उत्तर प्रदेश चुनाव में समाजवादी पार्टी का डंका बजा है और नींद राहुल गांधी की खराब हो सकती है.

चुनाव विश्लेषक मान रहे हैं कि राहुल गांधी ने काफी वक्त चुनाव प्रचार में बिताया लेकिन नतीजे उस मेहनत को नहीं दर्शाते हैं। इससे कांग्रेस पार्टी के अंदर भी राहुल की छवि पर असर पड़ सकता है। तो आखिर क्या वजह रही कि उत्तर प्रदेश में एक बार फिर राहुल गांधी रैली में जुड़ती भीड़ को अपनी पार्टी को लिए वोट में नहीं बदल पाए?

'तत्काल टिकट' पड़ा महंगावरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक भारत भूषण ने कहा कि राहुल गांधी और कॉंग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में जमीन से जुड़े नहीं रहे और इसका खमियाजा उन्हें भुगतना पड़ा है। भारत भूषण के मुताबिक राहुल गांधी का यूपी में चुनाव प्रचार 'पिकनिक' की तरह था।

भारत भूषण ने बीबीसी से विशेष बातचीत में कहा, "राहुल गांधी पिछले एक साल से ही वहां प्रचार कर रहे थे, कांग्रेस पार्टी का जमीन पर कोई संगठन नहीं है। राहुल गांधी का भी जमीन से कोई रिश्ता नहीं रहा। वो भी क्रमवार तरीके से पिकनिक की तरह वहां चले जाते थे और फिर वापस दिल्ली आ जाते थे। पार्टी में जनरल कई थे और सिपाही कम। आप मंच पर चढ़कर कितना भी गुस्सा कर लीजिए उस गुस्से को आम आदमी तक पंहुचाने वाला जरिया नहीं था."

हालांकि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कॉंग्रेस पार्टी का मत प्रतिशत पहले से बढ़ा है, लेकिन इससे भी कुछ खास असर नहीं पड़ेगा। वहीं वरिष्ठ पत्रकार नीना व्यास का कहना है, "कॉंग्रेस को बस इतना फायदा हुआ है कि पिछली बार जो आठ प्रतिशत वोट मिले थे, वो बढ़कर 10-11 प्रतिशत हो गया। लेकिन ये तो न के बराबर बढोत्तरी हुई है."

भारत भूषण मानते हैं कि आखिरी वक्त पर दूसरी पार्टियों के नेताओं को शामिल कर उन्हें टिकट देना भी कॉंग्रेस को महंगा पड़ा। उन्होंने कहा, "चुनाव में 168 ऐसे उम्मीदवार थे जो दूसरी पार्टी से भागकर आए थे, जिनको वहां टिकट नहीं मिले थे। खुद कॉंग्रेस पार्टी वाले कह रहे थे कि ये तत्काल टिकट वाले हैं। पार्टी का अपना ब्राहमण, मुस्लिम, दलित वाला जाति आधार खत्म हो चुका था इसलिए ओबीसी पॉलिटिक्स को उभारने की कोशिश की गई। लेकिन पार्टी जमीन से नहीं जुड़ी हुई थी."

अखिलेश ने बाजी मारी 

साथ ही भारत भूषण कहते हैं कि राहुल गांधी के मुकाबले समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने प्रचार में भी बेहतर प्रदर्शन किया जो नतीजों में भी झलक रहा है।

"अखिलेश ने साढ़े चार साल यूपी में मेहनत की। वो उत्तर प्रदेश में रहते भी हैं। वो सर पर लाल टोपी लगाकर घूमते रहे। इससे बूढ़े समाजवादियों को जोड़ने की कोशिश की गई और युवाओं को भी नई सोच और लैपटॉप आदि के वायदों के साथ जोड़ने में वो कामयाब रहे."

भारत भूषण का कहना है कि यूपी में लोग मायावती की सरकार को हटाना चाहते थे और उस पार्टी को वोट देना चाहते थे जो उनकी नजर में सरकार बना सकती थी। इसका फायदा भी समाजवादी पार्टी को मिला है।

कॉंग्रेस के कई नेता ऐसा कहते आए हैं कि, 'राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनेंगे'। लेकिन क्या उत्तर प्रदेश के नतीजों से उनकी छवि पर असर पड़ सकता है, इस सवाल के जवाब में भूषण कहते हैं, "बिल्कुल असर पड़ेगा। पार्टी में राहुल की बातों को वजनदार नहीं माना जाएगा। साथ ही कांग्रेस का मनोबल भी गिरेगा."

Posted By: Inextlive