सच ही कहते हैं क‍ि लहरों से डरकर नौका पर नहीं होती कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती...ये पंक्‍त‍ियां पूर्व सैनिक लक्ष्मीकांत शिर्के पर बि‍ल्‍कुल फ‍िट बैठती हैं। एक हादसे में के दाहिना हाथ व बायां पैर गंवाने के बाद भी उनके हौसलों क‍िसी मोड़ पर कमजोर नही है। पूर्व सैनिक लक्ष्मीकांत शिर्के जबरदस्‍त कार ड्राइव‍िंग करते हैं। आज कार ड्राइविंग में 75 हजार किलोमीटर की दूरी तय कर चुके हैं। वह लिम्का बुक में दर्ज होने के बाद अब गिनीज बुक में दर्ज होने की तैयारी कर रहे हैं।


गिनीज बुक रिकॉर्ड के लिए आवेदनऐसे चट्टानी जज्बे को सलाम। यह कहानी भिलाई स्टील प्लांट (बीएसपी) के कर्मचारी लक्ष्मीकांत शिर्के की है। ट्रेन हादसे में उन्हें दाहिना हाथ व बायां पैर गंवाना पड़ा। परिवार वालों पर तो मानो आफत का पहाड़ टूट पड़ा। सभी को लगा खुद को कैसे संभालेंगे लक्ष्मीकांत, मगर उन्होंने हौसला बनाए रखा। उन्होंने अपनी कमजोरियों को ही ताकत बनाया और ठान लिया कि जिंदगी से यूं हार नहीं मानेंगे। इसी हौसले ने उनका साथ दिया। परिणाम... लक्ष्मीकांत शिर्के आज कार ड्राइविंग में 75 हजार किलोमीटर की दूरी तय कर कई रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके हैं। अब गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड के लिए आवेदन प्रक्रिया शुरू है।इच्छाशक्ति से बढ़कर कुछ नहीं होता
लक्ष्मीकांत कहते हैं- मैं ऐसा रिकॉर्ड बनाना चाहता हूं, जिसे कोई तोड़ ना पाए। मूलत: महाराष्ट्र निवासी लक्ष्मीकांत शिर्के पहले फौज में थे। रिटायरमेंट के बाद बीएसपी की मर्चेंट मिल में नौकरी मिल गई। इनके संघर्षों की दास्तां 2011 से शुरू हुई। भिलाई पावर हाउस रेलवे स्टेशन पर चलती ट्रेन की चपेट में आने से वे एक हाथ व एक पैर गंवा बैठे। पूरा परिवार सदमे में डूब गया। एक साल तक बिस्तर पर पड़े रहने के बावजूद लक्ष्मीकांत हमेशा खुद को हौसला देते। मन ही मन कहते... जिंदगी तो अब शुरू हो रही है। मैं लोगों को बता देना चाहता हूं कि हौसले और इच्छाशक्ति से बढ़कर कुछ नहीं होता।सभी ने सवाल पर सवाल खड़े कर दिएलक्ष्मीकांत लौटे तो बीएसपी ने उनकी हालत देखते हुए लाइब्रेरी में काम दे दिया। वे तरह-तरह की किताबें पढ़ते। इसी दौरान उनके हाथ ऐसी किताब लगी जिसमें वल्र्ड रिकॉर्ड बनाने वालों की कहानियां सचित्र प्रकाशित थीं। जिंदगी में कुछ कर गुजरने वालों की दास्तां पढ़कर उन्हें जैसे लक्ष्य मिल गया। उन्होंने ठान लिया कि अब रुकना नहीं है। दुनिया को लक्ष्मीकांत का नया रूप दिखाना है। लक्ष्मीकांत कार ड्राइविंग के शौकीन थे। उन्होंने सोचा कि क्यों न शौक को ही सफलता की सीढ़ी बनाया जाए। मन की बात जब उन्होंने परिजनों व मित्रों को बताई तो सभी ने सवाल पर सवाल खड़े कर दिए। एक हाथ और एक पैर से ड्राइविंग


एक हाथ और एक पैर से भला कैसे ड्राइविंग कर पाओगे? हमेशा हादसे का डर बना रहेगा? आदि..। लेकिन वे कहां मानने वाले थे। लक्ष्मीकांत बताते हैं कि लोगों की बातों से वे घबराने की बजाय और मजबूत होते गए, क्योंकि वे मानते हैं कि चुनौतियां स्वीकार करना ही असल जिंदगी है। बस फिर क्या था। एक हाथ में थामी कार की स्टेयरिंग व एक पैर से क्लच-गियर। पहले ही साल 15 हजार किलोमीटर की दूरी तय कर ली। आज वे 75 हजार किलोमीटर की दूरी तय कर चुके हैं। इंडियन बुक ऑफ रिकॉर्ड, लिम्का बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड के साथ ही 2017 में इंडियाज स्टार बुक ऑफ रिकॉर्ड भी उनके नाम हो चुका है। जहां भी कार रैली होती जरूर जाते जुनून ऐसा कि छत्तीसगढ़ में जहां भी कार रैली होती है, लक्ष्मीकांत जरूर नजर आ जाते हैं। लक्ष्मीकांत के बड़े भाई बीएसपी में नौकरी करते थे। उन्होंने ही लक्ष्मीकांत को महाराष्ट्र से भिलाई बुलाया और पढ़ाया। रविशंकर यूनिवर्सिटी से समाजशास्त्र और राजनीति शास्त्र से एमए करने के बाद इलेक्ट्रिकल से आइटीआइ किया। इसके बाद 36-मराठा मीडियम रेजीमेंट में सेलेक्शन हो गया। 1980 से 1995 तक 15 साल सेना की नौकरी की। रिटायरमेंट के बाद 1996 में बीएसपी ने मर्चेंट मिल में नौकरी दी। लक्ष्मीकांत का कहना है कि मैं कभी पीछे मुड़कर नहीं देखता। एक रिकॉर्ड बनाने का जुनून सवार हो चुका है। एक हाथ-पैर नहीं, लेकिन हौसला भरपूर है। चार साल तक और नौकरी करनी है। इस बीच डेढ़ लाख किलोमीटर के आंकड़े को पार कर लेना है।

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Posted By: Shweta Mishra