Jamshedpur: पिछले कुछ सालों में हेल्थ सेक्टर में तेजी से सुधार हुआ है पर आर्गन ट्रांसप्लांट जैसी सुविधाओं में अभी भी कोई खास इंप्रूवमेंट नहीं है. अवेयरनेस की कमी और कड़े कानूनों की वजह आर्गन डोनेशन और ट्रांसप्लांट की संख्या काफी कम है. बात सिटी की करें तो यहां किसी भी हॉस्पिटल में ऑर्गन ट्रांसप्लांट की सुविधा नहीं मौजूद है.

Organ transplantation में नहीं हुआ सुधार
कंट्री में हर साल हजारों लोगों की मौत किडनी, लीवर, लंग्स जैसी ऑर्गन्स के फेल्योर की वजह से होती है। ऑर्गन ट्रांसप्लांट के जरिए ऐसे लोगों की जान बचाई जा सकती है पर इस मामले में आज भी देश काफी पीछे है। ऑर्गन की रिक्वायरमेंट और डोनेशन्स की संख्या में बड़ा अंतर स्थिती को काफी गंभीर करता है। बात अगर किडनी ट्रांसप्लांट की करें चौकाने वाले आंकड़े सामने आते हैं। इंडियन सोसाइटी ऑफ ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन के अनुसार 1971 से लेकर 2012 तक कंट्री में सिर्फ 21287 किडनी ट्रांसप्लांटेशन हुए हैं। कुछ ऐसी ही स्थिती लीवर ट्रांसप्लांटेशन के साथ भी है। कंट्री में हर साल 1 हजार से भी कम लीवर ट्रांसप्लांट होते हैं।

Eye donations की संख्या भी चिंताजनक
आई डोनेशन को लेकर भी अवेयरनेस की काफी कमी है। नेशनल प्रोग्र्राम फॉर कंट्रोल ऑफ ब्लाइंडनेस के आंकड़ों के अनुसार कंट्री में करीब 0.12 मिलीयन कॉर्नियल ब्लाइंड पेशेंट्स हैं। वहीं हर साल बीस हजार नए केस जुट जाते हैं। पर कंट्री में हर साल सिर्फ 45 से 50 हजार आई डोनेशन होते हैं। एनपीसीबी के आंकड़ों के अनुसार 2012-13 के दौरान 47144 डोनेटेड आई का कलेक्शन किया गया। बात झारखंड की करें तो यहां 2012-13 के दौरान 500 आई डोनेशन का टार्गेट था पर यहां महज 19 आई डोनेशन हुए। सिटी में भी कुछ यही स्थिती दिखती है। 1994 से लेकर अब तक यहां रोशनी संस्था के माध्यम से 99 आई डोनेशन हुए हैं

एक साल में 50 से भी कम kidney transplant
स्टेट की एक इंपोर्टेंट सिटी होने के बावजूद जमशेदपुर में ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन की सुविधा मौजूद नहीं है। झारखंड में यह सुविधा केवल रांची स्थित अपोलो हॉस्पिटल में मौजूद है पर वहां भी डोनर्स की कमी और कानूनी अड़चनों की वजह से ट्रांसप्लांटेशन की संख्या कम है। अपोलो के पीआरओ जावेद अख्तर ने बताया कि हर साल हॉस्पिटल में करीब 30 से 40 ट्रांसप्लांट होते हैं जबकि करीब 100 से 150 पेशेंट वेटिंग लिस्ट में होते हैं। उन्होंने इसकी एक बड़ी वजह डोनर्स की कमी बताई। उन्होंने कहा कि ट्रांसप्लांटेशन की कानूनी प्रक्रिया इतनी कड़ी है कि ट्रांसप्लांटेशन एक मुश्किल काम हो जाता है।

है कई कानूनी प्रक्रियाएं
ह्यïूमन ऑर्गन के रिमूवल, स्टोरेज और ट्रांसप्लांटेशन को रेग्यूलेट करने के लिए ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्मïूमन ऑर्गन एक्ट,
1994 बनाया गया है। 2011 में इस एक्ट में अमेंडमेंट भी किया गया था। एक्ट के तहत डोनेशन की प्रक्रिया को काफी सख्त बनाया गया है। डोनेशन के लिए कई तरह की कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। हालांकि अमेंडमेंट के बाद एक्ट में कुछ बदलाव कर इस प्रक्रिया को आसान बनाने की कोशिश की गई है। एक्ट के तहत रजिस्टर्ड सभी हॉस्पिटल्स को ट्रांसप्लांट को-ऑर्डिनेटररखने को कहा गया है इसके अलावा ब्रेन डेथ सर्टिफिकेशन कमिटी के कांस्टीट्यूशन को भी सिंप्लीफाई किया गया है।

'हमारे यहां साल में करीब 30 से 40 किडनी ट्रांसप्लांट होते हैं। डोनर्स की कमी और कड़े रुल्स की वजह से थोड़ी मुश्किलें आती हैं.'
-जावेद अख्तर, पीआरओ, अपोलो हॉस्पिटल, रांची

'आई डोनेशन के प्रति अवेयरनेस की कमी है। सभी को आगे आने की जरूरत है। हमारे द्वारा इसके लिए कई कैंपेन भी चलाए जा रहे हैं.'
-रजनीश कुमार, मेंबर, एग्जिक्यूटिव मेंबर, एनईबीएआई

Report by: abhijit.pandey@inext.co.in

Posted By: Inextlive