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PRAYAGRAJ: सरकार चाहे जो हो, देखने में आता है कि कोर्ट का फैसला अगर सरकार व प्रशासन के मन का न हो तो उसको लागू करने में खासी देर की जाती है. आम आदमी से जुड़े ज्यादातर फैसलों में देखने में आ रहा है कि न्याय मिलने के बाद भी उसे न्याय का हक नहीं दिया जा रहा. मौजूदा सरकार के कार्यकाल में भी यह दौर जारी रहा. अधिवक्ताओं ने यह बात दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट ऑफिस में आयोजित मिलेनियल्स स्पीक प्रोग्राम के दौरान कही.

सरकार और प्रशासन में लापरवाही

अधिवक्ताओं ने कहा कि आज न्यायालयों की स्थिति चिंताजनक होती जा रही है. कोर्ट कैंपस सेटिंग का गढ़ बनते जा रहे हैं. इससे आम आदमी का भरोसा न्यायालय से कम होता जा रहा है. उन्होंने त्वरित न्याय का हवाला देते हुए कहा कि सरकार और प्रशासन की स्थिति यह बनती जा रही है कि अब तो हाईकोर्ट के ही कई आदेश लागू करने में भारी हीलाहवाली की जा रही है. इसके पीछे बड़ा कारण कोर्ट का रुख बहुत मुश्किल से सख्त होना है. सरकार और प्रशासन में न जाने क्यों यह भरोसा बढ़ता जा रहा है कि वे चाहे जिस लेवल पर लापरवाही करें, किसी अफसर के खिलाफ सख्त कार्रवाई के चांसेस बहुत कम होते हैं.

अध्यादेश से न्यायपालिका कमजोर

अधिवक्ताओं ने कहा कि जब-जब ऐसा हुआ है कि भ्रष्टाचार और नियमों की अवहेलना के मामले में कोर्ट ने सख्त फैसले सुनाए हैं, उसका व्यापक असर हुआ है. अधिवक्ताओं ने कहा कि अब केवल सख्त टिप्पणी से काम नहीं चलने वाला. कोर्ट को अपने फैसले के साथ संबंधित सरकारी अफसरों को कड़ा दंड भी देना होगा. उन्होंने एक बेहद जरूरी मुद्दे को उठाते हुए कहा कि यह देखने में आ रहा है कि सुप्रीम कोर्ट चुनिंदा मामलों में कोई फैसला सुनाती है तो सरकार उसके विपरीत जाकर अध्यादेश लाने की बात कहती है. ऐसा केवल वोट बैंक की राजनीति चमकाने के लिए किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि यह ट्रेंड न्यायपालिका को कमजोर कर रहा है.

कड़क मुद्दा

चर्चा के दौरान देश में फैले भष्टाचार पर भी अधिवक्ताओं ने अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि कहने के लिए भले ही देश में भ्रष्टाचार में कमी आई है. लेकिन सच यह है कि आज भी यह बदस्तूर कायम है. अगर आपको इसकी बानगी देखनी है तो किसी भी कचहरी में चले जाइए, आपको कई एग्जांपल्स मिल जाएंगे.

सतमोला बॉक्स

अधिवक्ताओं ने कहा कि राफेल जैसे गंभीर मामले की अगर फाइल चोरी हो जाती है तो फिर इससे बड़ी विडंबना क्या होगी? इन चीजों को लेकर सरकार से अतिरिक्त सतर्कता की उम्मीद की जाती है. अन्यथा लोगों का सरकारों पर से भरोसा उठने लगेगा.

मेरी बात

सरकार को अध्यादेश लाने की पावर दी गई है. लेकिन इसका इस्तेमाल राजनैतिक लाभ की मंशा से हो रहा है. यही कारण है कि अब कुछ मामलों में लोग सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले ही सरकार पर अध्यादेश लाने का दबाव बनाना शुरू कर देते हैं.

मो. सारिक

कॉलिंग

अध्यादेश लाने की परंपरा गलत ढंग से डाली जा रही है. यह लोकतांत्रिक ढांचे की संरचना पर प्रभाव डाल रही है. यह ट्रेंड बनता चला गया तो इसके नकारात्मक स्तर पर दूरगामी परिणाम होंगे. उच्चतम न्यायालय में लोगों की आस्था कमजोर न हो, सरकार को इसका ख्याल रखना होगा.

परवेज उस्मान

जहां तक कोर्ट के आदेश का अनुपालन न होने की परंपरा की बात है तो इस स्थिति पर गंभीर मंथन का समय आ चुका है. इन्हीं कारणों के चलते अब सिविल केसेस की संख्या भी घटती जा रही है. लोगों को लगता है कि न्याय मिल भी गया तो सरकारी अफसर उसका पालन नहीं करेंगे.

वसी अहमद

एक गलत परंपरा यह भी पड़ती जा रही है कि कोई इंस्टीट्यूशन, जिसका केस संबंधित न्यायालय में चल रहा है, उसका मुखिया उसी दौरान कोई न कोई बड़ा कार्यक्रम आयोजित करके जजेज को मुख्य अतिथि या विशिष्ट अतिथि के तौर पर बुलाकर उन्हें सम्मानित करता है. इससे पीडि़त तबके के बीच गलत मैसेज जाता है और उसे कमजोर फील कराया जाता है.

जफर इम्तियाज

मेरी नजर में कचहरी में सुरक्षा का मुद्दा महत्वपूर्ण है. कहीं भी चले जाइए जिला कचहरी परिसर को लावारिश की तरह छोड़ दिया गया है. कोई भी आए कुछ भी करके चला जाए कोई रोकने टोकने वाला नहीं है. सरकार ने कचहरी परिसर की सुरक्षा को पुख्ता बनाने के लिए कोई काम नहीं किया.

मो. असद हामिद

कचहरी परिसर की सुरक्षा का आलम यह है कि पुलिस अभिरक्षा में आने वाले कैदी भागते हैं तो कई बार वकीलों को उन्हें पकड़कर पुलिस को सौंपना पड़ा है. प्रदेशभर की जिला कचहरी की सुरक्षा में भारी लापरवाही बरती जा रही है. न्याय का मंदिर खुद की सुरक्षा के लिए ही असहाय नजर आ रहा है.

कमरुल अशफाक

कचहरी के आसपास पार्किंग की कोई व्यवस्था सरकार की ओर से नहीं की गई. कहा जाता है कि वकीलों की मनमानी के चलते ऐसा होता है. जबकि दोष वकीलों का नहीं बल्कि सरकारी सिस्टम का है. आप कोई व्यवस्था देने की सोच ही नहीं रखेंगे तो हम वकील क्या कर लेंगे ? हमें भी फिर अव्यवस्था के आलम में अपना काम मजबूरी में चलाना पड़ता है.

कुमार सिद्धार्थ

मेरी नजर में आज कोई भी ऐसी पार्टी नहीं है जो केवल राष्ट्र की बात करे. हमें देश की रक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य की बात करने वाली सरकार चाहिए. गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर की मौत कैंसर से हो गई. आज स्थिति यह है कि हर घर में एक बीमार आदमी है. हम कहां जा रहे हैं? मूल समस्याओं से हटकर हम कहां जा रहे हैं?

काशान सिद्दकी

Posted By: Vijay Pandey