महिलाएं और लड़कियां हैं डरी और सहमी

सैंदूल और बसांण में रात-दिन पुलिस का पहरा

देहरादून.

ऊंची-नीची जाति वालों के बीच भेदभाव के चलते एक युवक की हत्या और अब एक मासूम से रेप के बाद देहरादून से 150 किमी दूर नैनबाग इलाके में खौफ और सन्नटा पसरा है. दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम ने नैनबाग के उन गांवों तक पहुंच कर हालात जानने की कोशिश की. जहां नीची जात वाला कहकर जितेंद्र की हत्या कर दी गई तो वहीं 9 वर्ष की बच्ची के रेप की एफआईआर के लिए उसकी मां को 8 किमी बेटी को कंधे पर पैदल ले जाना पड़ा. इन गांवों में हालात तनावपूर्ण हैं. स्थिति ये है कि महिलाएं और लड़कियां यहां घर से बाहर निकलना तो दूर अपने साथ होने वाले अपमान के खिलाफ मुंह खोलने से यह कहकर इंकार कर देती हैं कि आप तो आज आएं हैं, हमें तो इस गांव में ही रहना है.

जातियों में भेदभाव की ऐसी परंपरा

नैनबाग के पास के सैंदूल, नैनबाग, खसौली सहित आसपास के गांवों में ये परंपरा है कि जिस भी नीची जाति वाले के घर में शादी होती है वह पूरा राशन ऊंची जाति वालों को दे देता है. इस राशन को ऊंची जाति वाले अपने हिसाब से तैयार करवाते हैं. इसके बाद सबसे पहले शादियों में वही लोग खाना खाते हैं. इसके बाद जो खाना बच जाता है उसे नीची जाति वालों की बारात सहित अन्य लोग खाते हैं. 26 अप्रैल को एक शादी समारोह में जितेंद्र की पिटाई इसलिए ही की गई थी कि वह ऊंची जाति वालों के साथ बैठकर खाना खा रहा था. जितेंद्र को इतनी बुरी तरह से पीटा गया था कि 5 मई को उसकी डेथ हो गई. इसके बाद नौ वर्षीय मासूम के साथ रेप की घटना हो गई.

मिड-डे मिल में भी भेदभाव

स्कूलों में दिए जाने वाले मिड-डे मिल में भी ऊंची-नीची जाति में भेदभाव किया जाता है. सैंदूल और बसांण गांव के बच्चों और महिलाओं ने बताया कि स्कूलों में ऊंची जाति के बच्चों को आगे बिठाया जाता है. यही नहीं स्कूलों में दिए जाने वाला मिड डे मिल भी पहले ऊंची जाति के बच्चों को दिया जाता है. उसके बाद जो खाना बचता है उसे नीची जाति के बच्चों को दिया जाता है. यानी बचपन से ही बच्चों को ऐसा माहौल और ऐसे संस्कार दिए जा रहे हैं, जिससे वह बड़े होकर खुद ही भेदभाव करते हैं.

पुलिस के पहरे में गांव

जितेंद्र की हत्या के बाद से बसांण गांव में दिनरात पुलिस का पहरा है. जितेंद्र की बहन पूजा ने मांग की थी कि उनकी जान को खतरा है. तब से सुबह से रात तक की शिफ्ट के लिए पांच-पांच पुलिसकर्मियों की तैनाती गांव में की जा रही हैं. हर सप्ताह यहां नए पुलिसकर्मियों को ड्यूटी के लिए भेजा जाता है. पूजा ने बताया कि उनके घर में टॉयलेट बनवाया जा रहा था लेकिन वह पंचायत के माध्यम से किए जाने वाले इस काम से ऊंची जाति वालों के प्रभाव में नहीं आना चाहते थे इसलिए टॉयलेट बनवाने से मना कर दिया.

सैंदूल में भी पुलिस

सैंदूल में नौ वर्षीय बच्ची के रेप के बाद माता-पिता उसे लेकर टिहरी गए हैं. पहले 8 किमी पैदल चलना और अब बेटी के बयान के लिए भटकना. इसके बावजूद बच्ची की मां बेटी को इंसाफ दिलाने में जुटी है. वहीं गांव में किसी तरह का विवाद न हो इसके लिए पुलिस दिन-रात वहां पहरा दे रही हैं. दो से तीन पुलिसकर्मियों की ड्यूटी घटना के दिन से लगातार लग रही है.

नल और मंदिर में भी भेदभाव

गांव के नल में यदि ऊंची जाति के लोग पहुंच जाते हैं तो नीची जाति के लोगों को उनसे दूर खड़े होना होता है और जब तक वह पानी भरकर वहां से लौट न जाएं तब तक वह दूर खड़े होकर इंतजार करते हैं. यही नहीं इन लोगों ने देवताओं को भी बांट दिया है. नीची जाति के लोगों को ऊंची जाति के लोगों के मंदिरों में जाने का अधिकार नहीं है. ऐसे में उन्होंने अपने अलग मंदिर बनाए हैं. आश्चर्य की बात है जबकि सभी धामों सहित देशभर के मंदिरों में कहीं भी श्रद्धालुओं को जाति के आधार पर नहीं बांटा गया है. सबको दर्शन का हक है. ऐसे में इन जगहों पर भी अब भी बेहद भेदभाव किया जा रहा है.

