- डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के डॉक्टर्स के व्यवहार के दिखे दो रूप

-चाइल्ड वार्ड में आने वाले मासूम की उम्र कम होने पर भी एडमिट कर शुरू किया ट्रीटमेंट, बचाई जान

-ओपीडी में बुखार से पीडि़त बच्चों को दिखाने के लिए घंटों खड़ी रही महिला, डॉक्टर ने नहीं की परवाह

गाइडलाइन फॉलो न कर बचाई जान

बरेली: सैटरडे को डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के डॉक्टर्स के दो चेहरे दिखे। चाइल्ड वार्ड के डॉक्टर ने सात माह का बच्चे को एडमिट कर उसकी जान बचाई तो वहीं दूसरी और ओपीडी के टाइम में डॉक्टर लंच का बहाना करके चले गए। जबकि बाहर बुखार से तड़पते मासूम को दिखाने के लिए मां घंटों तक खड़ी रही। जब उसकी किसी ने नहीं सुनी तो वह तो एडीएसआईसी से कंप्लेन कर घर वापस लौट गई

सीवियर एनीमिक था बच्चा

शहर के किला के जखीरा मोहल्ला की रहने वाली रजिया पत्‍‌नी ताहिर ने 27 दिन पहले बेटे का जन्म दिया था। कुछ दिन बाद से ही बच्चे की हालत बिगड़ने लगी तो उन्होंने एक प्राइवेट हॉस्पिटल दिखाया। हालत में सुधार न होने पर हॉस्पिटल प्रशासन ने तीन-चार दिन बाद मासूम को रेफर कर दिया। फाइनेंसियल कंडीशन ठीक न होने कारण ताहिर सैटरडे को बच्चे को लेकर डिस्टिक्ट हॉस्पिटल के चाइल्ड वार्ड पहुंचा। जहां वार्ड इंचार्ज डेजी लाल ने बच्चे की जांच रिपोर्ट देखी। रिपोर्ट के मुताबिक बच्चा सीवियर एनीमिक और डायरिया से ग्रसित था।

गंभीर था तो नहीं किया रेफर

गाइड लाइन के मुताबिक 28 दिन से कम बच्चे को डिस्ट्रिक्ट फीमेल हॉस्पिटल के एसएनसीयू में एडमिट करना होता है, लेकिन वार्ड इंचार्ज ने बच्चे की गंभीर हालत देखते हुए उसको वहीं पर एडमिट कर ट्रीटमेंट शुरू करा दिया जिससे उसकी जान बच गई।

बच्चा सीवियर एनीमिक और डायरिया से ग्रसित था। अगर बच्चे को स्टाफ की ओर से प्राइमरी ट्रीटमेंट नहीं दिया जाता और गाइड लाइन के चलते फीमेल हॉस्पिटल भेज दिया जाता तो प्रक्रिया के पूरी होने तक उसकी जान तक जा सकती थी।

डॉ। करमेंद्र, चाइल्ड वार्ड

क्या है पूरा मामला

कोहाड़ापीर की रहने वाली शंगुफी बच्चों को बुखार होने पर सैटरडे को डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की ओपीडी पहुंची। यहां डॉ। श्री कृष्णा ड्यूटी दे रहे थे। ओपीडी के बाहर काफी पेशेंट्स की लाइन लगी हुई थी लेकिन डॉक्टर साहब आराम फरमा रहे थे। इसी लाइन में शंगुफी भी दो बच्चों को दिखाने के लिए घंटों खड़ी रही। शंगुफी ने बताया कि लाइन में लगने के बावजूद भी डॉक्टर श्री कृष्णा ने बच्चों को नहीं देखा। जब उसने डॉक्टर से बच्चों को देखने को कहा तो डॉक्टर बोले-अभी मैं खाना खाने जा रहा हूं, यह कहकर डॉक्टर ने बाहर कर दिया।

डॉक्टर के न देखने पर पीडि़ता एडीएसआई ऑफिस पहुंची जहां डॉक्टर की कंप्लेन की। इसके बाद वह घर जा ही रही थी तभी कार्यालय में तैनात क्लर्क ने बच्चों को सीनियर फिजीशियन डॉ। वागीश वैश्य के पास भेजा। जहां बच्चों को देखने के बाद उन्होंने दवा दी।

खाना खाना कहकर बाहर निकाला

दोपहर करीब 12 बजे एक घंटा लाइन में लगकर जब डॉक्टर श्रीकृष्ण के पास पहुंची तो उन्होने खाना खाने का तर्क देकर बाहर जाने को कहे दिया। बच्चों को तेज बुखार था, उन्हें बताया तो वह झल्ला पड़े। डॉक्टर की शिकायत की है।

शंगुफी, पीडि़त महिला।

मामले मेरे संज्ञान में है उसके दोनों बच्चों को फीवर था, ओपीडी के समय में लंच करने का तर्क डॉक्टर को नहीं देना चाहिए था। अगर बच्चा सीरियस था तो पहले उसे देखना चाहिए, मामले की जांच कराई जाएगी।

डॉ। टीएस आर्या, एडीएसआईसी।

Posted By: Inextlive