-तारकोल जलाने से निकलने वाली जहरीली गैसों से शहर के लोग हो रहे बीमार

पीडब्ल्यूडी की ओर से सड़क बनाने के लिए खुले आसमान के नीचे जलाया जा रहा है तारकोल

VARANASI

देर रात अगर आपकी सांस फूलने या दम घुटने लगे तो इसके लिए जिम्मेदार सिर्फ गर्मी या उमस नहीं पीडब्ल्यूडी है। ये विभाग शहर की सड़कों को चमकाने के साथ लोगों को दमा का मरीज भी बना रहा है। ये हम नहीं डॉक्टर्स कह रहे हैं। जैसे-जैसे शहर की सड़कों को दुरुस्त करने का काम बढ़ रहा वैसे-वैसे हॉस्पिटल्स में सांस के मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है। पिछले कुछ दिनों से पीडब्ल्यूडी की ओर से सिटी के दर्जनों एरिया में सड़क निमार्ण का कार्य किया जा रहा है। इन सड़कों को बनाने के लिए इस्तेमाल हो रहे तारकोल को किसी मशीन में नहीं बल्कि खुले आसमान के नीचे आग में तपाकर पिघलाया जा रहा है। इससे जबरदस्त प्रदूषण फैल रहा है।

बढ़ रहा पॉल्यूशन

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में बनारस विश्व के तीसरे सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल है। इसके बावजूद प्रशासन एयर पॉल्यूशन को लेकर गंभीर नहीं है। प्राइवेट हॉस्पिटल हो या सरकारी हर जगह सांस के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। मंडलीय हॉस्पिटल में रोजाना 200 से ज्यादा सांस के मरीज जांच के लिए पहुंच रहे हैं। इसमें सबसे बड़ी संख्या बच्चों व बुजुर्गो की है। ऐसी ही स्थिति प्राइवेट हॉस्पिटल्स की भी है।

खतरनाक है जलता तारकोल

डॉक्टर्स का कहना है कि आग पर तपते तारकोल से निकलने वाली गैस सेहत के लिए बेहद खतरनाक है। इससे लंग्स में इंफेक्शन तो होगा ही साथ कैंसर और हार्ट अटैक की संभावना अधिक बढ़ जाती है।

तारकोल को आग से तपाने दौरान सल्फर डाई आक्साईड व कार्बन मोनो ऑक्साइड निकलती हैं। यह गैसें सेहत के लिए बेहद खतरनाक है। अगर यह किसी एरिया में रातभर जलता है तो इससे बड़ी संख्या में लोग एक साथ प्रभावित होते है। यह ऑक्सिजन सोखने की क्षमता को 60 प्रतिशत कम कर देती है।

क्या होता है तारकोल

तारकोल अत्यन्त गाढ़ा द्रव होता है। यह फिनॉल, पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन और हेटेरोसाइक्लिक यौगिकों का मिश्रण होता है। जिसे पक्की सड़के बनाने में इस्तेमाल किया जा रहा। वैसे तो बड़े शहरों इसे आधुनिक मशीनों के माध्यम से तपाकर सड़कें बनाई जाती है। लेकिन बनारस में अभी भी पुरानी पद्वति का इस्तेमाल किया जा रहा है। तारकोल भरे ड्रमों को घंटों आग पर गरम किया जा रहा है। आग जलाने के लिए मिट्टी का तेल नहीं बल्कि तारकोल का ही इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे निकलने वाला काला धुआं लोगों के सांस के रास्ते फेफड़े तक पहुंचता है।

हर कोई है परेशान, कौन करेगा समाधान

तारकोल से निकलते धुएं से बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक परेशान है। जहां कही भी इसे जलाया जा रहा है, वहां के लोग रातभर सो भी नहीं पा रहे है। इधर एक सप्ताह से रथयात्रा से गोदौलिया तक सड़क बनाई जा रही है। इसमें क्षेत्र के लोगों का रातभर जलते तारकोल के धुएं से पूरा कमरा भर जा रहा है। जिसकी वजह से सांस भी नहीं लिया जा रहा।

तारकोल से निकलने वाला काला धुआं सामान्य धुएं से कई गुना ज्यादा खतरनाक है। यह जिंदगीभर के लिए बीमार कर सकता है। इससे लंग कैंसर, हार्ट अटैक और दमा जैसी गंभीर रोग हो सकता है। वर्तमान में यह हजारों लोगों को सांस की बीमारी दे रहा है।

डॉ। एसके पाठक, निदेशक-ब्रेथ ईजी सेंटर फॉर चेस्ट, एलर्जी

पॉल्यूशन एक साइलेंट किलर है, लेकिन इन दिनों प्रशासन की उदासीनता के चलते यह और भी खतरनाक हो गया है। काले धुएं की वजह से इससे प्रभावित लोगों की संख्या बढ़ रही है।

डॉ। एसके अग्रवाल, चेस्ट स्पेशलिस्ट, बीएचयू

एक नजर

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सड़कें बनानी हैं पीडब्ल्यूडी को

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सड़कें बनी हैं अब तक

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सड़कें बननी है

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सड़क बनाने में लगा रहा एक सप्ताह

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दिन तक जलता रहता है तारकोल

Posted By: Inextlive