अमेरिकी राष्ट्रपति की यात्रा से पहले यदि भारत को वाशिंगटन से किसी संकेत का इंतजार था तो बराक ओबामा ने भी खुलकर अपने इरादों का इजहार कर दिया है. राष्ट्र के नाम अपने सालाना संबोधन में ओबामा ने पाकिस्तान से लेकर पेरिस तक आतंकवाद से लडऩे का संकल्प लिया तो अर्थव्यवस्था में छाई मंदी के दुष्चक्र पर जीत हासिल करने की भी घोषणा की. अब विश्लेषकों का मानना है कि आत्मविश्वास से भरे ओबामा के साथ होने वाले समझौतों से भारत को चीन को पछाड़ने में मदद मिलेगी. मंदी खत्म होने से अमेरिकी कंपनियों में उत्पादन बढ़ेगा जिससे चीन समेत अन्य देशों से माल का आयात घटेगा.

भारत का स्वागत करता
इस बीच, अमेरिका ने भी भारत के साथ सुरक्षा, राजनीति और आर्थिक मामलों पर मिलकर काम करने की इच्छा जताई है. ह्वाइट हाउस के एक अधिकारी ने कहा है कि भविष्य में अमेरिका के लिए भारत व अहम देश साबित होगा. नाम न छापने की शर्त पर इस अधिकारी ने कहा कि अमेरिका वैश्विक मंच पर और खुद एशिया के एक मजबूत खिलाड़ी के रूप में भारत का स्वागत करता है.

अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना
अमेरिका भारत को एक ऐसे देश के रूप में देखता है, जो इसकी भविष्य की योजनाओं में काफी अहमियत रखता है. उन्होंने कहा कि हम अपना निर्यात बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना चाहते हैं, लेकिन, इसके साथ ही आर्थिक व राजनीतिक मुद्दों पर भी हमारा सहयोग बढ़ा है. ओबामा द्वारा भारत दौरे को कितनी अहमियत दी जा रही है, इसका पता इस बात से भी चलता है कि संसद में अपना सालाना संबोधन उन्होंने इस बार एक सप्ताह पहले ही दे दिया है.

झटका माना जा रहा
दक्षिण एशिया में चीन कुछ समय से भारत को घेरने की कोशिशों में लगा हुआ है. अब भारत भी अपने पड़ोसी देश को माकूल जवाब देने की तैयारी कर रहा है. श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में मङ्क्षहदा राजपक्षे की हार को चीनी कूटनीति के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है. नए राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरीसेना चीनी कंपनियों को मिले ठेकों की समीक्षा की बात कह चुके हैं. इसके साथ ही भारत एक्ट ईस्ट नीति के तहत जापान व वियतनाम के साथ अपने संबंध मजबूत करने में लगा हुआ है.

अपना रणनीतिक साझीदार
भारत की तरह इन दोनों देशों के साथ भी चीन का सीमा विवाद चल रहा है. विदेश नीति के मोर्चे पर मोदी सरकार के इस तेवर से वाशिंगटन भी प्रसन्न है. अमेरिका लंबे समय से भारत को इस क्षेत्र में अपना रणनीतिक साझीदार बनाने के लिए दबाव डाल रहा था. अब ओबामा की यात्रा से दोनों देशों के पास क्षेत्रीय संतुलन को नया रूप देने की संभावना है.

नाभिकीय करार पर वार्ता ः
असैन्य परमाणु करार से जुड़े अनसुलझे मुद्दों पर चर्चा के लिए भारत और अमेरिकी अधिकारियों के बीच बुधवार को लंदन में बैठक हुई. ओबामा की यात्रा से पहले दोनों देश लंबित मुद्दों को सुलझा लेना चाहते हैं. भारत में अमेरिका के राजदूत रिचर्ड राहुल वर्मा ने भी दोनों देशों के बीच गतिरोध सुलझ जाने की उम्मीद जताई है.

मंदी से उबर गया अमेरिकाः
ओबामा ने अर्थव्यवस्था में छाई मंदी के दुष्चक्र पर जीत हासिल करने की भी घोषणा की. उन्होंने कहा कि देश संकट के साये से निकल चुका है. उन्होंने देश में ऐसी आर्थिक नीतियों को आगे बढ़ाने पर जोर दिया जो मध्यम वर्ग की मदद करे. उन्होंने कहा कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था महंगे युद्ध के समय को पीछे छोड़ आगे निकल चुकी है. अमेरिकी अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है और वर्ष 1999 के बाद सबसे तेजी से रोजगार के अवसर पैदा कर रही है.

अमेरिकी मंदी दूर होने से भारत को होगा यह लाभः
-अमेरिकी लोगों की बचत बढऩे से आयात मांग बढ़ेगी और इससे भारत को लाभ होगा.
-सेवा व वस्तु निर्यात 2012 में 19 अरब डॉलर व 41 अरब डॉलर था जो बढ़कर 100 अरब डॉलर तक हो सकता है.
-अमेरिका में नौकरी के लिए जाने वाले भारतीयों को मिलने वाले एचबी 1 व एल--1 वीजा की संख्या बढ़ सकती है.
-प्रधानमंत्री मोदी के मेक इन इंडिया, डिजीटल इंडिया व स्वच्छ भारत अभियानों में अमेरिका बड़ा निवेश कर सकेगा.
-रक्षा व बीमा क्षेत्र में 49 फीसद एफडीआइ की अनुमति से बड़ी अमेरिकी कंपनियां भारत का रुख करेंगी.

भारत अपनी श्रेष्ठता साबित करने को उतावलाः
भारत की विकास दर को लेकर विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के आकलन से चीन चिढ़ गया है. चीन के सरकारी अखबार में बुधवार को छपे एक लेख में कहा गया है कि भारत खुद को चीन से कमतर न दिखाने के लिए प्रमाण जुटाने में जुटा हुआ है. सरकारी समाचारपत्र ग्लोबल टाइम्स में 'कम विकास दर के बावजूद आर्थिक पथ की दृढ़ता शीर्षक से छपे लेख में कहा गया है कि लंबे समय तक चीन से पिछड़ा रहा भारत कुछ क्षेत्रों में खुद को आगे दिखाने को लालायित है. चीन से कमतर न दिखने के लिए उसे प्रमाण की जरूरत पड़ रही है. लेख में कहा गया कि मीडिया द्वारा जीडीपी के आंकड़ों को इतना सुखद बताया गया कि जैसे वे उसे आसानी से हासिल करने जा रहे हैं, लेकिन चीन ने जीडीपी स्थिरता का युग बिता दिया है और चीन के लोग अब आर्थिक विकास के लिए अधिक उम्मीदें पाल रहे हैं.

Hindi News from World News Desk

Posted By: Satyendra Kumar Singh