- भौवापार से लगाए डवरपार तक थे तीन सौ ताल

- रामगढ़ताल से भी बड़ा था तालनदोर

भौवापार से लगाए डवरपार तक थे तीन सौ ताल

- रामगढ़ताल से भी बड़ा था तालनदोर

GORAKHPUR:

GORAKHPUR: कागज की दीवार ज्यादा दिन नहीं टिक सकती है। उसी तरह झूठ पर भी पर्दा अधिक दिन तक नहीं डाला जा सकता। हकीकत खुद ब खुद एक ना एक दिन सामने आ ही जाती है। यही हाल तालनदोर का है। एक्सप‌र्ट्स की मानें तो एक समय था जब गोरखपुर के सबसे बड़े ताल के रूप में तालनदोर की गिनती होती थी। उस ताल का आज अस्तित्व ही समाप्त हो गया। लेकिन अब इस ताल की हकीकत का पता करने के लिए गोरखपुर प्रशासन भी लग गया है। इस इलाके के जितने भी रिकॉर्ड हैं उनको मंगाया जा रहा है और उनकी अच्छे से पड़ताल की जा रही है। बहुत जल्द इस बात का भी खुलासा होगा कि क्या वाकई में ताल यहां था या कुछ और ही सच्चाई थी।

स्कूलों में भी होता था तालनदोर का जिक्र

गोरखपुर यूनिवर्सिटी के जियाग्रफी के रिटायर्ड प्रो। एसएस वर्मा शहर की भागौलिक दशा के बारे में अच्छे से अध्ययन किए हुए हैं। कोई भी जानकारी उनकी जबान पर रहती है। प्रो। एसएस वर्मा का कहना है कि हम लोग जब छोटे थे तो प्राइमरी में पढ़ाया जाता था रामगढ़ नरही नदौर, जिसमें नदौर सबसे बड़ा ताल था। भौवापार से लगाए डवरपार तक सड़क के दोनों तरफ करीब तीन सौ छोटे-बड़े ताल हुआ करते थे। क्9क्म् के नक्शे में तालनदोर को सबसे बड़े ताल के रूप में साफ दर्शाया गया है।

ऑक्स बो लेक भी था नाम

प्रो। एसएस वर्मा ने बताया कि तालनदोर को ऑक्स बो लेक के नाम से भी जाना जाता था। राप्ती नदी पहले भौवापार के पीछे से ही बहती थी जिसकी वजह से यहां पर कई ताल थे।

बॉक्स

क्9ख्0 में क्ख्0 ताल, आज क्0 भी नहीं

गोरखपुर के एक्सपर्ट की मानें तो यहां पर क्9ख्0 में केवल शहर में क्ख्0 छोटे-बड़े ताल थे। क्987-88 में घटकर इनकी संख्या म्0-म्भ् तक हो गई। वहीं आज के समय में शहर में क्0 ताल भी नहीं बचे हैं। कहीं ना कहीं ताल को पाटने में अवैध निर्माण का बहुत बड़ा हाथ है। जिसकी वजह से आज शहर में ताल का अस्तित्व ही नहीं बचा।

आज आई प्रतिक्रिया

अगर इस खबर में सच्चाई है तो वास्तव में जनता के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है। जनता की गाढ़ी कमाई से मलाई खाने में सरकार और डेवलपर्स दोनों की साझा हिस्सेदारी है। इसका खुलासा होना आवश्यक है।

विवेक

शहर में लोग अच्छी नौकरी पाने के बाद ईमानदारी से काम करते हैं उसके बाद कई साल के खून-पसीने की कमाई एकत्रित कर अपने रहने के लिए प्लॉट या मकान लेता है। खून-पसीने की कमाई के साथ बिल्डरों का खेलना कोई नहीं बात नहीं है। इसका खुलासा होना ही चाहिए।

पवन शर्मा

शहर में इतने ताल थे जो अब कहानी बनकर रह गए हैं। ऐसा नहीं है कि इस बात की जानकारी किसी को नहीं है। लेकिन कोई मुंह नहीं खोलना चाहता है कि क्यों बिना मतलब का टेंशन लें। एक बार एक बड़ी कार्रवाई हो जाए तो अवैध कब्जाधारियों में डर पैदा होगा।

संगीता

Posted By: Inextlive