-33 प्रतिशत होनी चाहिए ग्रीनरी, शहर में महज 7.6 प्रतिशत पौधे

-दिनोंदिन कम हो रही ग्रीनरी से बढ़ रहा हानिकारक गैसों का दबाव

मेरठ। शहर में बढ़ते डेवलपमेंट के साथ ही पॉल्यूशन लेवल भी बढ़ रहा है। वहीं, घटती हरियाली भी नए संकट की दस्तक दे रही है। नेशनल पॉलिसी के तहत किसी भी शहर में आबादी में आबादी और पेड-पौधों का रेसियो 33 प्रतिशत होना चाहिए। आंकड़ों को माने तो मेरठ में ग्रीनरी महज 7.6 प्रतिशत है। पेड़-पौधों के नष्ट होने से आबोहवा दूषित हो रही है तो वहीं कंक्रीट के जंगल लगातार फारेस्ट लैंड को निगल रहे हैं।

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वर्जन

यूपी के शहरों में ग्रीनरी और पॉपुलेशन के बीच गैप लगातार बढ़ रहा है तो वहीं यह आने वाले समय में बढ़ा खतरा भी है। मेरठ में ग्रीनरी को बढ़ाना होगा, इस बार सरकार के स्तर से पौधरोपण का लक्ष्य बढ़ाया गया है।

मुकेश कुमार, चीफ कन्जर्वेटर, वेस्ट यूपी

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इंसेट

दोगुना दूषित हो गई आबोहवा

मेरठ: उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) के नवीनतम सर्वेक्षण से पता चलता है कि मेरठ की आबोहवा में यहां के निवासियों के लिए हर सांस में 2 गुना पार्टीकुलेट मैटर (पीएम) की मात्रा अधिक है। परिमिसिबल लिमिट 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है।

ये है स्थिति

ऑटो 8500

आंकड़ों के मुताबिक, मेरठ के वायुमंडल में पार्टीकुलेट मैटर (10एमएम) की मात्रा 200 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है जो परमिसिबल लिमिट से 2 गुना है। परमिसिबल लिमिट 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। हालांकि सल्फर डाई ऑक्साइड की मात्रा 8.3 और नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड की मात्रा 61 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। दोनों ही गैसों का दबाव वातावरण पर हालांकि स्थिति नियंत्रण में है।

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वर्जन

हालांकि, वायु प्रदूषण नियंत्रण में है, हम हवा में पार्टीकुलर मैटर को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं हैं। कोयला और लकड़ी के धुएं के अलावा बेतहाशा बढ़ रहे वाहन और औद्योगिक स्मोक वातावरण को दूषित कर रहा है।

अतुलेश यादव, क्षेत्रीय प्रमुख, यूपीपीसीबी, मेरठ

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टेबिल लग जाएगी

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कंडम वाहन घोट रहे दम

मेरठ: शहर में एनसीआर से आने वाले 10 और 15 साल पुराने बीमार वाहनों की सर्वाधिक खरीद फरोख्त हो रही है। सड़कों पर फर्राटा भर रहे ये वाहन बिना फिटनेस जांच के चल रहे हैं तो इनके धुंए से दम घुट रहा है।

एक नजर

मेरठ की सडकों पर दौड़ रहे वाहनों

कामर्शिलय वाहनों पर एक नजर

टेम्पो (शहर में) 4000

टेम्पो (देहात में) 5500

बस 3000

लाइट गुड्स व्हीकल 12,400

मीडियम गुड्स व्हीकल 14,000

हैवी गुड्स व्हीकल 15,500

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विभाग लगातार फिटनेस के लिए अभियान चला रहा है। अवैध वाहनों के सडकों पर दौड़ने पर पाबंदी है। ट्रैफिक पुलिस के साथ मिलकर ऐसे वाहनों की धरपकड़ की जाती है।

-रंजीत सिंह, एआरटीओ, मेरठ

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अवैध कॉलोनियां बनी मुसीबत

शहर में अवैध कॉलोनियों का निर्माण चल रहा है। इसकी जानकारी एमडीए को भी नहीं है। गौरतलब है कि वर्ष-2008 के बाद एमडीए ने नई कॉलोनियों का सर्वे ही नहीं किया है। जबकि इन छह सालों में करीब 200 छोटी-बड़ी कॉलोनियां डेवलप हो गई हैं

मानकों को दरकिनार कर बन रही कॉलोनियां कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो गए हैं। वर्ष-2008 में एमडीए के रिकॉर्ड में 140 कॉलोनियां अनाधिकृत पाई गई थीं। बीते 7 वर्षो में 200 ऐसी कॉलोनियां डेवलप हो रही हैं, जो पूरी तरह अनाधिकृत हैं।

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अवैध कॉलोनियों का सर्वे कराया जाएगा। फिलहाल शासन के निर्देश पर अवैध कॉलोनियों के खिलाफ ध्वस्तीकरण अभियान चल रहा है। जल्द ही अवैध कॉलोनियों और निर्माणों को जमींदोज किया जाएगा।

-योगेंद्र यादव, एमडीए, वीसी

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इनसेट

प्रशासन ने ही हर ली हरियाली

जिनके हाथ रखवाली का जिम्मा था उन्हीं ने हरियाली को हर लिया। मेरठ में जिला मुख्यालय एवं पुलिस कार्यालय के आसपास 99 बड़े पेड़ 2015 में तत्कालीन डीएम पंकज यादव के निर्देश पर काटे गए थे। संकरे रास्ते को चौड़ा करने के हरियाली को वीरानी में तब्दील कर दिया गया। वन विभाग से लेकर विभिन्न विभागों ने विकास के नाम पर पेड़ों को नष्ट करने की अनुमति दी थी।

Posted By: Inextlive