- वाहनों से होने वाले पॉल्यूशन से बढ़ रही हैं लोगों की बीमारियां

- वाहनों को सीएनजी करने के बाद भी नहीं थम रहा पॉल्यूशन

Meerut : सिटी की रोड्स पर दौड़ रहे वाहनों खासकर जाम में फंसे हुए वाहनों से हो रहा पॉल्यूशन मेरठ को तरह-तरह की बीमारियों के शिकंजे में कस रहा है। सिटी में हर साल तेजी से वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है। ठीक उसी रफ्तार में पॉल्यूशन लेवल भी बढ़ रहा है। सिटी में हर साल लगभग 55 हजार नए वाहन रोड पर आ रहे हैं, जो हर साल .55 प्रतिशत की दर से पॉल्यूशन लेवल को बढ़ाते जा रहे हैं।

10 लाख वाहन रजिस्टर्ड

इस समय आरटीओ में करीब 10 लाख वाहन रजिस्टर्ड हैं। इस समय सिटी में करीब 3 लाख टू व्हीलर रजिस्टर्ड हैं। अगर फोर व्हीलर की बात करें तो 2.5 लाख हैं। वहीं हैवी व्हीकल की रजिस्टर्ड संख्या 1.5 लाख है। अन्य व्हीकल की संख्या करीब 3 लाख है। जोकि सिटी की रोड्स पर दौड़ रहे हैं। इन वाहनों से बड़े पैमाने पर निकलने वाला पॉल्यूशन हवाओं में घुलता है। 26 जून दिन शुक्रवार को वायु में कार्बन का स्तर 2.75 मैक्सिमम रहा। जबकि एसओटू व एनओटू अधिकतम 7.5 व 67 के स्तर पर थे। ये सभी अपने मानकों से कहीं ज्यादा हैं।

हर साल 55 हजार

एआरटीओ एसएस सिंह ने बताया कि हर साल सिटी की रोड्स पर 55 हजार नए वाहन आ रहे हैं। इससे आप वाहनों की तेजी से बढ़ती हुई गति का अंदाजा लगा सकते हैं। हर साल बढ़ने वाले वाहनों के हिसाब से देखा जाए तो 10 लाख वाहनों से हुए पॉल्यूशन को इकाई माना जाए तो 55 हजार वाहनों में करीब .55 प्रतिशत पॉल्यूशन का स्तर हर साल बढ़ता जा रहा है।

जांच की खानापूर्ति

सिटी में पॉल्यूशन चेकिंग के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति ही होती है। आरटीओ के द्वारा अधिकृत कई प्रदूषण जांच केंद्र हैं, लेकिन जांच के नाम पर वे सिर्फ खानापूरी ही करते हैं। वहीं रोड पर भी आरटीओ और ट्रैफिक पुलिस की टीम ढीली नजर आती है। शायद ही कहीं पर पॉल्यूशन सर्टिफिकेट की जांच की जाती हो। ट्रैफिक डिपार्टमेंट के आंकड़ों की बात करें तो पिछले एक महीने में एक भी चालान पॉल्यूशन से रिलेटिड नहीं काटा गया है।

50 रुपए में जांच

व्हीकल में एअर पॉल्यूशन की जांच मात्र 30 रुपए में होती है। सिटी में आरटीओ से ऑथराइच्ड करीब 30 प्रदूषण जांच केंद्र खुले हैं, जहां एनालाइजर मशीन लगाकर वाहन के आइडियलिंग स्पीड पर कार्बन-मोनो ऑक्साइड तथा हाइड्रोकार्बन के उत्सर्जन स्तर को जांचा जाता है। अगर पॉल्यूशन मानक से कम है तो 50 रुपए में आपको छह माह के लिए प्रमाण पत्र मिल जाएगा। वहीं पॉल्यूशन मानक से बाहर है तो प्रदूषण प्रमाण-पत्र नहीं बनाया जाता है। फिर गाड़ी को सही कराना होगा। नए वाहन पर एक साल की छूट होती है। यह परिवहन विभाग उत्तर प्रदेश शासन द्वारा दिया जाता है। प्रमाण पत्र न होने पर 1000 रुपए से 1200 रुपए तक जुर्माना हो सकता है। अजंता पेट्रोल पंप पर पॉल्यूशन चेक करने वाले ऑपरेटर मो। रजा ने बताया कि एवरेज रोजाना 15 व्हीकल ही प्रमाण बनवाने आते हैं। जिनमें से 10 टू व्हीलर और पांच कारें होती हैं।

रोजना 150 फेल

ताज्जुब की बात तो ये है कि 30 प्रदूषण जांच केंद्रों में करीब 150 गाडि़यां फेल हो जाती हैं। रमन एंड कॉरपोरेशन एंड कंपनी पेट्रोल पंप में स्थित पॉल्यूशन कंट्रोल सेंटर के ऑपरेटर सौरभ गुप्ता ने बताया कि हर सेंटर पर रोजाना पांच गाडि़यां फेल हो जाती हैं, जिन्हें गैराज में भेजकर ठीक कराने की जरुरत होती है। ऐसे लोगों को हम प्रमाण पत्र नहीं बनाकर देते हैं।

