यहीं सोया आजादी का वो परवाना

- गोरखपुर जेल में दी गई थी बिस्मिल जी को फांसी

- काकोरी कांड के थे षडयंत्रकारी

GORAKHPUR : न मेरे घर जन्म लिया और न ही उसने मेरी जमीं पर लड़खड़ाते हुए चलना सीखा। आजादी की लड़ाई भी लड़ी तो वह भी मुझसे दूर रहकर। मगर आज भी जब मुझे याद किया जाता है तो पहचान में पहला नाम उस दीवाने का होता है। मुझे गर्व है कि उस दीवाने ने अपनी जिंदगी का एक कीमती वक्त मेरे पास गुजारा। जन्म भले नहीं लिया मगर मौत का फंदा इसी जमीं पर चूमा। आजादी के दीवाने शहीद-ए-आजम पं। राम प्रसाद बिस्मिल को अंग्रेजों ने फांसी गोरखपुर जेल में दी थी। इस दीवाने ने हंसते-हंसते मौत को गले लगा लिया तो मेरे नाम (गोरखपुर) को इतिहास में अमर कर दिया।

अंग्रेजों से क्या मौत से भी नहीं लगता था डर

पंडित जी की फैमिली ग्वालियर में रहती थी, मगर पं। मुरलीधर के पिता पारिवारिक कलह से परेशान होकर अपनी जन्मभूमि छोड़ शाहजहांपुर आ गए। जहां मुरलीधर के घर क्क् जून क्897 को पं। रामप्रसाद बिस्मिल ने जन्म लिया। पंडित जी बचपन से ही काफी शैतान थे जिसके लिए वे अक्सर पिता से मार भी खाते थे, मगर शैतानी बंद नहीं हो रही थी। शायद वह मार उनके शरीर को मजबूत बना रही थी। पंडित जी अंग्रेजों से क्या, फांसी से भी नहीं डरते थे। जैसे ही वे किशोरावस्था में आए, उन्होंने देश को आजाद करने की ठान ली। जाकर क्रांतिकारी दल में शामिल हो गए। मैनपुरी षडयंत्र में पंडित जी भी शामिल थे, मगर यह सूचना अंग्रेजों तक पहुंच गई। जिसके बाद धरपकड़ स्टार्ट हो गई इसलिए वे वहां से भाग निकले।

काकोरी कांड को दिया था अंजाम

9 अगस्त क्9ख्भ्। यह दिन इतिहास के पन्नों में आज भी अमर है। इस दिन क्रांतिकारियों ने लखनऊ से क्ब् किमी दूर काकोरी स्टेशन पर ट्रेन से जा रहे सरकारी खजाने को लूटा था। लूट में सफल क्रांतिकारी वहां से भाग निकले, मगर धीरे-धीरे वे पुलिस के जाल में फंस गए। इस कांड के चार आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई गई। जिसमें पं। राम प्रसाद बिस्मिल भी थी। पंडित जी ने ही इस षडयंत्र की अगुवाई की थी। अंग्रेजों ने पकड़ कर पंडित जी को गोरखपुर जेल भेज दिया जहां उन्हें तन्हाई में रखा गया। अंग्रेजी अधिकारी उनसे अलग-अलग मिलने आते और क्रांतिकारियों के बारे में जानकारी लेना चाहते थे, मगर बिस्मिल जी कुछ नहीं बोलते थे। अंग्रेजों ने उन्हें अनेक तरह के दंड दिए, मगर उन्होंने सब हंसते-हंसते सह लिए।

दी गई फांसी तो रोया पूरा गोरखपुर

क्9 दिसंबर क्9ख्7. इस दिन पूरा गोरखपुर रो रहा था क्योंकि देश के एक लाल और आजादी के दीवाने पं। राम प्रसाद बिस्मिल को अंग्रेजों ने गोरखपुर जेल में फांसी पर लटका दिया। फांसी का फंदा डालने से पहले बिस्मिल जी ने अपनी उन्हीं पंक्तियों को दोहराया, जिसे आज पूरा देश बड़े फक्र से गुनगुनाता है। 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है। वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमां, हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है.'

जेल में लिखी बॉयोग्राफी

गोरखपुर जेल में बंद पं। राम प्रसाद बिस्मिल ने यहीं अपनी पूरी आत्मकथा भी लिखी। अपने दादा से लेकर अपने बचपन और जवानी की पूरी कहानी बयां की तो क्रांतिकारियों के साथ बिताए गए हर पल का जिक्र किया। उन्होंने फांसी से पहले जेल से लिखे अंतिम पत्र में अंग्रेजों को खुला चैलेंज किया था। उन्होंने कहा था कि मुझे विश्वास है कि मेरी आत्मा मातृभूमि तथा उसकी दीन संपत्ति के लिए उत्साह और ओज के साथ काम करने के लिए शीघ्र ही फिर लौट आएगी। 'यदि देशहित में मरना पड़े, मुझको सहस्त्रों बार भी। तो भी न मैं इस कष्ट को निज ध्यान में लाऊं कभी। हे ईश भारत वर्ष में शत बार मेरा जन्म हो। कारण सदा ही मृत्यु का देशोपकारक कर्म हो। मरते बिस्मिलरोशनलहरअशफाक अत्याचार से, होंगे पैदा सैकड़ों उनकी रुधिर की धार से। उनके प्रबल उदयोग से उद्धार होगा देश का। तब नाश होगा सर्वदा दुख शोक के लवलेश का.' इसके बाद फांसी के तख्ते से चिल्लाते हुए कहा कि मैं ब्रिटिश साम्राज्य शाही का नाश चाहता हूं। इस बलिदानी का ऋणी पूरा हिंदुस्तान है। जिस स्थान पर बिस्मिल जी को फांसी दी गई थी, वहां अब स्मारक बन गया है। साथ ही बिस्मिल जी के बाद गोरखपुर जेल में फांसी को ही खत्म कर दिया गया।

Posted By: Inextlive