-इंटरमीडिएट की पढ़ाई चल रही भगवान भरोसे, बेसिक नॉलेज भी नहीं स्टूडेंट्स को

-11वीं के एग्जाम में स्टूडेंट्स ने सीएम का एडरेस मुंबई लिखा

-विज्ञापन को विज्ञान समझा और मुक्तिबोध की जगह देश के मुक्त होने की बात लिख दी

-यूनिवर्सिटी के टीचर्स इंटर को पढ़ाने को तैयार नहीं

amit.choudhary@inext.co.in

JAMSHEDPUR : अपने सीएम रांची की जगह मुंबई और भुइयांडीह में रहते हैं। 'विज्ञापनों' का जीवन पर यही प्रभाव है कि इससे कई मशीन की उत्पत्ति हुई और इससे अंतरिक्ष पर जा सकते हैं। एक साहित्यकार बहुत अच्छा जीवन साथी है और बहुत प्यार करता है, पर अब वह निर्जीव हो गया है। इन लाइनों को पढ़कर आपको जोरों की हंसी आएगी और सकते में भी पड़ जाएंगे कि आखिर ये हमने क्या लिख दिया। हम आपको बता दें कि हमारे ही आस-पास रहने वाले क्क्वीं क्लास के बच्चों के बेसिक नॉलेज के लेवल का यह एक एग्जामपल है। हाल ही में हुए क्क्वीं के एग्जाम में स्टूडेंट्स ने क्वेश्चन के आंसर में ऐसा ही लिखा। उन्हें विज्ञान और विज्ञापन का अंतर नहीं पता। वे नहीं जानते कि सीएम कहां रहते हैं। वे यह भी नहीं जानते कि साहित्यकार किसे कहते हैं।

मुक्तिबोध बोले तो, देश क्9ब्7 में मुक्त हुआ था

एक सवाल साहित्य के मुक्तिबोध पर था। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि ज्यादातर स्टूडेंट्स ने क्9ब्7 में देश के अंग्रेजों से मुक्ति के बारे में लिख दिया। कुछ स्टूडेंट्स ने तो मुख्यमंत्री का एडरेस भुइयांडीह लिख दिया। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्टेट में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स का क्या फ्यूचर है। हर जगह विकास की बात तो की जाती है पर बिना शिक्षा किस तरह का विकास होगा इस सवाल का जवाब कौन देगा।

पढ़ाएगा कौन, यह तय नहीं

सच्चाई तो यह है कि इंटरमीडिएट की पढ़ाई भगवान भरोसे ही चल रही है। इससे खराब स्थिति और क्या हो सकती है कि इंटर के स्टूडेंट्स को पढ़ाएगा कौन, यह तय ही नहीं। गवर्नमेंट ने इंटरमीडिएट के स्टूडेंट्स को पढ़ाने की जिम्मेवारी यूनिवर्सिटी के कॉलेजेज को दे रखी है, जबकि यूनिवर्सिटी का कहना है कि उसके टीचर्स इंटरमीडिएट को पढ़ाने के लिए नहीं हैं। यही वजह है कि ज्यादातर कॉलेजेज में इंटर की क्लासेस न के बराबर होती हैं।

चार हजार में चाहिए टीचर

गवर्नमेंट स्कूल्स के प्राइमरी सेक्शन की बात करें तो वहां के रेगुलर टीचर्स की सैलरी ख्0 हजार के करीब है। जब बात इंटरमीडिएट के टीचर्स की जाती है तो यहां परमानेंट टीचर्स तो हैं नहीं, कॉलेज गेस्ट फैकल्टी अप्वॉइंट करता है, तो उसके लिए झारखंड एकेडमिक काउंसिल से पत्येक टीचर के लिए चार हजार रुपए पर मंथ ही दी जाती है। सवाल यह है कि आखिर इतने कम पैसे में पढ़ाने के लिए कौन तैयार होगा और अगर कोई मिल जाए, तो उससे क्वालिटी एजुकेशन की कितनी उम्मीद की जा सकती है।

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परमानेंट टीचर्स की व्यवस्था नहीं

सिटी में कांस्टीट्यूएंट कॉलेज में इंटर के स्टूडेंट्स की संख्या की बात करें तो को-ऑपरेटिव कॉलेज, वर्कर्स कॉलेज, ग्रेजुएट कॉलेज, वीमेंस कॉलेज, एलबीएसएम कॉलेज और एबीएम कॉलेज में इनकी संख्या करीब ख्0 हजार है। इन्हें पढ़ाने के लिए परमानेंट टीचर्स की व्यवस्था नहीं है। ब् हजार रुपए पर मंथ पर कुछ कॉलेजेज ने गेस्ट फैकल्टी अप्वॉइंट किए हैं और कुछ ने तो ऐसा भी नहीं किया है। यूनिवर्सिटी टीचर्स इन स्टूडेंट्स को पढ़ाएं तो ठीक नहीं तो क्लासेस सस्पेंड। केयू एडमिनिस्ट्रेशन तो साफ कह दिया है कि यूनिवर्सिटी टीचर्स इंटर को नहीं पढ़ाएंगे।

..तो ऐसा ही होगा न

गवर्नमेंट स्कूलों में बच्चों को किस तरह का एजुकेशन प्रोवाइड कराया जा रहा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ईस्ट सिंहभूम के एजुकेशन ऑफिसर कहते हैं कि स्कूलों में हिंदी के टीचर बच्चों को इंग्लिश पढ़ाते हैं और संस्कृत के टीचर्स को बायोलॉजी पढ़ाने की भी जिम्मेवारी दी जाती है। उनका कहना था कि टीचर्स की कमी की वजह ऐसा करना पड़ता है।

गवर्नमेंट एजुकेशन सिस्टम में ही गड़बड़ी है। क्क्वीं क्लास के स्टूडेंट्स की बात तो छोडि़ए जब क्0वीं तक के बच्चों को ही क्वालिटी एजुकेशन प्रोवाइड नहीं किया जाएगा तो उसके आगे ऐसा ही होगा न। स्कूलों में टीचर्स की कमी है। आरटीई की वजह से 8वीं तक फेल नहीं करना है और उसके बाद बच्चों के बेस को मजबूत करने का समय नहीं रहता।

- मुकेश कुमार सिन्हा, डीइओ, ईस्ट सिंहभूम

यूनिवर्सिटी के टीचर्स इंटरमीडिएट को पढ़ाने के लिए नहीं हैं। इंटर को कॉलेज से डि-लिंक करने की बात यूजीसी ने भी कही है और हमने भी सरकार को लिखा है। हाल ही में मैंने चांसलर से भी यह बात कही थी। इंटरमीडियट की वजह से हमारी व्यवस्था चरमरा रही है।

- डॉ आरपीपी सिंह, वीसी, केयू

इंटर के स्टूडेंट्स को पढ़ाने के लिए हमारे पास जितने संसाधन होते हैं हम उस लेवल तक ही व्यवस्था कर सकते हैं। चार हजार रुपए पर मंथ पर हमने कुछ गेस्ट फैकल्टीज अप्वॉइंट किए हैं, लेकिन वह पर्याप्त नहीं लगता।

-डॉ उषा शुक्ला, प्रिंसिपल, ग्रेजुएट कॉलेज फॉर वीमेन

Posted By: Inextlive