- दिव्यांगों के लिए केजीएमयू के डॉक्टर की बड़ी खोज

- 30 लाख की डिवाइस 15 हजार में बनाई, दिव्यांगों को इलाज में मिलेगा फायदा

डिवाइस की यह है खासियत

यह नई डिवाइस एक प्रकार का रिक्लाइनर है, जो मरीज को जरूरत के मुताबिक व्हीलचेयर पर ही पीछे की तरफ झुकाएगा और डॉक्टर आसानी से ऑपरेशन या अन्य ट्रीटमेंट कर सकेंगे। इसमें जरूरत के मुताबिक, लाइट और अन्य एक्विमेंट भी लगे हैं।

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LUCKNOW: व्हील चेयर पर रहने वाले दिव्यागों के लिए एक अच्छी खबर है। अब उन्हें इलाज कराने के लिए मुश्किल नहीं होगी और व्हीलचेयर पर बैठे-बैठे ही अपना इलाज करा सकेंगे। दिव्यांगों की समस्याओं को देखते हुए केजीएमयू के डॉ। भाष्कर अग्रवाल ने उनके लिए नयी डिवाइज इजाद की है। डॉ। भाष्कर ने अपनी खोज को पेटेंट कराने के लिए आवेदन भी कर दिया है।

परेशानी देख आया विचार

केजीएमयू के डेंटल में प्रास्थोडांटिक्स विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ। भाष्कर अग्रवाल ने बताया कि अक्सर मरीज आते थे और उन्हें उनकी व्हील चेयर से उतार कर डेंटल चेयर पर बिठाना पड़ता था। एक बार एक स्पाइनल कार्ड इंजरी का मरीज आया, उसे पहले व्हील चेयर से उतारकर स्ट्रेचर पर लाया गया, फिर डेंटल चेयर पर। यह प्रक्रिया इन मरीजों के लिए काफी कष्टप्रद होती है। उसकी परेशानी देख मेरे मन में विचार आया कि ऐसा कोई डिवाइस बनाई जाए कि मरीज को अपनी व्हील चेयर से उतरना न पड़े।

दो साल का प्रोजेक्ट दो माह में पूरा

डॉ। भाष्कर ने बताया कि आइडिया तो था, लेकिन फंडिंग कहां से और कैसे मिलेगी, यह बड़ी मुश्किल थी। एक दिन पीजीआई के डॉ। राजन सक्सेना से अपने आईडिया शेयर किया तो उन्होंने पेपर पर डिजाइन उतार कर लाने को कहा। मैंने उसे रात 3 बजे तक जागकर अपने आइडिया को पेपर उतार कर दिखाया तो उन्होंने हरी झंडी देते हुए डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रोजेक्ट सबमिट करने को कहा। मार्च में मैंने अपने प्रोजेक्ट का प्रजेंटेशन दिया और फंडिंग के साथ एक साल का समय मिला। लेकिन मैंने दो माह में प्रोजेक्ट पूरा करके पेटेंट के लिए भी फाइल कर दिया। इस नई डिवाइस एक प्रकार का रिक्लाइनर है, जो मरीज को जरूरत के मुताबिक व्हीलचेयर पर ही पीछे की तरफ झुकाएगा और डॉक्टर आसानी से ऑपरेशन या अन्य ट्रीटमेंट कर सकेंगे। इसमें जरूरत के मुताबिक, लाइट और अन्य एक्विमेंट भी लगे हैं।

30 लाख की डिवाइस सिर्फ 15 हजार में

डॉ। भाष्कर अग्रवाल ने बताया कि विदेशों में इससे पहले भी रिक्लाइनर उपलब्ध हैं, लेकिन उनकी कीमत 30 लाख से अधिक होती हैं। ऐसे रिक्लाइनर को सभी डॉक्टर और अस्पताल अपने यहां लगा भी नहीं सकते और इनकी डिजाइन और उपयोग काफी जटिल भी है। यही नहीं, अगर कोई खराबी हुई तो भारत में ठीक भी नहीं हो सकती। अगर इस विदेशी रिक्लाइनर को लगाया तो डॉक्टर इसकी कीमत भी मरीज से ही वसूलेंगे। जबकि अपने देश में विकसित रिक्लाइनर सिर्फ 15 हजार में ही बन गया। इसमें बिजली की खपत भी काफी कम है, जो मात्र 12 वोल्ट की बैटरी से चल सकता है। पोर्टेबल होने के कारण इसे आसानी से कहीं भी लाया और ले जाया जा सकेगा। इस प्रकार इसकी उपयोगिता शहर के साथ-साथ गांवों और कस्बों में भी होगी।

दिव्यांगों में बढ़ी हैं मुश्किलें

डॉ। भाष्कर अग्रवाल ने बताया कि अक्सर देखा गया है कि व्हीलचेयर पर रहने वाले दिव्यांग घर पर ही दवा खाकर अपने दांतों की समस्या को ठीक रखने की कोशिश करते हैं। नेशनल सैम्पल सर्वे ऑर्गनाइजेशन के अनुसार, दिव्यांग लोगों की मुख की समस्याएं खतरनाक स्तर तक पहुंच चुकी हैं। असुविधा और तकलीफ के डर के कारण उनके मुंह और शरीर की समस्याएं बढ़ती जाती हैं। उन्होंने बताया कि दिव्यांगों में भी 27 परसेंट ऐसे लोग हैं, जो चलने में असमर्थ हैं।

अन्य विभागों में होगी इलाज में आसानी

डॉ। भाष्कर के अनुसार, इस रिक्लाइनर की उपयोगिता दांत की क्लीनिक के अलावा नाक, कान, गला और आंख का विभाग, न्यूरोलॉजी विभाग, सर्जरी विभागों के अलावा ऐसे सभी विभागों में जहां पर मरीज को ऑपरेशन थिएटर में पीछे की ओर झुकाना पड़ता है, वहां काम आएगा। इन सभी विभागों में इलाज के लिए यह रिक्लाइनर क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है।

इस टीम का रहा योगदान

इस प्रोर्टेबल रिक्लाइनर का विकास केजीएमयू के डॉ। भाष्कर अग्रवाल ने साइंस एंड टेक्नालोजी विभाग नई दिल्ली के सहयोग से किया। इस प्रोजेक्ट में इंजीनियर अरुन मित्तल, डॉ। बालेंद्र प्रताप सिंह, वरुन अरोरा, वीसी प्रो। रविकांत, डॉ। अभिनव शेखर और इंजीनियर आशुतोष सिंह का विशेष योगदान रहा है।

Posted By: Inextlive