घंटाघर चौराहा : इस जाम की वजह पुलिस है
- इस चौराहे पर नहीं होती है रेडलाइट फॉलो
- ट्रैफिक पुलिसकर्मी होने के बाद भी लगता है ट्रैफिक जाम - बस और ऑटो चालक बीच में रोक देते हैं गाड़ीMeerut : ये चौराहा दो नामों के मशहूर है। एक घंटाघर चौराहा तो दूसरा रेलवे रोड चौराहा। एक रोड सिटी स्टेशन की ओर जाती है तो उसी की अपोजिट रोड घंटाघर की ओर जाती है। मशहूर होने के साथ ये चौराहा बदनाम भी है वो है अपने ट्रैफिक जाम के लिए। जी हां, ऐसा ट्रैफिक सिटी के कुछ जगहों पर मिलता है। ताज्जुब की बात तो ये है यहां रोज आधा दर्जन से ज्यादा ट्रैफिक पुलिस कर्मी खडे़ होते हैं। चारों ओर रेड लाइट है और रेलवे रोड पर चौराहे से दस कदम की दूरी पर थाना मौजूद है। फिर भी इसके हालात रोज बद से बद्तर होते जा रहे हैं। आखिर ऐसे कौन से कारण हैं कि वहां ट्रैफिक जाम की समस्या हमेशा ही बनी रहती है
चौराहे के बीच में रोकते हैं टैंपोसिटी के सबसे व्यस्त चौराहों में से एक माने जाने वाले घंटाघर चौराहे पर अक्सर ट्रैफिक जाम कारण टैंपो चालकों का कहीं भी टैंपो को रोक देना है। ताज्जुब की बात तो ये है कि ये लोग चौराहे के बीच में भी अपनी गाड़ी को रोकने में कोई गुरेज नहीं करते हैं। यही कारण है इस चौराहे की व्यवस्था चरमराई हुई है। इस पर लगाम लगाने वाला कोई नहीं है। इसके अलावा सड़क कम चौड़ी होने के बावजूद ऑटो वाले अपने ऑटो को सड़क पर ही खड़ा कर सवारियों का इंतजार करने लगते हैं। ऐसे में हैवी व्हीकल्स को या तो अपनी स्पीड कम करनी पड़ती है या फिर उन्हें अपनी गाड़ी को रोकना पड़ता है।
बस वाले भी कम नहीं दिल्ली से आने वाली गाड़ी हो या फिर दिल्ली जाने वाली गाड़ी। प्राइवेट बस हो या सरकारी। ऐसी कोई बस नहीं जो रेड लाइट के पास खड़ी होकर सवारियों के लिए न रुकती हो। उनका स्टॉपेज कम से भी कम भ् से 7 मिनट का होता है। टू-व्हीलर्स तो जैसे तैसे कर निकल जाते हैं, लेकिन फोर व्हीलर्स को उतनी देर तक उनके पीछे सिर्फ हॉर्न ही बजाना पड़ता है। वहीं सामने खड़े ट्रैफिक पुलिसकर्मी तमाशा देखने में मशगूल रहते हैं। किस काम की है ये रेडलाइट्स?आखिर रेडलाइट्स क्यों होती हैं? किस इस्तेमाल में आती है? इसका क्या उद्देश्य है? ये तमाम बातें एक सिविल को पता होना काफी जरूरी है, लेकिन लोगों को इस बात की कोई परवाह नहीं है। इस चौराहे की बात की जाए रेडलाइट होने के बाद भी कोई भी चारों ओर से कोई भी अपनी गाड़ी लेकर आ जाता है, जिससे ट्रैफिक की समस्या पैदा हो जाती है। ये हाल तब है जब आधा दर्जन ट्रैफिक पुलिस कर्मी आपकी सेवा में हाजिर होते हैं।
नाम के ट्रैफिक पुलिसकर्मी जिन आधा दर्जन ट्रैफिक पुलिस कर्मी के तैनात होने की बात कर रहे हैं, वो सभी नाम के ही दिखते हैं। उन लोगों का काम सिर्फ अपनी ड्यूटी पूरा करना ही दिखता है। सारा समय वो सिर्फ पेड़ के नीचे आराम फरमाते नजर आते हैं। बहुत बड़ा जाम न लग जाए तब तक उनमें से कोई हिलने को तैयार नहीं होता है। न तो आज तक उन लोगों को किसी चालान काटते हुए देखा गया है। न ही किसी टेंपो वाले को रोड साइड से हटाते हुए देखा गया है। थाने का अतिक्रमणइस चौराहे के आसपास लोगों का अतिक्रमण है, लेकिन हम उनके अतिक्रमण की बात नहीं करेंगे, क्योंकि जिस अतिक्रमण को देखकर लोगों की हिम्मत हुई है वो ज्यादा जरूरी है। जी हां, अगर घंटाघर चौपले असली ट्रैफिक जाम की वजह मानें तो यही अतिक्रमण है। रेलवे रोड थाना ने अपनी साइड की पूरी रोड का अतिक्रमण कर लिया है। अतिक्रमण के कारण बसों और तमाम गाडि़यों को रांग साइड से जाना पड़ता है, जिसे न तो नगर निगम देख रहा है और न ही बाकी इंफोर्समेंट डिपार्टमेंट।
आखिर क्या हो सकते हैं उपाय? - खराब रेडलाइट को ठीक किया जाए। - रेड लाइट फॉलो न करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। - ऑटो और बस चालकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी जरूरी है। - ऑटो चालकों के ऑटो स्टैंड बनाया जाए। - सुनिश्चित किया जाए कि बस बस स्टैंड पर ही रुके। - रेलवे रोड थाने के सामने से अतिक्रमण हटना काफी जरूरी है। अगर ट्रैफिक पुलिस वाले अपना काम ठीक करें तो कभी ट्रैफिक जाम न हो। आप तो देख ही रहे हैं कि ये लोग धूप से बचने के लिए पेड़ के नीचे ही बैठे हुए हैं। - श्रवण कुमार टेंपो वाले रोड के बीच में खड़े होकर सवारियों को बिठाते हैं। जिन्हें देखकर पुलिस वाले अनदेखा कर देते हैं। कोई भी जिम्मेदारी का निर्वाह ठीक से नहीं कर रहा है। - सोनूरेलवे रोड की एक ओर से सड़क पहले से ही अतिक्रमण से अटी हुई है। जिसके कारण लोगों को एक सड़क से काम चलाना पड़ रहा है। अब इस अतिक्रमण को कौन हटाएगा।
- विजय कोई भी बस स्टैंड का इस्तेमाल नहीं करता है। बस वाले बस को वहीं रोकते हैं, जहां उनका मन करता है। ऐसे ट्रैफिक जाम नहीं होगा तो और क्या होगा? - गिरीश शर्मा