केवल जेनरिक दवाएं कंपलसरी करने से नहीं मिलेगी राहत, कानून बनाएं

मार्केट में कई जेनरिक दवाएं ब्रांडेड से भी अधिक हैं महंगी

ALLAHABAD: सरकार का कदम अच्छा है, उसकी नीयत भी साफ। फैसला मरीजों के हक में है, लेकिन फायदा तभी मिलेगा जब सरकार पहले यह तय कर ले कि इस देश में बिकने वाली हर दवा का दाम कोई कंपनी नहीं बल्कि सरकार तय करेगी। जिस दिन सरकार ने यह कर लिया, फिर जेनरिक और नॉन जेनरिक का लफड़ा ही नहीं रह जाएगा, क्योंकि दवा उसी रेट में पब्लिक को मिलेगी जो सरकार तय करेगी। यह राय है शहर के कुछ डॉक्टर्स और दवा व्यापारियों की जो सोमवार को दैनिक जागरण आई नेक्स्ट कार्यालय में आयोजित डिबेट का हिस्सा बने थे।

सबके रेट को कंट्रोल करे सरकार

ड्रग एसोसिएशन के पदाधिकारी परमजीत सिंह ने कहा कि आल इंडिया ड्रग एक्जीक्यूटिव की मीटिंग में प्रस्ताव रखा गया कि केवल जेनरिक कंपलसरी करने से दवाओं का रेट कम नहीं होगा। सरकार सभी प्रोडक्ट डीपीसीओ ड्रग प्राइज कंट्रोल एक्ट में लाए। वर्तमान में केवल 1800 प्रोडक्ट ही डीपीसीओ प्रोडक्ट में आते हैं।

जेनरिक दवाएं भी महंगी हैं

दवा व्यापारी तरंग अग्रवाल ने कहा कि जेनरिक के रेट और पेटेंट के रेट में डिफरेंस केवल नाम भर का है। रितेश कुमार शर्मा ने कहा कि जेनरिक कंपनी में एक मेडिकल रैप पूरे यूपी में काम करता है। फार्मा कंपनी की बात करें तो मेनकाइंड कंपनी के केवल इलाहाबाद में ही 30 से 40 मेडिकल रैप काम करते हैं। डॉ। राहुल माथुर ने कहा कि हॉस्पिटल सेटप में इसे लागू करें। न्यूरेफेलेन का इंजेक्शन दस हजार का है। एक्चुअल कास्ट ढाई सौ रुपये है। रेट इस तरह से फ्लक्चुएट न हों, पहले ये तय हो।

बाहर से ज्यादा आते हैं मानीक्यूल

डॉ। आशुतोष गुप्ता ने कहा कि जेनरिक और ब्रांडिंग दवाओं में ज्यादा अंतर नहीं है। इंडिया में ब्रांडेड दवाईयां कम हैं, जेनरिक दवाईयां ही ज्यादा हैं। रिसर्च ब्रांड का काम इंडियन कंपनी नहीं कर सकती है। इनोवेटिव ड्रग कोई कंपनी लाती है, तो उसका फायदा वह लेगी।

आए ये सुझाव

दवाओं का रेट कंट्रोल किया जाए

शहर में जेनरिक की दुकानें खोली जाएं, रिटेल काउंटर खुले

रेट कंट्रोल और दुकानें खुलने से ही मरीजों को मिलेगा लाभ

रिसर्च को बढ़ावा देना होगा

आम आदमी को लाभ मिले, यह करें

हिन्दुस्तान में पांच लाख मेडिकल रैप हैं, उनके भविष्य का भी ध्यान रखें

सरकार ने एडवाइजरी जारी की है। जीओ अभी नहीं आया है। लोग जेनरिक दवा ले सकें, इसलिए पर्चे पर कंपोजिशन के साथ ब्रांड लिखने की शुरुआत की है। अब मरीज की मर्जी जो चाहे ले।

डॉ। आशुतोष गुप्ता

सिर्फ दवा का नाम लिख दें तो कोई दवा नहीं दे सकता। हर दवा में मापदंड है। रेट का वेरिएशन है। जेनेरिक दवा नहीं मिलती है। उसमें कितनी कैल्शियम है कितनी की जरूरत है ये तय नहीं हो पाता है।

डॉ। राहुल माथुर

दवा कंपनियां डीपीसीओ से बाहर होने के लिए गजब का खेल करती हैं। एक साल्ट ऐड कर दिया। डीपीसीओ से बाहर हो गए। शुरुआत कुछ मेडिसीन से करनी चाहिए थी। लाइफ सेविंग ड्रग को बाहर रखना चाहिए।

डॉ। मोहम्मद हासिम

जेनरिक दवाओं को लेकर धारणा है कि ब्रांडेड दवाईयां ज्यादा काम करती हैं। पहले पब्लिक की यह धारणा बदलनी होगी। कई बार मरीज खुद डॉक्टर पर महंगी दवा लिखने का दबाव बनाते हैं।

डॉ। आनंद सिंह

इलाहाबाद में बड़े पैमाने पर लोकल दवाईयां बनती हैं। उस पर रोक लगानी चाहिए। बेली, काल्विन, मेडिकल कॉलेज में लोकल लेवल पर बनने वाले प्रोटीन पाउडर धड़ल्ले से बिक रहे हैं। इनकी एमआरपी ज्यादा है,

परमजीत सिंह

नए-नए साल्ट आ चुके हैं, जो केवल अपने नाम पर काम करते हैं और नाम पर ही चलते हैं। यूपी का इतना बड़ा दवा मार्केट है। इसे जेनरिक दवाओं से कवर करना पॉसिबल नहीं है।

तरंग अग्रवाल

जेनरिक दवाओं की क्वालिटी प्रॉपर तरीके से हो, इस पर ध्यान देना होगा। मॉनीक्यूल का रेंज रख दें। रेट फिक्सेसशन हो। लाइफ सेविंग ड्रग में जेनरिक है ही नहीं, तो फिर डॉक्टर्स क्या करें, यह तय हो।

रितेश कुमार शर्मा

जेनरिक के रेट और ब्रांडेड पेटेंट रेट में अंतर है। रेट घटाना होगा। कोई कंपनी 80 रुपये मार्केटिंग कर रही है। तो कोई जेनेरिक में 70 रुपये रेट रख रही है। जबकि डीपीसीओ का रेट 30 रुपये है, उसमें कमी की जाए।

पवन कुमार गुप्ता

ब्रांडेड कंपनियों की दवाएं ज्यादा इसलिए बिकती हैं, क्योंकि डॉक्टर पर्चे में केवल ब्रांड और दवा का नाम लिखते हैं। कंपोजिशन तो देखा ही नहीं। कंपोजिशन लिखा जाए तो फिर जेनरिक दवा ली जाए।

महेंद्र गोयल

ड्रग एसोसिएशन की राय लेनी चाहिए थी। डॉक्टर साल्ट लिखें, कैपिटल में दवा का कंपोजिशन लिख दें। गवर्नमेंट हॉस्पीटल में पहले इसका इम्प्लीमेंट कराया जाए।

मनीष शुक्ला

Posted By: Inextlive