आमतौर पर वर्षों तक मेडिकल साइंस की मोटी-मोटी किताबों को पढ़ने के बाद कोई वैज्ञानिक स्वास्थय से जुड़ी किसी मामूली समस्या का समाधान ढूंढ़ पाता है लेकिन जब कुछ ऐसा की करनामा विज्ञान से दूर-दूर तक का नाता नहीं रखने वाला कोई इंसान कर दे तो सहज भरोसा करना असंभव लगता है.


अर्जेंटीना के कार मेकैनिक जॉर्ज ओडोन ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया है. पांच बच्चों के पिता ओडोन का प्रसव की दुनिया से कुछ लेना-देना नहीं है. लेकिन उन्होंने एक ऐसे उपकरण की खोज़ की है जो दुनिया में माँ बनने वाली तमाम महिलाओं के लिए वरदान साबित हो सकता है.इस बारे में ओडोन कहते हैं, ''ऐसे विचार स्वाभाविक तरीके से आते हैं- उदाहरण के लिए जिस जगह पर मैं काम करता हूँ वहाँ अगर कोई समस्या है तो सोते समय भी वह मेरे दिमाग में चलती रहेगी और आधी रात को मैं अचानक जाग जाऊंगा और मुझे कोई समाधान सूझ जाएगा.''8 आविष्कारों के पेटेंटवैसे तो ओडोन भले ही एक मेकैनिक हैं लेकिन उनका व्यावहारिक ज्ञान दुनिया के किसी महान वैज्ञानिक से कम नहीं. साल 2005 तक उनके नाम मेकैनिक्स, स्टैबलाइजेशन बार्स, कार सस्पेंशन्स और अन्य क्षेत्रों से जुड़े आठ आविष्कारों के पेटेंट थे.


दरअसल, गैरेज में ओडोन के एक स्टाफ ने एक यू-ट्यूब वीडियो दिखाया, जिसमें एक खाली बोतल से कॉर्क को निकालते हुए दिखाया गया था. इस काम को बेहद आसान तरीके से किया गया था. बोतल को झुकाते हुए उसमें प्लास्टिक के एक बैग को डाला गया और उसे फुलाया गया. इससे बोतल के अंदर बैलून कॉर्क के चारों तरफ टाइट हो गया और उसे आसानी से बाहर खींच लिया गया.इसके बाद ओडोन ने अपने एक दोस्त कार्लोस मोडेना को घर बुलाया और उसके साथ बोतल से कॉर्क निकालने की शर्त लगाई. मोडेना ने कहा कि कॉर्क को बाहर निकालने के लिए बोतल को तोड़ना ज़रूरी है. इसके बाद ओडोन ने अपने ट्रिक से कॉर्क को बोतल से निकाल दिया.लेकिन, उस रात ओडोन अपनी पत्नी के साथ सोए हुए थे, तभी उनके दिमाग की बत्ती जली और उन्होंने सोचा कि इस तकनीक का इस्तेमाल शिशु को जन्म देने वाली महिलाओं पर आजमाया जाए तो क्या होगा.तड़के चार बजे उन्होंने पत्नी को जगाने की कोशिश की और उनको इस आइडिया के बारे में बताया. इस पर पत्नी ने कहा कि बहुत अच्छा विचार है लेकिन अभी सो जाओ. इस बारे में ओडोन कई दिनों तक सोचते रहे लेकिन उनकी बात सुनने वाला कोई नहीं था. अंततः उन्होंने अपने दोस्त मोडेना के जरिए उनके पारिवारिक प्रसव विशेषज्ञ डॉक्टर से मिलने की योजना बना ली. डॉक्टर ने इस आइडिया में न केवल रुचि दिखाई बल्कि उससे काफी प्रभावित भी हुए.प्रोटोटाइप उपकरण

