-जेडएसआई की विजिट में बरैला क्षेत्र की बदहाली हुई उजागर, नहीं दिया जा रहा है ध्यान

PATNA: बिहार के प्रमुख वेटलैंट वैशाली जिले के बरैला पक्षी आश्रय स्थल अब उजाड़ हो गया है। दो दशक पहले तक यहां हजारों की तादाद में साइबेरिया और यूरोप से विदेशी पक्षी प्रवास के लिए आते थे, लेकिन अब यहां एक ही प्रवासी पक्षी नहीं दिखते हैं। अक्टूबर से फरवरी तक गुलजार रहने वाले यह पक्षी आश्रय स्थल अब वीरान सा दिखने लगा है। यहां की झील में अब मछली तक भी नहीं बनी बची है। यह खुलासा जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, पटना के द्वारा आयोजित टूर रिपोर्ट के सामने आने के बाद हुआ है।

यह एजुकेशनल टूर पटना वीमेंस कॉलेज की छात्राओं के लिए जेडएसआई पटना के सहयोग से आयोजित किया गया था। इसका नेतृत्व यहां के प्रभारी अधिकारी डॉ गोपाल शर्मा कर रहे थे। उन्होंने बताया कि करीब दो हजार एकड़ में फैले इस संरक्षित क्षेत्र में स्थानीय मछुआरों का जबरदस्त हस्तक्षेप है। बरैला के चारो ओर जाल ही जाल दिखता है, जिसके कारण मछलियां भी इसमें नहीं बची हैं।

पक्षियों को मार डालते हैं लोग

जेएएसआई की टीम ने स्थानीय लोगों से बातचीत की जिसमें यह पता चला कि रात में स्थानीय मछुआरे पक्षियों को मार डालते हैं। इसके कारण यदि कोई पक्षी आते भी हैं तो वे जिंदा नहीं बच पाते। विजिट के दौरान पाया गया कि हर 50 मीटर की दूरी पर 200 मीटर का पक्षी फंसाने का जाल पानी के सतह से एक मीटर की ऊंचाई पर लगाकर रखा गया है। पक्षी आसमान से नीचे उतरते ही इन जालों में फंस जाते हैं। डॉ गोपाल शर्मा ने बताया कि कभी यहां बड़ी संख्या में वेटलैंड की मछलियां पाई जाती थीं, लेकिन इस बार ये दिख ही नहीं रहीं। टीम ने छोटी नाव से बरैला झील का विजिट कर हालात का जायजा लिया।

पानी की कमी से हो रहा बेजान

बरैला झील में मॉनसून के समय पानी पास के नदी से आता रहा है, जिससे सालों भर यहां पानी रहता था। मानसून में हरिया काहार से जनदाहा महुआ पोखर होते हुए वाया नदी से पानी बिजरुली पंचायत में आया है। जो बिल्कुल नहर जैसा दिखाई पड़ता है। इसकी धार आगे विंदी चौक होते हुए लोमा गांव के पास से चौड़ा पाट बनकर बरैला झील में मिलता है। इस समय इस झील की स्थिति भयावह है। इस समस्या पर डॉ गोपाल शर्मा ने बताया कि यहां बांध बनाने की जरुरत है।

स्थानीय नाम मिले थे विदेशी पक्षियों को

कभी यहां साइबेरिया और यूरोप से कई प्रकार के पक्षी आते थे। उन पक्षियों को स्थानीय नामों से पहचाना और जाना जाता था। डुम्मर (नेट्टारूफाइन), खेसराज (कूट), घई (शिखी पोचर्ड), पनगुदरी (वैजूलक), लालसर, दिघौच, आदि कई प्रजातियों के पक्षी फरवरी के अंत तक यहां प्रवास करते थे।

Posted By: Inextlive