सांसदों के वेतन में बढ़ोतरी को लेकर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिल्‍कुल समर्थन में नहीं हैं। वित्त मंत्रालय की मंजूरी के बाद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पूरी प्रक्रिया पर ही सवाल खड़ा कर दिया है। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री सांसदों मई-जून से वेतन बढ़ोत्‍तरी को उचित समय नहीं मान रहे हैं। एक तरफ़ जनता जहां सरकार जनता से एलपीजी छोड़ने को कह रही है वहीं सांसदों के वेतन बढ़ने से जनता को गलत संदेश जाएगा।


कुछ ऐसी रहीं मांगे


सांसदों के वेतन में बढ़ोतरी को लेकर वित्त मंत्रालय ने मंजूरी दे दी है। सांसदों का वेतन दोगुना करने का प्रस्ताव संसद में पेश किया गया था।  इस प्रस्ताव में सांसदों का वेतन 50 हजार से एक लाख करने का प्रस्ताव रखा गया था। जिसमें सांसदों का वेतन और भत्ता मिलाकर 2 लाख 80 हज़ार करने का प्रस्ताव तैयार हुआ था। इतना ही नहीं कुछ सांसदों की यह मांग थी कि केंद्र सरकार में सचिवों की तनख्वाह से सांसदों का वेतन एक हजार रुपये ज्यादा हो और कुछ का कहना है कि मंत्री की तनख्वाह कैबिनेट सचिव से दस हजार रुपये ज्यादा हो। वहीं प्रधानमंत्री की डेढ़ गुना ज्यादा हो। ऐसे में संसद की एक स्टैंडिंग कमेटी के अध्यक्ष बीजेपी सांसद योगी आदित्यनाथ ने सांसदों का वेतन बढ़ाए जाने का एक प्रस्ताव वित्तमंत्रालय को भेजा था। इस प्रस्ताव को वित्तमंत्रालय ने स्वीकार कर लिया और इसे PMO के पास स्वीकृति के लिए भेज दिया है। मंज़ूरी के पक्ष में नहीं

ऐसे में सूत्रों की मानें तो पीएमओ फ़िलहाल मंज़ूरी देने के पक्ष में नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि यह उचित समय नहीं है कि जब सांसदों के वेतन में बढोत्तरी की जाए। सांसदों को अपना वेतन खुद ही नहीं बढ़ाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि जिस समय देश की जनता से एलपीजी सब्िसडी छोड़ने को कहा जा रहा है कि उस समय वेतन बढ़ने का गलत मैसेज जाएगा। गौरतलब है कि फिलहाल सांसदों का वेतन 50 हजार है, जबकि क्षेत्र के लिए भत्ता 45 हजार और सहायकों के लिए 15 हजार रुपये का प्रावधान है। आखिरी बार 2008 में वेतन भत्ता बढ़ा था और सदन में मिनटों में ध्वनिमत से इसे पारित कर दिया गया था।

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Posted By: Shweta Mishra