भारत एक विविधताओं से भरा देश है ये बात हम सभी जानते हैं। यहां हर उत्सव पूरे उत्सारह से मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हें कि जहां कुल्लू और मैसूर में दशहरा बेहद भव्य तरीके से मनाया जाता है तो यहां ऐसे भी स्थान हैं जहां ये उत्सव नहीं मनाया जाता ना ही रावण दहन होता है।

कुल्लू में होगा भव्य उत्सव
कुल्लू में प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय दशहरे का 22 अक्टूबर को रघुनाथ जी की भव्य रथयात्रा के साथ आगाज होगा। हजारों लोग रघुनाथ जी के भव्य रथ को रथ मैदान से लेकर कैटल ग्राउंड तक ले जाएंगे। इसके बाद रथ को रघुनाथ जी के अस्थाई शिविर के सामने खड़ा किया जाएगा। दशहरा उत्सव के अंतिम दिन 28 अक्टूबर को फिर से रथयात्रा होगी। हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत दशहरा उत्सव का उद्घाटन करेंगे और पहली सांस्कृतिक संध्या में बतौर मुख्य अतिथि मौजूद रहेंगे। सात दिन तक चलने वाले इस उत्सव में प्रतिदिन औसतन 80 हजार से एक लाख लोग शामिल होते हैं।
मैसूर में उत्सव का माहौल
मैसूर का दशहरा भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में अपनी एक अलग पहचान रखता है। यहां दशहरा उत्सव की शुरुआत चामुंडा पहाड़ियों में विराजित मां चामुंडेश्वरी देवी की विशेष पूजा अर्चना के साथ शुरू होती है। मैसूर का दशहरा उत्सव 10 दिनों तक मनाया जाता है। इतिहास में वर्णित है कि हरिहर और बुक्का नाम के दो भाइयों ने 14वीं शताब्दी में स्थापित साम्राज्य में नवरात्रि उत्सव मनाया। लगभग 6 शताब्दी पुराने इस पर्वो को वाडेयार राजवंश के लोकप्रिय शासक कृष्णराज वाडेयार ने दशहरे का नाम दिया। समय के साथ इस उत्सव की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि वर्ष 2008 में कर्नाटक सरकार ने इसे राज्योत्सव (नाद हब्बा) का स्तर दे दिया।
दो जगहों पर नहीं होता दशहरा
जब समूचे देश में गुरुवार को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक दशहरा पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा। शहरों में जगह-जगह चल रही रामलीलाओं में रावण के पुतले का दहन होगा, लेकिन हमारे देश में दो स्थान ऐसे हैं जहां ये उत्सव नहीं होगा।  एक तो बिसरख में लोग नहीं मनाते दशहरा व रामलीला क्योंकि इसे रावण का जन्म स्थान माना जाता है और दूसरा है अंकोरवाट क्योंकि ये शिव का स्थान है और यहां मान्यता है कि रावण जैसे शिव के अनन्य भक्त के वध का उत्सव यहां नहीं होना चाहिए।

बिसरख में नहीं होता दशहरा
ग्रेटर नोएडा के बिसरख गांव में इस दिन मातम रहता है। लोग दशहरा नहीं मनाते और न ही रामलीला का मंचन करते हैं। इसकी वजह बिसरख से जुड़ी एक मान्यता है। माना जाता है कि रावण का जन्म बिसरख गांव में हुआ था। रावण के पिता विशरवा मुनि के नाम पर ही गांव का नाम पड़ा। गांव में रावण का मंदिर बना हुआ है। यहां के लोग भगवान राम की पूजा करते हैं और उनके आदर्शों को मानते हैं, लेकिन रावण को वह गलत नहीं मानते। उसे विद्वान पंडित मानते हैं, इसलिए गांव में रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है। मान्यता है कि रावण के पिता विशरवा मुनि ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बिसरख गांव में अष्टभुजा धारी शिवङ्क्षलग स्थापित कर मंदिर का निर्माण किया था। विशरवा मुनि ने घने जंगल के कारण इसे अपना तप स्थान बनाया था। इसी मंदिर पर अराधना के बाद रावण का जन्म हुआ था। गांव में अष्टभुजा धारी शिवलिंग अब भी स्थापित है। इस तरह का शिवलिंग आसपास किसी मंदिर में नहीं है।
ओंकारेश्वर में भी रावण दहन नहीं
देशभर में गुरुवार को जहां बुराई के प्रतीक रावण के पुतले का दहन कर दशहरा मनाया जाएगा, वहीं ओंकारेश्वर में रावण दहन नहीं होगा। प्राचीनकाल से चली आ रही इस परंपरा को तोडऩा अशुभ माना जाता है। ओंकारेश्वर मंदिर के प्रबंध ट्रस्टी राव देवेंद्र सिंह के अनुसार माना जाता है कि रावण भगवान शिव का अनन्य भक्त था, इस कारण रावण के साथ ही कुंभकरण व मेघनाद के पुतले तक यहां नहीं बनाए जाते।

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Posted By: Molly Seth