RANCHI:

'बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना

आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसां होना'

मिर्जा गालिब की इन पंक्तियों से इंसानियत के फलसफे को समझा जा सकता है। लेकिन, एक बेहतर इंसान होना इतना भी मुश्किल नहीं, जितना मौजूदा दौर में इसे बना दिया गया है। कोरोना वायरस को लेकर तरह-तरह की बातें सामने आ रही हैं। वैसे तो सिटी में अभी तक एक भी कोरोना पॉजीटिव केस सामने नहीं आया है, फिरभी लोग एहतियाती तौर पर 'सोशल डिस्टेंसिंग' के रास्ते पर चल पड़े हैं। हालांकि, रांची के कुछ मानिंद शिक्षाविदों का मानना है कि इस फ्रेज को वास्तव में 'फिजिकल डिस्टेंसिंग' के रूप में समझा जाना चाहिए। यानी, इंसान अपने परिचितों से या फिर पड़ोसियों से वायरस के कारण फिजिकली दूर जरूर हो, लेकिन सोशल तरीके से दूर न हो। देश के कई हिस्सों से कोरोना के संदिग्ध मरीजों के साथ अभद्र व्यवहार किए जाने और उन्हें बेवजह परेशान किए जाने के भी मामले सामने आए हैं। ज्यादातर केसेज में जिनके साथ अभद्रता से पेश आया गया है, जांच में पाया गया कि उन्हें कोरोना जैसी बीमारी थी ही नहीं। अगर होती, तब भी मानवता का सबसे बड़ा संदेश यही है कि हम किसी के साथ अमानवीय व्यवहार न करें। कोरोना दो-चार या दस दिनों में विदा होने वाला वायरस है, लेकिन इंसानियत ता-कयामत कायम रहने वाली चीज है। इसे हर हाल में बरकरार रखना है। यहां प्रस्तुत है शहर के शिक्षाविदों की राय:

किसी के साथ भेदभाव न करें

हमें यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि यह महामारी किसी भी इंसान को चपेट में ले सकती है। आज आप जिस बीमारी के कारण दूसरों से परहेज कर रहे हैं या उनके साथ गलत व्यवहार कर रहे हैं, वही बीमारी कल को आपके साथ भी हो सकती है। ऐसी स्थिति में कोई और आपके साथ अभद्रता से पेश आएगा, तो आपके दिल पर क्या बीतेगी? हमें संकट के इस दौर में बहुत ही संयमित होकर दूसरों की सहायता करनी है। अपने इंसान होने का सबूत पेश करने का सही समय यही है।

डॉ अमर ई तिग्गा, एक्टिंग डायरेक्टर, एक्सआईएसएस

एहतियात बरतें पर न छोड़ें साथ

विपरीत परिस्थितियों में यह जरूरी होता है कि विक्टिम को अपनों का साथ मिले। हालांकि, वायरस फैलने वाली चीज है, इसलिए लोगों को बीमार व्यक्ति से दूर रहने की सलाह दी जाती है। दूसरी ओर, मामूली सर्दी-जुकाम वाले को भी कोरोना का मरीज मानकर उसके साथ सौतेला व्यवहार किया जाना बिल्कुल गलत है। हमें दूसरों का सहयोग करना चाहिए। इतना याद रखें कि समाज में जबतक सहयोग करने वाला नहीं होगा, तब तक किसी एक व्यक्ति को भी बचाया नहीं जा सकेगा।

डॉ अजीत कुमार सिंह, डायरेक्टर, केजरीवाल इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट

डरने की जरूरत नहीं, सावधान रहें

कोरोना से डरने के बजाए हमें सतर्क रहना है। ऐसा नहीं है कि हर सर्दी-जुकाम कोरोना वायरस का ही परिणाम हो। ऐसी स्थिति में हमें अपने आसपास के माहौल को लेकर सचेत रहना चाहिए। लेकिन, पैनिक जरा भी न हों। आपसी सहयोग, समझ-बूझ और सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन करके हम सभी इस महामारी पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। किसी भी व्यक्ति के साथ संदेह के आधार पर अभद्रता करना बहुत ही गलत है। इससे सभी को बचना चाहिए।

डॉ अमित कुमार पांडेय, रजिस्ट्रार, आरकेडीएफ

संकट के दौर में धैर्य जरूरी

विपरीत परिस्थितियों में धैर्य की परीक्षा होती है। हमें इस समय धीरज नहीं खोना है। हरेक व्यक्ति के साथ नॉर्मल तरीके से व्यवहार करना चाहिए। फिजिकली आप भले ही दूरी बना के रहें, लेकिन शक की बुनियाद पर किसी के साथ गलत व्यवहार की बात सोचें भी नहीं। एक-दूसरे की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहें। अफवाहों से बचें और सरकार की ओर से समय-समय पर जारी हो रही एडवायजरी का पालन जरूर करें। 22 तारीख को जनता कफ्र्यू को सफल बनाना चाहिए।

फादर अजीत खेस, प्रिंसिपल, सेंट जेवियर्स स्कूल, रांची

Posted By: Inextlive