देश के लीडिंग ऐड फिल्म डायरेक्टर ऐड गुरु और फिल्म मेकर प्रहलाद कक्कड़ इन दिनों कोयम्बटूर के सद्गुरु के सानिध्य में आध्यात्म का पाठ पढ़ रहे हैं. इसी सिलसिले में वो कुछ दिन पहले बनारस पहुंचे. इस टूर में आई नेक्स्ट को भी उन्होंने शाम को एक लम्बा वक्त दिया और कई पहलूओं पर बेबाक ओपिनियन दी. पेश इस लम्बी गुफ्तगू के कुछ खास अंश..


आप ने अपने कॅरियर का एक अच्छा वक्त श्याम बेनेगल के साथ स्पेंड किया है। इसके बाद ऐड फिल्म मेकिंग में आए तो छा गए। क्या अब फिल्म मेकिंग में इंटरेस्ट नहीं रहा?फिल्म मेकिंग एक कीड़ा है जो कभी शांत हो ही नहीं सकता। इसे आप एक गंभीर डिजीज समझिये। मेरे साथ भी ऐसा ही है। मैं इससे कभी दूर नहीं हो सकता। अब फिल्म मेकिंग का सिनेरियो काफी बदल चुका है। बिना बड़े स्टार्स के काम करना आसान नहीं होता। अब ये मनी गेम भी हो चुका है। इसलिए अब अच्छी होमवर्क के साथ ही कुछ नया करुंगा। थोड़ा इंतजार करना होगा आपको। आप भी मानते हैं कि बड़े स्टार्स के बिना फिल्म मेकिंग आज पॉसिबल नहीं है?


ऐसा नहीं है। विक्की डोनर हाल का सबसे अच्छा एग्जाम्पल है। अच्छी कहानी, अच्छा डायरेक्शन, अच्छा स्क्रीन प्ले जाया नहीं होता। ये जरुर है कि आज फिल्म सेक्टर में मार्केटिंग का एक ही फंडा है कि फिल्म को टीवी प्रोमोज और ऐड के जरिये हाइप दे दो। जबकि ‘बोल’ फिल्म शायद आपको याद होगी। इस फिल्म का पब्लिसिटी बजट सिर्फ 60 हजार रुपये था। मैंने खुद इसके प्रमोशन के लिए कई शहरों में तीन-तीन दिन का कैम्प किया। वहां फिल्म के 6-6 प्रीमियर शो ऑर्गनाइज किये और इसके जरिये फिल्म को जबरदस्त माउथ पब्लिसिटी मिली और फिल्म नेशनल लेवल पर चर्चा में आ गयी। फिल्म मेकिंग में बड़ा चैलेंज क्या हैं? फाइनेंशियल प्रेशर। इंडिया में आज वही फिल्में चर्चा में आती हैं जो करोड़ों के बजट की होती हैं। एक बड़ा बजट फिल्म के बड़े स्टार कॉस्ट पर खर्च होता है। ऐसी मैक्सिमम 30 फिल्म में एक साल में आती हैं। बाकी 600 फिल्में इस प्रेशर में अच्छी कहानी, डायरेक्शन के बावजूद डब्बे में रह जाती हैं क्योंकि उन्हें प्रमोटर्स नहीं मिलते। एफडीआई मंजूरी के बाद देश की स्मॉल इंडस्ट्रीज, दुकानदारों, लोकल प्रोडक्ट्स का क्या होगा? उनके पास वॉलमार्ट जैसा इंफ्रास्ट्रक्चर और बजट नहीं?

माइंड मत कीजिएगा साफ कहूं तो ये केंद्र की .(गाली) सरकार ने चार साल की नींद से जगने के बाद पहली बार देश की तरक्की का रास्ता तैयार किया है। आपने कभी सोचा है कि आज आलू पैदा करने वाले किसान 5 रुपये प्रति किलो में आलू बेचने को मजबूर है जबकि आम आदमी उसी आलू को 15 रुपये में खरीदता है। क्यों? बीच के 10 रुपये कहां गए? ये बिचौलिये और दलाल खाते हैं। ये ऐसे दलाल हैं जो गुण्डे भी हैं। विदेशी कंपनियों के आने के बाद पहले तो देश के लाखों लोगों को सीधे रोजगार मिलेगा। दूसरे किसानों को और छोटे कंपनियों को उनके प्रोडक्ट्स को वाजिब दाम मिलेगा। प्रोडक्ट सीधे कंज्यूमर के पास पहुंचेगा। फिर भी एक सवाल है कि लॉन्ग टर्म में इसका इफेक्ट देश के लिए कितना पॉजिटिव होगा?सीधा समझिये कि कंज्यूमर बिलकुल चौड़ा होकर रहेगा क्योंकि उसके पास तब ज्यादा ऑप्शन होंगे। क्वॉलिटी अच्छी मिलेगी और चीजें सस्ती मिलेंगी। और क्या चाहिए आपको। रही बात ये जो देश में एफडीआई के नाम पर चल रहा है वो सिर्फ और सिर्फ राजनीति है। मैं तो कहता हूं कि चार साल बाद ये निहायत वाहियात सरकार ने कुछ अच्छा किया है। जैसा कि मैं जानता हूं कि आपको स्कूबा डाइविंग का काफी शौक है और आप खुद एक इंस्ट्रक्टर भी हैं? कितना वक्त निकाल पाते हैं अपने इस शौक के लिए? (ठहाका लगाते हुए) जितना आप सोच सकते हैं उससे भी ज्यादा वक्त दे लेता हूं। हॉबी के लिए मैं हमेशा तैयार रहता हूं। जब दिल करता है सारे काम छोड़ कर अपने शौक को वक्त देता हूं।

Posted By: Inextlive