आज फादर्स डे है. दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने सैटरडे को शहर की कुछ ऐसी लेडीज से बात की जो अपने हसबैंड की डेथ या अलग होने के बाद अपने बच्चों की परवरिश एक मां के साथ-साथ पिता बन कर भी की...

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BAREILLY: समाज की ऐसी मांओ ने पति के जाने के बाद भी हार नहीं मानी. खुद के साथ ही इन्होंने अपने परिवार को भी संभाला. साथ ही बच्चों की परवरिश भी कर रही हैं. यह लेडीज शहर के लिए किसी नजीर से कम नहीं हैं. ये अपने बच्चों को मां के साथ-साथ पिता का प्यार दे रही हैं. एजुकेशन के साथ ही बच्चों की हर जरूरत का ध्यान रख रही हैं.

केस 1: हसबैंड की डेथ के बाद टूटी नहीं, संभाला परिवार
शहर के प्रेम नगर एरिया में रहने वाली शैलजा सक्सेना (59) के हसबैंड नीलेश कुमार सक्सेना की डेथ 14 मई 2000 में हो गई थी. वह पीएनबी में ऑफीसर थे. हसबैंड हसबैंड की डेथ के बाद अनु और अर्जित दोनों बच्चों की जिम्मेदारी इन पर आ गई. शैलजा सिर्फ 12वीं तक पढ़ी थीं और इनको कंप्यूटर चलाना भी नहीं आता था. इसलिए हसबैंड की जगह जॉब मिलने में काफी दिक्कतें हुई, पर इन्होंने हार नहीं मानी.

कंप्यूटर सीखना पड़ा
हसबैंड की जगह जॉब पाने के लिए शैलजा को कंप्यूटर सीखना पड़ा. हायर एजूकेशन की डिग्री न होने की वजह से इनको क्लर्क की पोस्ट मिली. इसके बाद इन्होंने बच्चों को अच्छी एजुकेशन के साथ ही उनकी हर जरूरत का ध्यान रखा. बेटी अनु को इंजीनियर बना दुबई की शादी कर दी और बेटा अर्जित लॉ की पढ़ाई कर रहा है. शैलजा बताती हैं हसबैंड की डेथ के बाद उन्हें लगा सब कुछ खत्म हो गया है. पर बच्चों से जीने की नई उम्मीद मिली. उनका ख्याला आया तो सारी मुश्किलों का हंस का सामना किया और उनको काबिल बनाया.

केस:2 बच्चों को दिया मां के साथ पिता का भी प्यार
शहर के सुभाषनगर निवासी मंजू सक्सेना की शादी कर्मचारी नगर में आमोद सक्सेना के साथ हुई थी. शादी के बाद से ससुराल वालों ने उन्हें तंग करना शुरू कर दिया. लेकिन पति ने साथ दिया और दोनों ने अलग रहकर लाइफ में काफी संघर्ष शुरू कर दिया. मंजू के एक बेटी काव्या और बेटा कुशाग्र हैं. सब कुछ ठीक हुआ तो पति की सड़क हादसे में वर्ष 2016 में मौत हो गई. मंजू उस समय दूरदर्शन केन्द्र पर प्रोग्रामर एंकर का काम करती थी. पति की मौत के बाद मंजू पर परिवार की जिम्मेदारी भी आ गई. जिस पर उन्होंने जॉब छोड़ दी. फाइनेंसियल सपोर्ट का नहीं था तो मंजू ने बिजनेस करना शुरू कर दिया.

करना पड़ा स्ट्रगल
मंजू ने कुशाग्र यूनिफार्म और एडवर्टजिंग एजेंसी ओपन की. मंजू बताती हैं कि शुरूआती दौर में बच्चों को टाइम देना और बाद में बिजनेस देखना मुश्किल सा हुआ. लेकिन जब लाइफ में अकेले ही सब कुछ संभालना था तो सारी चीजें मैनेज की. हालांकि इस दौरान बच्चों को पिता के साथ मां का भी प्यार देना मुश्किल भरा था, लेकिन फिर भी परिवार को संभाला.

केस: 3 किसी पर नहीं बल्कि खुद पर करें भरोसा
शहर के सिंधू नगर की रहने वाली सिंपल परचानी की शादी वर्ष 2001 में कानपुर के हैप्पी खत्री के साथ हुई थी. ससुराल वालों के टॉर्चर और हसबैंड को काफी समय तक बर्दाश्त किया. बाद में उन्होंने तंग आकर छह साल पहले हसबैंड से तलाक ले लिया. सिंपल के एक बेटी साक्षी और एक बेटा है. तलाक के बाद पति ने बेटे को अपने पास रख लिया. जबकि बेटी साक्षी को सिंपल के साथ जाने दिया.

कोचिंग पढ़ाकर शुरू की लाइफ
पति से तलाक के बाद अपना खर्च और बेटी की एजुकेशन के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया. सिंपल ने खुद को इंडिपिडेंट बनाने के लिए बीएड का पढ़ाई शुरू कर दी. वह अपनी बेटी साक्षी को भी इंडिपिडेंट बनाना चाहती हैं. इसके लिए अभी से किसी पर निर्भर नहीं रखना चाहती है.

फादर का नाम पूछने पर प्रॉब्लम
सिपल बताती हैं कि सिंगल लाइफ में तो काई प्रॉब्लम नहीं होती हैं लेकिन जब बेटी को लेकर या फिर सोसायटी में जाती हैं तो कई बार बेटी से पिता का नाम पूछते हैं तो प्रॉब्लम फेस करनी होती हैं. कॉलेज में भी बेटी का एडमिशन में या फिर किसी फंक्शन में इस तरह की प्रॉब्लम होती हैं लेकिन इससे खुद को और बेटी को संभाल लिया हैं. बेटी साक्षी ने अब 12 वीं एग्जाम इसी वर्ष 93 प्रतिशत से पास किया है. वह बताती हैं कि घर पर पिता की सपोर्ट हैं लेकिन अब तो खुद पर भरोसा अधिक हैं.

Posted By: Radhika Lala