफ्तारी के बाद इस धारा को सुप्रीम कोर्ट चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं ने सरकार पर इस कानून के दुरुपयोग का इल्जाम लगाया था।

अब कोर्ट से लेनी होगी इजाजत

सोशल मीडिया साइट पर आपत्तिजनक कमेंट या फिर किसी व्यक्ति विशेष पर की गई टिप्पणी के लिए पुलिस को उसकी कार्रवाई और गिरफ्तारी के लिए अब कोर्ट से आदेश लेना होगा। कोर्ट के आदेश के बाद भी पुलिस शिकायत पर गिरफ्तारी या अन्य कार्रवाई कर सकती है।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यकीनन लोगों को अभिव्यक्ति की आजादी मिली है। सोशल मीडिया साइट पर हम अपने विचार रखते हैं। इस पर कोई पाबंदी नहीं होनी चाहिए। हालांकि, यूजर्स को भी चाहिए की आजादी का गलत यूज न करें। सोशल मीडिया साइट पर ऐसे कमेंट न करें, जिससे कोई आहत हो रहा हो।

ममता श्रीवास्तव, प्रोफेशनल

अभिव्यक्ति की आजादी की बात तो ठीक है, लेकिन हर चीज का एक कानूनी पहलू होता है। सोशल मीडिया साइट पर अक्सर लोग ऐसे कमेंट कर देते हैं, जिससे लोगों की भावना आहत होती है। हमें मिली आजादी का ख्याल रखना होगा और ऐसे कमेंट जो समाज और व्यक्ति विशेष के विरोधी हों, उससे भी बचना होगा।

राज सैनी, स्टूडेंट

वैसे अच्छी बात है कि आईटी एक्ट 66 ए को खत्म कर दिया गया। यह एक्ट कानूनी विरोधी था। हमारे संविधान ने अगर हमें इतनी आजादी दी है तो हमारी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। सोशल साइट पर हमें ऐसे कमेंट लिखने और रोकने होंगे जिससे सोसाइटी में गलत मैसेज कनवे होता है।

श्रुति श्रीवास्तव, स्टूडेंट

आईटी एक्ट की धारा 66ए पर कानून हटाने बहुत अच्छा फैसला है। सोशल मीडिया साइट एक खुला मंच है। इस पर आप अपनी अभिव्यक्ति रख सकते हैं। इस पर प्रतिबंध मतलब आजादी छीनने जैसा है, लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है कि सोशल मीडिया साइट पर कमेंट ऐसे न हों, जिससे साम्प्रदायिक भावनाओं को ठेस पहुंचे।

अभिषेक, सोशल वर्कर।

यह एक अच्छा फैसला है। अभी तक सोशल मीडिया साइट पर सार्वजनिक मुद्दे पर कमेंट करने पर डर लगता था कि कहीं कानूनी कार्रवाई न हो जाए। अब इस कानून के रद्द करने से यह भय खत्म हो जाएगा। सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर खुलकर पब्लिक चर्चा कर सकती है। हालांकि एक पहलू यह भी है कि इसका कुछ हद तक गलत उपयोग भी किया जा सकता है।

अनुज यादव, प्रोफेशनल

सही है, बुरा नहीं है लेकिन कुछ दायरा होना आवश्यक है ताकि लोग साम्प्रदायिक मैसेज और भड़काऊ मैसेज न करें।

सत्यम सिंह कनौजिया

इस फैसले का इस्तकबाल करते हैं। ये बहुत अच्छा कदम है।

हमजा खान

सोशल साइट्स पर कमेंट्स की स्वतंत्रता गलत नहीं है। मगर हम क्या लिख रहे हैं। इसको एक दायरे में रखकर के छूट मिलती तो ज्यादा अच्छा होता। अक्सर ग‌र्ल्स को शर्मसार होना पड़ता है जो गलत है। कमेंट्स करने की आजादी की सीमा को एक दायरे में रखकर छूट देनी चाहिए क्योंकि कई बार असामाजिक तत्वों की वजह से आमजन को ठेस पहुंचती है।

प्रभाकर त्रिवेदी

ये तो अच्छा है। इसे तो होना ही था। मगर फिर भी इस पर थोड़ी पाबंदी लगानी चाहिए थी। आजादी को पर एक सीमा में।

अमर आनंद शर्मा

Posted By: Inextlive