चुनावी माहौल में लोगों के बीच बढ़ रही है आपसी दुश्मनी

मानसिक स्वास्थ्य केंद्र में बढ़ रही है ऐसे मरीजों की भीड़

PRAYAGRAJ: चुनावी माहौल में राजनीतिक दलों के बीच की रस्साकशी आम आदमी के जीवन का हिस्सा बनती जा रही है. लोग खुद को आम मतदाता की जगह नरेंद्र मोदी, अखिलेश यादव, मायावती, राहुल गांधी समझ बैठे हैं. यही कारण है कि सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक चुनावी छीटाकशी और गंदे कमेंट्स के चलते लोगों के बीच खाई बढ़ती जा रही है. मनोचिकित्सक की माने तो यह माहौल मास हिस्टीरिया (एक प्रकार का मानसिक विकारर) का एग्जाम्पल है.

केस नंबर वन

मऊआइमा के रहने वाले प्रदीप के परिजन उन्हे लेकर पिछले दिनों मानसिक स्वास्थ्य केद्र पहुंचे थे. बताया कि किसी दल विशेष और नेता को लेकर अन्य व्यक्ति से उनका झगड़ा हुआ और जमकर मारपीट भी हुई. लगातार ऐसी घटनाओं से तंग परिजनो ने हॉस्पिटल का दरवाजा खटखटाया. डॉक्टर्स ने प्रदीप की काउंसिलिंग की. उन्हे मानसिक विकार से बचने की सलाह दी गई.

केस नंबर दो-

राजापुर के रहने वाले राशिद का अपने कई साल पुराने दोस्त से जमकर विवाद हुआ. रीजन था दोनों सोशल मीडिया पर राजनीतिक दलों के समर्थन में भिड़ जाना. मामला इतना बढ़ा कि दोनों के बीच सड़क पर जमकर गाली गलौज हुई. राशिद के साथ ऐसे तीन घटनाएं होने पर परिजनों ने उन्हें हॉस्पिटल में दिखाया. उनका इलाज चल रहा है.

केस नंबर तीन-

मानसिक स्वास्थ्य केंद्र की ओपीडी में एक अन्य रोचक मामले भी पहुंचे हैं. जानकारी के मुताबिक कुछ मरीज खुद को नरेंद्र मोदी तो कुछ को खुद में राहुल गांधी की छवि नजर आती है. उनकी हरकतें भी ऐसी हैं. यह लोग जब तब चुनाव को लेकर दूसरों से बहस और विवाद कर रहे थे. परिजनों द्वारा शिकायत करने पर उनकी काउंसिलिंग की जा रही है.

क्यों हो रहा है ऐसा

एक समुदाय या वर्ग विशेष के लोगाें को केंद्रित कर कुंठित और विकृत मानसिकता के मैसेज बल्क में भेजे जाते हैं.

'मास हिस्टीरिया' का मतलब एक विशेष प्रकार के माहौल के हिसाब से व्यवहार होना. जैसे चुनावी माहौल में लोगों का अपने-अपने नेताओं और दलों की तरह व्यवहार और सोच का पालन करना.

किसी खास दल या व्यक्ति विशेष से अत्यधिक जुड़ाव महसूस करने को मनोविज्ञान की भाषा में 'आइडेंटिफिकेशन' कहते हैं.

अलग-अलग दलों से प्रभावित लोग 'करिश्माई लीडरशिप' के विचार को आत्मसात कर चुके हैं जो विवाद का मुख्य कारण है.

नही सुधरे तो होगा नुकसान

करिश्माई लीडरशिप के अत्यधिक प्रभाव में आने से व्यक्ति समाज से खुद को अलग महसूस करने लगता है.

ऐसे लोग सोसायटी में मजाक का पात्र बन जाते हैं और लोग उनका उपहास उड़ाते हैं.

बार-बार विवाद होने से शारीरिक क्षमता और कार्यशैली भी प्रभावित होती है.

लक्षण और बचाव

देशप्रेम, आतंकवाद, गरीबी, बेरोजगारी आदि मामलों को लेकर मन में डर पैदा होने लगे तो तत्काल होशियार हो जाना चाहिए.

किसी राजनीतिक छवि के प्रति खुद का जुड़ाव महसूस होने लगे तो इसे इग्नोर करना ही बेहतर.

खुद को एक आम मतदाता की तरह ट्रीट करें. विचारों को मन में रखें. उनको सार्वजनिक न करें

किसी के भड़काने पर रिएक्ट न करें

राजनीतिक दलों को मजबूत बनाने के बजाय खुद को सक्षम बनाने की कोशिश करनी चाहिए

अब चुनाव सड़कों पर नही बल्कि मनौवैज्ञानिक तरीके से लड़ा जाता है. राजनीतिक दल कई तकनीकी प्रयोग और रिसर्च के बाद मुद्दों के आधार पर जनता का ब्रेन वाश करने की कोशिश की जाती है. डर का माहौल पैदा किया जाता है. ऐसे में जनता करिश्माई लीडरशिप की चपेट में आकर चुनावी विवाद में पड़ने लगती है. मेरी राय में लोगों को अपने निजी जीवन जैसे पढ़ाई, नौकरी आदि पर ध्यान देना चाहिए. इससे वह बेहतर नागरिक होने का परिचय दे सकेंगे.

डॉ. राकेश पासवान,

मनोचिकित्सक, काल्विन हॉस्पिटल

Posted By: Vijay Pandey