वीसी के जरिए हों पीडि़ता के बयान

पॉक्सो के मामलों में बच्चियों को थाने या कोर्ट ले जाकर बयान दर्ज करने पर बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष ऊषा नेगी ने नाराजगी जताई थी. उन्होंने इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी किए थे कि नाबालिग के वीडियो कांफ्रेंसिंग या उसके घर जाकर बयान दर्ज करवाये जाएं न कि ऐसे परिवार और बच्चों की परेशानी बढ़ाई जाए. बावजूद इसके सैंदूल गांव में नौ वर्ष की बच्ची के साथ हुए रेप मामले में उसकी मां उसे लेकर डेढ़ सौ किमी दूर टिहरी गई है. ऐसे में तीन दिन तक बच्ची को लेकर परिवार वालों को परेशानी झेलनी होगी.

दुष्कर्म के आरोपी 26 वर्षीय विपिन पंवार को सैटरडे को टिहरी कोर्ट में पेश किया जहां से उसे जेल भेज दिया गया. थर्सडे को जौनपुर क्षेत्र के एक गांव में 9 साल की बच्ची से गांव के ही युवक ने दुष्कर्म किया जिसके बाद फ्राइडे को पुलिस और पीडि़ता के परिजनों ने बच्ची को दून हॉस्पिटल पहुंचाया, यहां उसका उपचार और मेडिकल किया गया. इसके बाद बच्ची को वापस गांव लेकर गए. पीडि़ता के परिजनों के बयान दर्ज करने के बाद पिता की तहरीर पर पुलिस ने केस दर्ज किया और फ्राइडे देर शाम आरोपी को भी अरेस्ट किया गया. सैटरडे को आरोपी को कोर्ट में पेश किया जहां से आरोपी को जेल भेज दिया गया. इधर पीडि़त बच्ची के भी सैटरडे को मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराए गए.

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आरोपी को सैटरडे को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से आरोपी को जेल भेज दिया गया है. क्षेत्र में तनाव की स्थिति को देखते हुए पुलिस फोर्स तैनात की गई है.

अजय रौतेला, आईजी, गढ़वाल

आजादी के 70 बरस बाद भी पूछते हैं..तेरी जात क्या है

देहरादून

देश को आजाद हुए 70 बरस बीत चुके. संविधान में भारत के हर नागरिक को समानता का अधिकार मिला है, लेकिन पहाड़ के कुछ गांवों में आज भी जब कोई बच्चा पहली बार घर से बाहर गली में खेलने निकलता है, छोटी सी बाल्टी लेकर नल पर पानी भरने खड़ा होता है, या फिर किसी मंदिर के बाहर खड़ा होकर सोचता है कि चलकर देखूं अंदर क्या है तभी एक कड़कती सी आवाज आती है.. तेरी जात क्या है. यही कड़कती आवाज उसके मन में डर और अपमान का भाव पैदा कर देती है. विरोध करने पर या तो मारपीट कर हमेशा के लिए उसकी आवाज को खामोश कर दिया जाता है, या फिर उसे जिंदगी भर डरकर रहना पड़ता हैं. नीची जाति वाले परिवारों की बेटियां अपनी इज्जत पर राह चलते हाथ डाले जाने के बावजूद जख्मों को छिपाए खामोशी की जिंदगी काट रही हैं. छोटी जातियों के परिवारों में बडे़-बुजुर्ग तो अपमान सहने के इतने आदी हो चुके हैं कि विरोध करने का उनमें दम ही नहीं रहा. वे शायद यह मान चुके हैं कि विरोध करना उनका हक ही नहीं हैं. देहरादून से 80 किलोमीटर दूर टिहरी जिले के नैनबाग इलाके में खुद को उंची जाति का बताकर नीची जाति वालों पर अन्याय के खुले खेल पर अभी भी लोग खामोश और शासन-प्रशासन नींद में है. इस खामोशी और नींद के पीछे कुछ परिवारों का दम घुट रहा है, इस गुबार को फट कर तूफान बनने से रोकने के लिए कुछ तो करना होगा.

नैनबाग में पिछले माह एक युवक जितेन्द्र की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी. वजह सिर्फ इतनी थी कि उसने एक शादी में खाना खाने ऊंची जात वालों के बराबर कुर्सी पर बैठने की हिमाकत कर दी थी. जितेन्द्र के परिवार का कोई मर्द ऊंची जात वालों के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाया, तो उसकी बहन ने एफआईआर दर्ज कराई. इलाज के दौरान देहरादून में मौत हुई, तब से आज तक जितेन्द्र के घर पुलिस तैनात है. तीन दिन पहले फिर एक ऊंची जात वाले पर 9 वर्ष की मासूम बच्ची से रेप का मामला चर्चा में हैं. दुकान में खींच कर ऊंची जात वाले युवक ने मासूम को हवस का शिकार बनाया. रोते हुए घर पहुंची बेटी की मां जब उसे लेकर पुलिस में शिकायत करने जाने लगी तो ऊंची जात वालों के डर से बेटी का पिता ही मां के रास्ते में आ गया. रोकने की कोशिश की, लेकिन मां ने हिम्मत दिखाई. बेटी को कंधे पर लेकर 8 किमी पैदल चलकर पुलिस चौकी पहुंच गई. जितेन्द्र और 9 वर्ष की मासूम के साथ जो हुआ वह सिर्फ दो मामले नहीं, नैनबाग में आजादी के 70 बरस बाद भी ऊंची-नीची जाति के नाम पर चल रहे अत्याचारों के दो ऐसे सबूत हैं, जो यह साबित करने के लिए काफी हैं कि देश में अभी भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा. अभी भी लोगों को खुलकर सांस लेने से रोका जाता है, अभी बदलाव की जरूरत है. अभी जात-पांत के नाम पर हो रही अमानवीयता को रोकना होगा.

Posted By: Ravi Pal