-चिमनियों से उड़ती जहरीली राख फसलों को कर रही बीमार

-फैक्ट्री से निकलते दूषित पानी से जमीन बनी बंजर, सूख रहे पेड़

-प्रशासन की लापरवाही से बेखौफ पेपर मिल व्यापारी, एनजीटी के आदेश भी ताक पर

 

Meerut: जिस पेपर उद्योग से अरबों का व्यापार फल-फूल रहा है, उन्हीं पेपर मिल की चिमनी से निकलती छाई आस-पास के पेड़ों को बांझ बना रही है। इतना ही नहीं इन्हीं पेपर मिल्स से निकल रहा केमिकल युक्त विषैला पानी जमीन की उर्वरता को खत्म कर उसको लगातार बंजर बनाने का काम कर रहा है। इसका परिणाम यह है कि जिस क्षेत्र में पेपर इंडस्ट्री का कारोबार आसमान छू रहा है, वहां की हरियाली को दीमक लग गई और फलदार पेड़ बांझ बनकर खड़े हो गए हैं। ताजा मामला मवाना रोड स्थित सैनी गांव से जुड़ा हुआ है। यहां के लोगों के लिए पेपर इंडस्ट्री इस कदर अभिशाप बनी कि उनके बगीचों के पेड़ और खेतों की फसलों को तमाम तरह की बीमारियों ने घेर लिया है।

 

बांझ हुए पेड़, फसल पड़ी बीमार

मवाना रोड स्थित सैनी गांव पेपर इंडस्ट्री का हब बना हुआ है। यहां सात पेपर मिल हैं। इस पेपर इंडस्ट्रीयल हब का इस क्षेत्र पर प्रभाव इस कदर है कि यहां के पेड़ों से फल गायब हो गए हैं। लोगों की मानें तो इन पेपर मिल्स की चिमनियों से जो जहरीली छाई पेड़ों और फसलों पर आकर गिरती है, उससे उनमें तमाम तरह की बीमारियां पैदा हो जाती हैं। इसका परिणाम यह होता है कि पेड़ फल देना बंद कर देते हैं और जहरीली फसल खाकर पशु बीमार पड़ने लगते हैं। लोगों की मानें तो गांव में पशुओं की मौतों का एक सिलसिला चल निकला है।

 

केस एक

सैनी निवासी लोकेन्द्र सिंह का गांव में ही चालीस बीघा का बाग है। तीस साल पुराने इस बाग में 400 आम के पेड़ लगे हैं। लोकेन्द्र की मानें तो 2006 में बाग के पास एक पेपर प्लांट लगा था, उसके बाद से पेड़ों पर फल लगने बंद हो गए। बाग मालिक की मानें तो मिल की चिमनी से उड़ती जहरीली छाई पेड़ों पर आकर जम जाती है, जिससे पेड़ों में कई तरह की बीमारियां लग गई हैं और सारे पेड़ पूर्ण रूप से बांझ बन गए हैं।

 

केस दो

गांव के मुकेश की फैक्ट्री के पास बारह बीघा जमीन है। जब से यह प्लांट लगा है, तब से यह जमीन बिल्कुल बेकार हो गई है। मुकेश ने बताया कि इस जमीन पर कोई फसल ठीक से नहीं हो पाती। चिमनी से निकलती विषैली छाई फसलों पर जम जाती है, जिससे फसलों में कीड़ा लग जाता है और जब इस फसल को पशु खाते हैं तो बीमार पड़ जाते हैं।

 

 

क्या हैं मानक

मानकों के अनुसार भट्टा या ऐसा कोई उद्योग जिससे धुंआ निकलता हो उसकी आबादी या कृषि भूमि से न्यूनतम दूरी पूरब से पश्चिम को 1500 मीटर होनी चाहिए। जबकि इस प्रकरण में बाग से फैक्ट्री की दूरी मात्र 500 मीटर ही है। पेपर इंडस्ट्री शासन-प्रशासन को जेब में रख मानकों की खुले आम धज्जियां उड़ा रही हैं और हरियाली के साथ ही धरतीपुत्र की स्थिति लगातार खराब होती जा रही है।

 

 

जांच में हुआ खुलासा

ग्रामीणों की शिकायत पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की और से जिला उद्यान अधिकारी को प्रकरण की जांच सौंपी गई थी। जिला उद्यान अधिकारी द्वारा की गई जांच में खुलासा हुआ कि पेड़ों पर जमी काली छाई और पत्तों पर मिले काले धब्बे पेपर मिल्स के धुएं का ही परिणाम है। पत्तों पर लीफगाल नामक बीमारी का प्रकोप देखा गया है। यह बीमारी वायु प्रदूषण की वजह से फैलती है। पेड़ों पर फैक्ट्री की छाई जमने से पत्तियों में प्रकाश संश्लेषण व श्वसन करने में पेड़ों को कठिनाई होती है, जिससे पेड़ों का विकास रुक जाता है।

 

सैनी गांव में स्थापित पेपर मिल्स से प्रदूषण फैलने या पेड़ों और फसलों के प्रभावित होने का मामला संज्ञान में है। मैं अभी ऑफिस से बाहर हूं। संबंधित पत्रावली पर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।

बीबी अवस्थी, जिला प्रदूषण अधिकारी

Posted By: Inextlive