RANCHI: फायर ब्रिगेड की नई गाडि़यां मुख्यालय की शोभा बढ़ा रही हैं, जबकि कंडम गाडि़यों से आग बुझाने का विभाग प्रयास कर रहा है। नतीजन, आग पर काबू पाने में ज्यादा समय लग रहा है और इससे नुकसान भी बढ़ जाता है। यह खुलासा डीजे आईनेक्स्ट की टीम ने गुरुवार को किया, जब राजेंद्र नगर स्थित फायर ब्रिगेड के मुख्यालय टीम पहुंची। यहां पाया गया कि अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस तीन गाडि़यां मुख्यालय में धूल फांक रही हैं, जबकि पास में ही कंडम गाडि़यां भी लगी हुई हैं, जिनका इस्तेमाल राजधानी के विभिन्न जगहों पर लगी आग बुझाने के लिए हो रहा है। गौरतलब हो कि हाल ही में हिनू स्थित हार्डवेयर की एक दुकान में आग लगी थी, जिसपर काबू पाने में फायर ब्रिगेड के स्टाफ्स को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। इस बीच दुकान में काफी नुकसान भी हो गया। मामले में स्टेट फायर ऑफिसर बंधु उरांव ने बताया कि आठ महीने पहले ही इन तीन गाडि़यों के फेब्रिकेशन का काम कंप्लीट हुआ है। हाल ही में इन गाडि़यों को दुमका, लोहरदगा व डालटनगंज भेजना तय हुआ है। जल्द ही इन्हें भेज दिया जाएगा।

रांची के लिए सिर्फ 17 गाडि़यां, सभी जर्जर

रांची में अलग-अलग क्षेत्र में चार फायर स्टेशन बनाए गए हैं। ये स्टेशन पिस्का मोड़, आड्रे हाउस, राजेंद्र चौक और धूर्वा में स्थित हैं। इन चारों स्टेशन में केवल 17 वाटर टेंडर गाडि़यां हैं। जबकि सिर्फ एक फॉम टेंडर की गाड़ी है। फॉम टेंडर का इस्तेमाल केमिकल और तेल वाले स्थान में आग लगने पर किया जाता है। वहीं पूरे राज्य में सिर्फ एक हाइड्रोलिक गाड़ी है। जबकि पांच- छह मंजिल वाले अपार्टमेंट की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। सभी गाडि़यां जर्जर हो चुकी हैं। वहीं अगर पूरे स्टेट की बात करें तो सिर्फ 48 वाटर टेंडर से आग पर काबू पाने का प्रयास किया जा रहा है। राज्य में सवा तीन करोड़ की आबादी, में 48 गाडि़यां जरूरत से काफी कम हैं। अग्निशमन विभाग में मैनपावर की भी काफी कमी है। चारों स्टेशन मिला कर 40 से भी कम कर्मचारी हैं, जबकि स्टेट फायर ऑफिसर के अनुसार सिटी में 150 से 200 कर्मचारी की आवश्यकता है। 2009 में अंतिम बार नियुक्ति हुई थी। इसके अलावा डिपार्टमेंट में इक्विपमेंट्स की भी भारी कमी है।

स्पॉट पर होती है परेशानी

फायर ब्रिगेड के कर्मचारियों ने बताया कि आग बुझाने वाली गाडि़यां काफी पुरानी हो चुकी हैं। ऑन द स्पाट आग बुझाने में काफी परेशानी होती है। सभी गाडि़यां 15 से 17 साल पुरानी हो चुकी हैं। अगर कर्मचारियों की सूझ-बूझ न हो तो इन गाडि़यों से आग पर काबू पाया ही नहीं जा सकता। राजधानी में हाई टेक्नोलॉजी वाली गाड़ी की जरूरत है, जो तीन गाडि़यां आई थी उन्हें भी रांची से बाहर भेज दिया गया है।

स्टाफ्स की ट्रेनिंग नहीं

आग बुझाने वाले कर्मचारियों को भी समय-समय पर ट्रेनिंग की जरूरत पड़ती है। लेकिन राजधानी में इसकी कोई व्यवस्था नहीं है। यहां कर्मचारियों को मॉकड्रील तक नहीं कराया जाता है। जिससे वे नई चीजें सीख सके। धुर्वा में एक ट्रेनिंग सेंटर तो है लेकिन इसका कभी इस्तेमाल नहीं किया गया।

वर्जन :::

मुझे यहां पद संभाले दो महीने हो रहे हैं। अभी यहां की कमियों से वाकीफ हो रहा हूं। धीरे-धीरे सभी कमियों को दूर कर लिया जाएगा। मैनपॉवर की बहुत बड़ी समस्या है। संसाधनों को ऑपरेट करने के लिए भी मैनपॉवर की जरूरत पड़ती है।

-बंधु उरांव, स्टेट फायर ऑफिसर

Posted By: Inextlive