जापान यात्रा के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज टोक्‍यो में कुछ देशों की अव्‍यवहारिक नीतियों की सख्‍त आलोचना की. उन्‍होंने दूसरे देशों में अतिक्रमण करने और कहीं किसी के समुद्र क्षेत्र में घुसने जैसी कुछ देशों की विस्‍तारवादी प्रवृत्ति की भरसक निंदा की. गौरतलब है कि उनकी यह टिप्‍पणी परोक्ष रूप से चीन के खिलाफ मानी जा रही है. यहां एक और गौर करने वाली बात यह है कि चीन का जापान के साथ समुद्री विवाद है.


साधा निशानाइस दौरान मोदी ने किसी देश का नाम नहीं लिया, लेकिन उनकी इस टिप्पणी को चीन पर निशाने के रूप में देखा जा सकता है, जिसका अपने पड़ोसियों-भारत, जापान और वियतनाम सहित कुछ अन्य के साथ क्षेत्रीय विवाद है. भारत और चीन के बीच 4,000 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा है. चीन अरुणांचल प्रदेश की लगभग 90 हजार वर्ग किलोमीटर और जम्मू कश्मीर की 38 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि पर दावा करता है. इसके अतिरिक्त, पूर्वी चीन सागर में द्वीप विवाद और समुद्र के नीचे गैस भंडार के दोहन को लेकर जापान तथा चीन के बीच संबंध तनावूपर्ण हैं. चीन दक्षिण चीन सागर के 90 प्रतिशत हिस्से पर भी अपना हक जताता है, जहां तेल और गैस के भंडार बताए जाते हैं. ब्रुनेई, मलेशिया, वियतनाम, फिलीपीन और ताइवान भी दक्षिण चीन सागर के हिस्सों पर अपना दावा जताते हैं.21वीं सदी है एशिया की सदी


भारत और जापान के व्यापार जगत की हस्तियों को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि इस बात में पर्सनल से लेकर ग्लोबल कम्युनिटी तक किसी को कोई शंका या शक नहीं है कि 21वीं सदी एशिया की सदी है. ये सारी दुनिया मानती है. इसमें कोई दुविधा नहीं है, लेकिन उन्होंने कहा कि उनके मन में सवाल दूसरा है और वह सवाल यह है कि 21वीं सदी किसकी हो, इसका जवाब तो मिल चुका है, कैसी हो इसका जवाब हम लोगों को देना है. उन्होंने कहा कि वह यह मानते हैं कि 21वीं सदी कैसी हो, ये इस बात पर निर्भर करता है कि भारत और जापान के संबंध कितने गहरे बनते हैं, कितने प्रोग्रेसिव हैं. पीस एंड प्रोग्रेस के लिए कितना कमिटमेंट है. भारत और जापान के संबंध पहले एशिया पर और बाद में वैश्विक स्तर पर किस प्रकार का प्रभाव पैदा करते हैं, उसपर निर्भर करता है.'देखें कि दुनिया को विस्तारवाद बनाना है या विकासवाद'

प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया दो धाराओं में बंटी है, एक विस्तारवाद की धारा है और दूसरी विकासवाद की. अब हमें तय करना है विश्व को विस्तारवाद के चंगुल में फंसने देना है या विकासवाद के मार्ग पर ले जाकर के नईं उंचाइंयों को पाने का अवसर पैदा करना है. उन्होंने कहा कि जो बुद्ध के रास्ते पर चलते हैं, जो विकासवाद में विश्वास करते हैं वे शांति और प्रगति की गारंटी लेकर आते हैं, लेकिन आज हम चारों तरफ देख रहे हैं कि 18वीं सदी की जो स्थिति थी, वो विस्तारवाद नजर आ रहा है. किसी देश में अतिक्रमण करना, कहीं समुद्र में घुस जाना, कभी किसी देश के अंदर जाकर कब्जा करना. ये विस्तारवाद कभी भी मानव जाति का कल्याण 21वीं सदी में नहीं कर सकता है.

Posted By: Ruchi D Sharma