पॉल्यूशन का मानक

केंद्रीय मोटर व्हीकल एक्ट 1989 की धारा 155(2) में वाहनों में पॉल्यूशन के मानकों को बताया गया है। पेट्रोल से चलने वाले सभी टू व थ्री व्हीलर वेहिकल के लिए कार्बन मोनोऑक्साइड उत्सर्जन 4.5 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। वहीं अन्य सभी वाहनों के लिए कार्बन मोनोऑक्साइड उत्सर्जन 3 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। डीजल व्हीकल के लिए धुएं का घनत्व 65 हार्टिज धुआं एक से अधिक नहीं होना चाहिए।

खराब हो रहे हैं फेफड़े

बढ़ते पॉल्यूशन के कारण फेफड़े व खराब हो रहे हैं। सीनियर चेस्ट फिजीशियन डॉ। विरोत्तम तोमर ने बताया कि तेजी से फेफड़े, सांस व अन्य बीमारियों के रोगी बढ़ रहे हैं। उन्होंने बताया कि हाल ही में हुए पीएफटी सर्वे में हर दूसरा आदमी फेफड़ों से संबंधित बीमारी से पीडि़त पाया गया।

एयर क्वालिटी हो रही बदतर

सीएनजी स्टेशन सिटी में खुलने के बाद सिटी में डीजल व पेट्रोल से चलने वाले टैम्पो, ऑटो व बस हट गए। इनकी जगह सीएनजी के ऑटो, टैम्पो व बसों ने ले ली। वहीं हर साल दर्जनों सीएनजी कारें भी खरीदी जा रही हैं, लेकिन एयर क्वालिटी पर कोई फर्क नहीं पड़ा। एयर क्वालिटी और खराब होती जा रही है। ये बात सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट कह रही है।

वाहनों से निकलने वाले तत्व व उनके प्रभाव

कार्बन मोनोऑक्साइड : यह हार्ट को प्रभावित करती है, एंजाइना को उत्तेजित करती है। बच्चों को मानसिक रोगी बना सकती है।

नाइट्रोजन ऑक्साइड : फेफड़ों में संक्रमण व आंख, नाक व गले में कई तरह की बीमारियों को जन्म देता है।

सल्फर डाइऑक्साइड : यह प्रतिकूल रूप से फेफड़े की कार्यप्रणाली को डैमेज करता है।

एसपीएम और आरपीएम : ये बेहद जहरीले होते हैं। सर्वोत्तम पर्टिकुलेट श्वसन प्रणाली में गहराई से छेद करते हैं और फेफड़े के उत्तकों को उत्तेजित करते हैं। इससे श्वास संबंधी बीमारियां होती हैं।

सीसा : लीवर और किडनी के लिए बेहद हानिकारक है। बच्चों के दिमाग को नुकसान पहुंचाता है, जिससे मेमोरी लॉस की समस्या होती है।

बेंजीन : यह ब्लड कैंसर का कारण बनता है।

पॉल्यूशन को रोकने के उपाय

- ईधन की गुणवत्ता को बढ़ाकर पॉल्यूशन को काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। उसमें उपलब्ध जरूरी तत्वों की मात्रा आवश्यकता से अधिक न हो तथा उत्सर्जन निर्धारित मानक अनुसार रहे। जैसे सीसा को ईधन से हटाया गया।

- व्हीकल में फ्यूल बर्न टैंक अच्छा होना चाहिए।

- साइलेंसर पर केटालिक कनवर्टर लगाकर भी पॉल्यूशन को कम किया जा सकता है।

- टू स्ट्रोक इंजन को फोर स्ट्रोक में परिवर्तित करना।

- सार्वजनिक यातायात प्रणाली में सुधार

- वाहनों का समय पर मेंटीनेंस कराते रहना चाहिए।

- कम पॉल्यूशन करने वाले ईधन जैसे सीएनजी, एलपीजी इत्यादि का अधिक प्रयोग कर।

- उत्सर्जन मानकों को सुदृढ़ करना।

- ईधन में मिलावट की जांच।

- पेट्रोल में सीसा की मात्रा को कम करना।

- डीजल में गंधक की मात्रा को कम करना।

- टू स्ट्रोक इंजनों के लिए पूर्व मिश्रित 2टी ऑयल डिस्पेंसर द्वारा पॉल्यूशन कम करना।

वर्जन

डिपार्टमेंट में रोजाना करीब 150 व्हीकल रजिस्ट्रेशन के लिए आते हैं। जिनमें से सबसे अधिक टू व्हीलर होते हैं। उसके बाद फोर व्हीलर और हैवी व्हीकल हैं।

- एसएस सिंह, एआरटीओ

हमारा फोकस ट्रिपलिंग, रोंग साइड ड्राइविंग, एंक्रोचमेंट आदि पर फोकस किए हुए हैं। ऐसा नहीं है कि हम पॉल्यूशन के चालान को भूल गए हैं। लेकिन पिछले एक महीने से हमारा फोकस दूसरी ओर है।

- पीके तिवारी, एसपी ट्रैफिक

जब से सीएनजी और ट्रैफिक मैनेजमेंट की ओर ध्यान दिया गया है तब से पॉल्यूशन काफी कम हुआ है। फिर भी लगातार बढ़ते व्हीकल की संख्या को देखते हुए अभी खतरा बना हुआ है।

- डॉ। बीबी अवस्थी

रीजनल ऑफिसर, यूपीपीसीबी

Posted By: Inextlive