आई कनसर्न

- सरकारी स्कूलों में नहीं मिलता खेलों के लिए फंड

- अक्टूबर- नवंबर में विभागीय फंड से ही होते हैं खेल

मेरठ। प्रतिभा हो तो उसको तराशना भी बेहद जरूरी है, तभी हुनर को सही मुकाम मिल पाता है। कुछ ऐसे ही स्थिति जिले में सरकारी स्कूलों के बच्चों की हैं, खेलों के लिए कोई अलग से ग्रांट न होने की वजह से कई प्रतिभाएं दबी रह गई हैं।

नहीं बढ़ पाते बच्चे

सरकारी स्कूलों में 8वीं तक के बच्चों के लिए अक्टूबर-नवंबर में प्रतियोगिताएं होती हैं। करीब 24 खेलों की लिस्ट तैयार की जाती है। पंचायत लेवल से होते हुए यह प्रदेश लेवल तक यह खेल आयोजित किए जाते हैं। लेकिन जिले में खेलों की तैयारी के लिए समुचित साधन न होने की वजह से बच्चे जिला लेवल तक भी नहीं पहुंच पा रहे हैं।

नहीं हैं मैदान

जिले में करीब 1500 सरकारी स्कूल हैं, लेकिन अधिकतर स्कूलों में खेलों के मैदान नहीं हैं। 1 से आठवीं तक के बच्चों को यहां न तो कोच की सुविधा मिल पाती हैं न ही प्रॉपर खेलों के मैदान होने की वजह से उनमें खेलों के प्रति उत्साह बढ़ता है। इस बारे में स्कूलों के शिक्षकों का भी मानना हैं कि कई बच्चों में बैडमिंटन, कबड्डी, खो-खो , क्रिकेट, बॉलीवॉल जैसे खेलों को लेकर ललक होती हैं, लेकिन उन्हें सही गाइडेंस व खेलने के लिए मैदान ही नहीं मिल पाता है।

विभागीय राशि से खेल

सरकारी स्कूलों में शासन की ओर से खेलों के लिए फंड जारी नहीं किया जाता है। विभागीय राशि से ही स्कूलों में छोटे स्तर पर खेलों का आयोजन कर खानापूर्ति कर ली जाती है। खेलों में भाग लेने वाले बच्चों को प्रोत्साहन के तौर पर भी सिर्फ टाॉफियां बांट दी जाती हैं।

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पिछले दो सालों में खेलों के लिए कुछ फंड आया था। जिससे खेलों का आयोजन करवाया गया था। लेकिन खेलों के लिए पूरी व्यवस्था न होने की वजह से बच्चे खेलों के लिए प्रोत्साहित नहीं हो पाते हैं।

-वीरेंद्र कुमार, मंडलीय समन्वयक

Posted By: Inextlive