- दस साल में मिट गया शहर से 70 तालाबों को वजूद

- बॉटनी विभाग के एचओडी के सर्वे में उजागर हुई हकीकत,

बरेली : पिछले दस सालों की बात करें तो शहर में पानी का सोर्स बने 70 तालाबों का वजूद शहर से मिट गया है. निगम के आंकड़ों में शहर के 117 तालाब दर्ज हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. ज्यादातर तालाबों को पाटकर निर्माण कर लिए गए हैं और जो बचे हैं उन्हें बचाने के लिए भी अफसर गंभीर नहीं हैं. शहर से खत्म होते तालाबों के वजूद की हकीकत बरेली कॉलेज बरेली के बॉटनी विभागाध्यक्ष डॉ. आलोक खरे के सर्वे में उजागर हुई है. उन्होने वर्ष 2015 से लेकर 2017 तक शहर में भू गर्भ जल स्तर को लेकर सर्वे किया जिसमें पता चला कि नगर निगम के रिकॉर्ड में 117 तालाब दर्ज हैं, लेकिन सर्वे के दौरान सिर्फ 47 तालाब ही मिले. इन तालाबों की स्थिति भी बदतर है.

जो बचे उन पर भी हो रहा निर्माण

डॉ. आलोक खरे को क्षेत्रीय प्रदूषण बोर्ड ने आउटसोर्सिग के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण के लिए चुना है. उन्होने शहर में लगातार हो रहे पानी के दोहन को लेकर सर्वे किया तो पता चला कि जो तालाब बचे हैं उन पर अवैध रूप से कब्जा कर निर्माण कर चल रहा है, इसकी रिपोर्ट भी उन्होने निगम को अगस्त 2018 में सौंपी थी लेकिन इस ओर अफसरों ने ध्यान नहीं दिया.

सुप्रीम कोर्ट की मनाही फिर भी कब्जा

तालाब की जमीन पर कब्जा कर निर्माण करने पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा रही है. बावजूद इसके नगर निगम क्षेत्र में तालाबों को पाटकर अवैध निर्माण करने का सिलसिला लगातार जारी है. इसे लेकर न तो नगर निगम के अफसर कोई एक्शन ले रहे हैं और न ही जिला प्रशासन. यही हाल रहा तो शहर से तालाबों का वजूद पूरी तरह मिट जाएगा और भूगर्भ जल संकट और गहराएगा.

300 फिट पर मिल रहा पानी

भू-गर्भ जल विभाग हर साल सर्वे कर अंडर ग्राउंड वॉटर लेवल की जांच करता है. पिछले सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो शहर में हर साल वॉटर लेवल गिर रहा है. डॉ. खरे ने शहर के कुछ पॉश एरिया में जल स्तर की जांच की तो पता चला कि तीन वर्ष पहले जहां 100 फिट की गहराई में पीने योग्य पानी निकलता था अब वहां 300 फिट पर भी पीने लायक पानी नहीं मिल रहा है.

इन इलाकों की हुई थी जांच

1.डीडीपुरम

2.राजेंद्र नगर

3. सुभाषनगर

4.रामपुर गार्डन

5. कुर्माचल नगर

इसलिए पीने लायक नहीं पानी

सर्वे के दौरान कई एरिया में 300 फुट की गहराई से लिए गए पानी के सैंपल भी जांच में फेल हो गए. इस पानी में नाइट्रेट, कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा खतरनाक स्तर तक पाई गई, वहीं बीओडी की मात्रा मानक से कम मिली. इसके चलते इस पानी को पीने से कई तरह की गंभीर बीमारियां होने का खतरा बना रहता है. इसके साथ ही यह पानी पीने में भी खारा लगता है.

रेन वॉटर हार्वेस्टिंग न होना सबसे बड़ा कारण

लगातार अंडर ग्राउंड वॉटर लेवल गिरने का मुख्य कारण यह है कि पानी को सहेजने के कोई भी इंतजाम शहर में नही किए गए हैं. सरकारी विभागों की बिल्डिंग से लेकर निजी इमारतों में भी रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नदारद हैं. वहीं शासनादेश है कि 300 वर्ग गज के मकान में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग बनाना अनिवार्य है, लेकिन बीडीए के अधिकारियों से सांठगांठ के चलते इस आदेश को भी हवा में उड़ा दिया गया है.

वर्जन ::

कई साल से लगातार तालाबों को सहेजने के लिए प्रयासरत हूं, 70 तालाबों का वजूद सिर्फ कागजों में ही है. जमीनी स्तर पर वहां कब्जा हो गया है. अंडर ग्राउंड वॉटर लेवल गिरने का सबसे बड़ा कारण तालाबों का खत्म होना ही है. इसकी रिपोर्ट भी समय-समय पर विभागों की दी गई लेकिन कोई प्रयास नहीं हुए.

डॉ. आलोक खरे, एचओडी, बॉटनी डिपार्टमेंट, बीसीबी.

वर्जन ::

तालाब की जमीन पर किसी भी प्रकार का निर्माण नहीं कराया जा सकता है सुप्रीम कोर्ट का आदेश है. तालाब पर कब्जे की शिकायत पर फौरन एक्शन लिया जाता है. अगर शहर में ऐसा अभी भी जारी है तो टीम भेजकर सर्वे कराया जाएगा.

ईश शक्ति कुमार सिंह, अपर नगर आयुक्त.

Posted By: Radhika Lala