-ईसीआर के 34 ट्रेनों होगा हेड ऑन जेनरेशन से प्रणाली से लैस

-ट्रेनों से हटाए जाएंगे जेनरेटर के कोच

PATNA : अब मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों से जेनरेटर का डिब्बा नहीं लगेगा। इसके बदले अतिरिक्त कोच जोड़ा जाएगा जिससे हर ट्रेन में सीटों की संख्या बढ़ जाएगी। इसका फायदा यात्रियों को होगा। दरअसल, पूर्व मध्य रेलवे की अधिकांश ट्रेनों में हेड ऑन जेनरेशन का इस्तेमाल होने जा रहा है। इस तकनीकी से लैस होते ही न सिर्फ यात्रियों को कंफर्म टिकट आसानी से मिलेगा बल्कि रेलवे को प्रति माह 2 करोड़ रुपए की बिजली की बचत होगी। साथ ही प्रदूषण की समस्या भी कम होगी। इस तकनीकी के माध्यम से ट्रेन के कोच में रोशनी और एसी के लिए अलग से पावर कार (जनरेटर डिब्बा) लगाने की जरूरत नहीं होगी। ईसीआर की कुछ ट्रेनों में सिस्टम लैस कर ट्रायल किया जा रहा है।

हेड ऑन जेनरेशन का होगा इस्तेमाल

लिंक हाफमैन बुश (एलएचबी) डिब्बों वाली प्रत्येक ट्रेन में एक से दो जेनरेटर बोगी लगी होती है। जिससे सभी कोच में पावर की सप्लाई की जाती है। रेलवे के अधिकारियों की माने तो जल्द ही 'हेड ऑन जेनरेशन' (एचओजी) तकनीक का इस्तेमाल होने जा रहा है। इस तकनीक में ट्रेन के ऊपर से गुजरने वाले बिजली के तारों से पावर की सप्लाई की जाएगी।

यात्रियों को मिलेगा कंफर्म टिकट

'हेड ऑन जेनरेशन' से लैस होते ही यात्रियों को प्रतीक्षा सूची में चल रहे टिकट आसानी से कंफर्म हो जाएंगे। क्योंकि जेनरेटर बोगी की जगह ट्रेनों में अतिरिक्त कोच लगाए जाएंगे। अधिकारियों की माने तो यात्रियों को यात्रा के दौरान सहुलियत के लिए रेलवे ने ये निर्णय लिया है।

-ईको फ्रेंडली होगा सिस्टम

रेलवे के अधिकारियों ने बताया कि यह प्रणाली ईको फ्रेंडली होगी। इससे वायु और ध्वनि प्रदूषण नहीं होगा। साथ ही प्रत्येक ट्रेन से हर साल कार्बन उत्सर्जन में 700 टन की कमी होगी। अधिकारियों ने बताया कि प्रत्येक शताब्दी एक्सप्रेस में दो जेनरेटर बोगियां लगायी जाती हैं। जब एचओजी प्रणाली शुरू होगी तो एसी ट्रेनों में स्टैंडबाय के लिए मात्र एक जेनरेटर बोगी की जरूरत होगी। अधिकारियों ने बताया कि उनके अनुमान के मुताबिक, जब एलएचबी डिब्बों वाली सभी ट्रेन नई तकनीक से चलने लगेंगी तो अतिरिक्त डिब्बों से हर दिन करीब चार लाख सीट उपलब्ध होंगी। इससे रेलवे की आय भी बढ़ेगी।

डीजल की खूब होगी बचत

-2

करोड़ रुपए की हर माह होगी बचत

- 34

ट्रेनों को ईसीआर इस तकनीक से करेगा लैस।

- 120

यूनिट बिजली की जरूरत होती है नॉन एसी कोच को हर घंटे।

- 40

लीटर डीजल की खपत होती है 120 यूनिट पावर सप्लाई करने में।

- 65

से 70 लीटर डीजल प्रति घंटा डीजल की खपत होती है एक एसी कोच पर।

एंड ऑन जेनरेशन सिस्टम को अपग्रेड कर हेड ऑन जेनरेशन किया जा रहा है। इस तकनीकी से लैस होते ट्रेन में बिजली सप्लाई इंजन से होगी। जेनरेटर बोगी की जगह अतिरिक्त कोच लगाए जाएंगे।

- राजेश कुमार सीपाआरओ, ईसीआर

Posted By: Inextlive