Ranchi: मेरे माता पिता ने बड़े अरमानों से मेरी शादी धूमधाम से की. एक साल तो मुझे ससुराल में बहुत माना सम्मान और प्यार मिला. मैं गर्भवती हुई. ससुराल वाले मुझसे बेटा की चाहत रखते थे. बेटी का नाम लेने पर कोई सुनने को राजी नहीं था. डॉक्टरी जांच हुई. जांच में इस बात का पता चला कि गर्भ में पल रहा बच्चा बेटा नहीं बेटी है. फिर क्या था मान सम्मान दूर हो गया. प्यार का समुद्र में जैसे रेगिस्तान की मिट्टी आ गई. मैं बेटी से बहू बन गई. उनलोगों ने मुझे प्रताडि़त करना शुरू कर दिया. यह कहानी है सिटी के प्रिया बदला नाम की जो आज गुमनामी के अंधेरे में जीने को मजबूर है. पिता ने उसके ससुराल वालों से पंचायत की मदद से बात करनी चाही पर सब बेकार हो गया. एक हंसती-खेलती जिंदगी तबाह हो गई. पंचायत के फैसले पर एक बार फिर उस आंगन में गई पर इस बार उसे पहले से ज्यादा जिल्लत झेलनी पड़ी. उसे सिर्फ बर्तन मांजने का काम दिया गया. रात में पति अच्छे से बात करते लेकिन जब कहा नहीं मानती थी तो मुझ पर हाथ उठा देते थे. अंतत: मैंने सामाजिक संस्था की मदद ली. उन्हें आपबीती सुनाई. अब मैं स्वतंत्र हूं. हक के लिए पति और ससुराल से लड़ाई लड़ रही हूं.


स्टेट में घरेलू हिंसा के  सैकड़ों मामलेस्टेट में बहू, बेटी, पत्नी, मां को प्रताडि़त करने के सैकड़ों मामले फैमिली कोर्ट, महिला आयोग, महिला थाने में चल रहे हैं। अधिकतर मामले छोटी-छोटी बातों को लेकर दायर की गई है। जिसकी सुनवाई कोर्ट में चल रही है। साइकोलजिस्ट कहते हैं कि छोटी-छोटी बातों को बढ़ाना नहीं चाहिए, लेकिन जब पानी सिर से ऊपर जाने लगे, तो चुपचाप हिंसा को सहन करना भी जायज नहीं।

चल रहा सिग्नेचर कैंपेनएसोसिएशन फॉर सोशल एंड ह्यूमन एंड हेल्थ अवेयरनेस के सेक्रेटरी अजय कुमार भगत महिला हिंसा पर 16 दिवसीय पखवाड़ा चला रहे हैं। इसके अंतर्गत सिग्नेचर कैंपेन भी चलाया जा रहा है।

Posted By: Inextlive