-यात्री सुविधाओं से लेकर ऑपरेशन तक रेलवे ने खुद कराए हैं सारे काम

-इंटरनेशनल स्टैण्डर्ड के मंडुवाडीह स्टेशन के निर्माण में भी नहीं लिया प्राइवेट कम्पनी का सहयोग

पेश हुए आम बजट में रेलवे को पीपीपी मॉडल से विकसित करने पर जोर दिया जा रहा है। वित्त मंत्री के इस फरमान से प्राइवेट कंपनियों की बांछें खिली गई तो वहीं रेल कर्मचारियों में विरोध के स्वर भी गूंज रहे हैं। डीएलडब्ल्यू के निगमीकरण को लेकर विरोध पर विरोध जारी है। हालांकि अभी तक बनारस रेलवे में एक भी काम पीपीपी माडल पर नहीं कराए गए हैं। अब तक रेलवे इससे अछूता है। खुद रेलवे अपने विभागीय स्तर से विकास की ट्रैक पर सुविधाओं की रेल दौड़ा रहा है। बनारस सहित आसपास इलाकों के स्टेशन, हाल्ट या रेल कर्मियों के आवासीय कालोनियों में कार्य रेलवे ने खुद किया है।

मंडुवाडीह का स्वरूप देखते ही रह जाएंगे

पहले तय यह था कि कैंट रेलवे स्टेशन के विकास कार्यो को पीपीपी मॉडल के तहत कराया जाएगा। एयरपोर्ट सरीखे कैंट स्टेशन को संवारने के लिए यह फैसला लिया गया था। हालांकि रेल मंत्रालय ने इससे कदम पीछे खींच लिया। खुद विभागीय स्तर से कैंट रेलवे स्टेशन का सौंदर्यकरण किया जा रहा है। प्लेटफार्म से लेकर वेटिंग हॉल, ड्रॉरमेट्री आदि रेल यात्रियों को मिलने वाली सुविधाओं को बेहतर बनाया जा रहा है। इसी तरह मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन को संवारा गया है। आज के समय में बनारस का सबसे खूबसूरत रेलवे स्टेशन का खिताब लिए मंडुवाडीह का सुंदरीकरण रेलवे ने खुद अपने हाथ किया। इसमें किसी प्राइवेट कंपनी की सहायता नहीं ली गई।

पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत सरकार प्राइवेट कंपनियों के साथ अपनी परियोजनाओं को अंजाम देती है। देश के कई हाईवे इसी मॉडल पर बने हैं। यह एक ऐसा करार है, जिसके द्वारा किसी जन सेवा या बुनियादी ढांचे के विकास के लिए धन की व्यवस्था की जाती है। इसमें सरकारी और निजी संस्थान मिलकर अपने अनुभवों का प्रयोग करते हैं और पहले से निर्धारित लक्ष्य पर काम करते हैं और उस हासिल करते हैं। पीपीपी की जरूरत इसलिए पड़ती है, क्योंकि सरकार के पास इतना धन नहीं होता है, जिससे वह हजारों करोड़ रुपयों की घोषणाओं को पूरा कर सके। ऐसी स्थिति में सरकार प्राइवेट कंपनियों के साथ करार कर लेती है और इन परियोजनाओं को पूरा करती है।

ये हैं पीपीपी मॉडल के फायदे-

-पीपीपी मॉडल अपनाने से परियोजनाएं सही लागत पर और समय से पूरी हो जाती हैं

-पीपीपी से काम समय से पूरा होने के कारण निर्धारित परियोजनाओं से होने वाली आय भी समय से शुरू हो जाती है, जिससे सरकार की आय में भी बढ़ोत्तरी होने लगती है

-परियोजनाओं को पूरा करने में श्रम और पूंजी संसाधन की प्रोडक्टिविटी बढ़ाकर अर्थव्यवस्था की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है

-पीपीपी मॉडल के तहत किए गए काम की क्वालिटी सरकारी काम के मुकाबले अच्छी होती है और साथ ही काम अपने निर्धारित योजना के अनुसार होता है

वाटर वे हो रहा तैयार

पीपीपी मॉडल के तहत गंगा में बनारस से हल्दिया के बीच वाटर हाईवे तैयार कराया गया है। रामनगर में 3000 करोड़ की लागत से मल्टी मॉडल टर्मिनल का शुभांरभ पिछले साल पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने किया था। 100 एकड़ एरिया में प्रस्तावित फ्रेट विलेज में वेयर हाउस, कोल्ड स्टोरेज, पैकेजिंग-रैपिंग, कारगो स्टोरेज, रोड ट्रांसपोर्ट सर्विस के अलावा शहरी जीवन की बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध है।

अधर में ट्रांसपोर्ट नगर

पीपीपी माडल के तहत 82 करोड़ की लागत से मोहनसराय में बनने वाली ट्रांसपोर्ट नगर योजना वीडीए व किसानों के बीच विवाद के चलते अधर में लटकी हुई है। फैक्ट यह है कि 15 साल बाद भी जमीन पर पूरी तरह से कब्जा ले पाने में अफसर असफल हैं। शहर के कारोबार को देखते हुए वीडीए ने मोहनसराय के आसपास बैरवन, सरायमोहन, कंकनाडाडी और मिल्कीचक गांवों के करीब 89 हेक्टेयर जमीन पर ट्रांसपोर्ट नगर बनाने का प्रस्ताव बनाया है। इसका मकसद शहर में बढ़ रहे ट्रैफिक लोड को व्यवस्थित करना था। अप्रैल 2003 में इन गांवों के किसानों से 45 हेक्टेयर जमीन खरीद ली गई, लेकिन दूसरे किसानों ने जमीन देने की बजाय आंदोलन शुरू कर दिया।

Posted By: Inextlive