इससे उत्साहित ओडोन ने एक पेटेंट रजिस्टर करवाया और वह एक प्रोटोटाइप उपकरण बनाने में जुट गए. जब एक बार एक मॉडल उपकरण तैयार हो गया तो ओडोन ने ब्यूनर्स आयर्स में सेंटर फॉर मेडिकल एजुकेशन एंड क्लिनिकल रिसर्च में डॉ. जेवियर शवार्त्जमैन से संपर्क किया.शवार्त्जमैन को भी ये विचार काफी रोचक लगे और वह ओडोन के साथ मिलकर उपकरण का विकास करने पर सहमत हो गए. साल 2008 में इस परियोजना पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की नज़र पड़ी. ब्यूनर्स आयर्स के दौरे पर आए इसके मुख्य संयोजक डॉ. मारियो मेरिआल्डी के साथ इस बारे में केवल 10 मिनट की मीटिंग तय हुई लेकिन मेरिआल्डी इससे इतना प्रभावित हुए कि यह मीटिंग दो घंटे तक खींच गई.संशयमेरिआल्डी ने कहा, ''इससे उनकी उत्सुकता बढ़ गई, लेकिन साथ ही एक संशय भी था कि सालों नहीं सदियों से इस क्षेत्र में कोई खोज़ नहीं हुई है.''आमतौर पर दुनिया में हर 10 में से एक बच्चे के जन्म के लिए बर्थिंग इंस्ट्रूमेंट फोर्सेप्स या वेंटॉज का इस्तेमाल किया जाता है.

इसके लिए शिशु के सिर पर उसे गर्भ से खींचकर बाहर निकालने वाले कैप का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें शिशु के सिर में चोट आने का खतरा रहता है. फॉर्सेप्स का विकास 16वीं शताब्दी में हुआ था. समय के अनुसार बदलावों के साथ इसका 1950 तक इस्तेमाल किया जाता रहा. उस वक्त इसके विकल्प के रूप में माल्मस्ट्रॉम एक्सट्रैटर का आविष्कार किया गया.बोतल तकनीक का अनुकरणओडोन के उपकरण में बोतल तकनीक का अनुकरण किया गया है. इसमें शिशु के सिर को घेरने के लिए एक डबल लेयर वाले प्लास्टिक को इंसर्ट किया जाता है. ओडोन का यह डिवाइस ऐसे काम करता है. इसके बाद बैग में थोड़ी हवा भरी जाती है. इस तरह फूला हुआ बैग शिशु को सिर को ठोढ़ी तक कवर कर लेता है. इससे नाक ढक जाने के बावजूद शिशु को सांस लेने में दिक्कत नहीं होती क्योंकि गर्भ में वे नाक से सांस नहीं लेते.इसके बाद शिशु को बिना किसी नुकसान या रक्तस्राव के खींचा जा सकता है.साल 2008 में ओडोन उपकरण को और परीक्षण के लिए लावा स्थित डेस मोइने यूनिवर्सिटी ले गए. यहां पर डब्ल्यूएचओ के विशेषज्ञों ने इसका विस्तृत परीक्षण किया.मिल का पत्थर
यह ओडोन के लिए मील का पत्थर साबित हुआ. उन्होंने कहा कि उन्हें भरोसा नहीं हो रहा है कि ये वैज्ञानिक मुझे उपकरण का परीक्षण कर रहे हैं. यह एक विशेष क्षण है. आने वाले समय में विकासशील देशों में इस सस्ते और आसान उपकरण से उन लाखों माँओं को राहत मिल सकती हैं जो प्रसव के दौरान पीड़ा के दौर से गुजरती हैं.दुनिया में हर साल 56 लाख शिशु जन्म लेने के तुरंत बाद मर जाते हैं. इतना ही नहीं हर साल प्रसव पीड़ा के दौरान 2.6 लाख माँएं भी अपना जीवन खो देती है. इनमें से 99 फीसदी मौतें विकासशील देशों में होती हैं. ऐसे में ओडोम का उपकरण इस दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है.

Posted By: Bbc Hindi