पहले जो दबी ज़ुबान में कहा जाता था दोस्तों के बीच पान की दुकान पर कहा जाता था वो अब खुले-आम इंटरनेट की बैठकी में कहा जाने लगा है.


क्रिकेटर विराट कोहली और अभिनेत्री अनुष्का शर्मा पर भारतीय क्रिकेट प्रशंसकों का ग़ुबार जैसे निकला, वैसा क्रिकेट-बॉलीवुड की दुनिया में शायद पहले भी निकलता था, पर इतने ख़ुले तौर पर दिखाई-सुनाई नहीं पड़ता था.वर्ल्ड कप का एक सेमी-फाइनल भारत 19 साल पहले भी हारा था. क्रिकेट फ़ैन्स की उम्मीदें और फिर गुस्सा तब भी उफ़ान पर था. और कप्तान अज़हरुद्दीन और उनकी गर्लफ्रेंड संगीता बिजलानी उस व़क्त सुर्खियों में.मार्च 1996 में भारतीय टीम जब श्रीलंका से क़रारी हार की तरफ़ बढ़ रही थी, कुछ क्रिकेट प्रशंसकों ने तब भी अपना बदसूरत चेहरा दिखाया था. मैदान पर बोतलें फेंकी गई, मैच रोक दिया गया.इंटरनेट का लोकतंत्र


पर गॉसिप और चुटकुलों का तानों, भद्दे मज़ाक और बेवजह गुस्से में तब्दील हो जाना असहज करता है. इंटरनेट के इस ख़ुले दौर में अपनी बात कहने की आज़ादी का मतलब कुछ और ही हो चला है.गुरुवार के मैच के बाद ट्विटर, वॉट्सऐप और फेसबुक पर अनुष्का पर कुछ लोगों की टिप्पणियां बद्तमीज़ी और महिलाओं के प्रति छोटी मानसिकता दिखाती हैं.शायद ये समाज का वो आईना है, जो लोग देखना नहीं चाहते. जो आपसी बातचीत में छिपा था और इंटरनेट के लोकतंत्र में अब बिना लाग-लपेट सीना चौड़ा कर हमारे सामने खड़ा है.

निंदाबस संतोष इसमें कि ऐसे ख़्याल सामने रखनेवालों की निंदा भी ख़ूब हुई, इंटरनेट के लोकतंत्र में भद्दगी से ऊंची शायद समझदारी की आवाज़ें रहीं. अभिनेता अभिषेक बच्चन ने ट्वीट किया, “ये उस तरह के लोग हैं जिन्हें कभी गर्लफ्रेंड या पत्नी नहीं मिलेगी.”अख़बार और टीवी चैनल भी इसमें जुड़े. पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने कहा, “क्रिकेट के मामले में हमारे देशवासियों में अलग ही जुनून है, पर जब ये जुनून, भीड़ के पागलपन में बदल जाए तो ये चिंता की बात है”."ज़रूरत है हार को आराम से स्वीकार करने की और खेल में रही कमियों पर सुधार करने की."

Posted By: Satyendra Kumar Singh