सूबे के पुलिस विभाग में सिपाहियों की भर्ती और उनकी नियुक्ति को लेकर नेताओं और अफसरों ने खूब दांव-पेंच खेले। नेताओं की मंशा को कागज पर उतारने के लिए उन्होंने ऐसे नियम गढ़ दिए जो बाद में मुसीबत का सबब बनते चले गये।


ashok.mishra@inext.co.inLUCKNOW:: सूबे में सत्ता परिवर्तन होने के साथ इसमें फिर बदलाव होने लगे। बीते दस सालों के दौरान सिपाही भर्ती की नियमावली को तीन बार तो बॉर्डर स्कीम में चार बार बदलाव हो चुका है। नियमावली बनाने वाले आईएएस और आईपीएस अफसर ऐसी ठोस नीति नहीं बना सके जिससे सिपाहियों की भर्ती और तैनाती में कोई विवाद न उत्पन्न हो। यही वजह है कि अक्सर यही कमियां पुलिस विभाग की बदनामी का सबब बन जाती हैं। सपा ने दो बार बदली नियमावली


दो साल पहले सपा सरकार में सिपाहियों की भर्ती करने की कवायद शुरू हुई तो राज्य सरकार ने बिना परीक्षा भर्ती करने का ऐलान कर दिया। आनन-फानन में अधिकारियों ने भी सरकार की मंशा को पूरा करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। बाकायदा नई नियमावली बनाई गयी जिसमें सिपाहियों की भर्ती के लिए हाईस्कूल और इंटरमीडिएट के अंकों और शारीरिक दक्षता परीक्षा को ही आधार बना दिया गया। इससे पहले सपा सरकार ने सिपाहियों की भर्ती में होने वाली दौड़ को भी घटाकर आधा कर दिया था। सिपाही भर्ती नियमावली में पांच साल के भीतर हुए इन दो बदलावों ने फोर्स पर खासा असर डाला। कुछ ऐसा ही हाल इससे पहले बसपा सरकार में भी हुआ और सिपाही भर्ती की नियमावली को बदल दिया गया हालांकि यह कवायद सपा सरकार में डीआईजी रेंज स्तर पर की गयी सिपाहियों की भर्ती में हुए कथित घोटाले के बाद की गयी थी। इन भर्तियों की बसपा सरकार ने जांच भी कराई थी। बसपा ने बनाई थी नियमावलीदरअसल मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री रहने के दौरान डीआईजी रेंज स्तर से सिपाहियों की भर्ती की गयी थी। इसे लेकर खासा विवाद भी हुआ था और सत्ता परिवर्तन के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने इसकी उच्चस्तरीय जांच भी कराई थी। इसके बाद मायावती ने सिपाही भर्ती की नई नियमावली बनाने का जिम्मा दो वरिष्ठ आईपीएस अफसरों को सौंपा। उन्होंने जो नियमावली बनाई, उसके मुताबिक भर्तियां भी की गयी। यह वह दौर था जब सिपाही भर्ती में पारदर्शिता के लिए हाईटेक उपकरणों का सहारा लिया गया। शारीरिक दक्षता परीक्षा के मानक सेना भर्ती के मुताबिक बनाए गये हालांकि बाद में इसकी वजह से कई अभ्यर्थियों को अपनी जान भी गंवानी पड़ गयी। बार-बार बदलते रहे नियम

इसी तरह सिपाहियों की तैनाती को लेकर भी कोई ठोस नीति आज तक नहीं बनाई जा सकी। मुलायम सिंह यादव की सरकार में इसमें बदलाव किया गया ताकि पुलिसकर्मी अपने गृह जनपद के नजदीक तैनात हो सकें। बसपा सरकार आई तो इसके नियम सख्त बना दिए गये। वहीं अखिलेश सरकार में दो बार बॉर्डर स्कीम में बदलाव किया गया। पहले पुलिसकर्मियों को अपने गृह जनपद के समीप के तीन जिलों को चुनने की सुविधा दी गयी पर बाद में इस स्कीम ने भी दम तोड़ दिया और पुराने ढर्रे पर ही पुलिस विभाग तैनाती करने लगा। इससे सिपाहियों के असंतोष में इजाफा होता चला गया। दस साल तक फर्जी आदेश पर होता रहा अमलआपको यह जानकर हैरत होगी कि पुलिस विभाग में दस साल तक शासन के एक फर्जी आदेश पर तबादले अंजाम दिए जाते रहे। दरअसल बॉर्डर स्कीम की विसंगतियों को लेकर विशेष सचिव मुमताज अहमद द्वारा दस साल पहले जारी एक आदेश में बदलाव के लिए वर्ष 2009 में जब तत्कालीन एडीजी कानून-व्यवस्था बृजलाल ने शासन को पत्र लिखा तो पता चला कि शासन ने तो ऐसा कोई पत्र ही जारी नहीं किया है। यह सुनकर अफसर भी हैरान रह गये क्योंकि इसी आदेश के मुताबिक दस साल से सिपाहियों के तबादले किए जा रहे थे। क्या कहते हैं अफसर

अंगेजों ने डेढ़ सौ साल तक सिपाही भर्ती के नियम नहीं बदले क्योंकि वे शक्ल देखकर नौकरी नहीं देते थे। बीते दस साल से मनमाने तरीके से भर्ती और तैनाती की परंपरा जारी है। इसके लिए नियमों के मानक घटाए और बढ़ाए जाते है। दरअसल यह सब नेताओं के निहित स्वार्थ की वजह से हो रहा है। इसी वजह से फोर्स में खोटे सिक्के भी जगह बना रहे हैं। यह अस्वस्थ परंपरा है।  - विक्रम सिंह पूर्व डीजीपी बॉर्डर स्कीम में सिपाहियों को उनके गृह जनपद से कम से कम 50 किमी दूर तैनात किया जाना चाहिए वरना थाने पर कोई भी मौजूद नहीं मिलेगा। सपा सरकार में सिपाहियों को सहूलियत दी गयी तो तमाम समस्याएं सामने आने लगी। इस स्कीम को बेहद संतुलित तरीके से बनाना चाहिए ताकि कोई इसका गलत इस्तेमाल न कर सके। - बृजलाल, पूर्व डीजीपी एवं उप्र एससी-एसटी आयोग के अध्यक्ष

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Posted By: Shweta Mishra