-डिस्कनेक्शन के बाद पीडी में लेटलतीफी निकाल रही कंज्यूमर्स का दम

- कनेक्शन कटने के बाद भी सालों तक घर में लगा रहता है बिजली मीटर

- परमानेंट डिस्कनेक्शन के समय मोटे बिल के साथ तहसील में जाती है आरसी

Meerut। एक ओर पीवीवीएनएल जहां कंज्यूमर्स की समस्याओं के त्वरित निदान के लिए विद्युत सेवा केन्द्र जैसी सुविधाओं को बढ़ावा देने पर जोर देता है। वहीं विभाग के ही कर्मचारी नए-नए फार्मूले इजाद कर कंज्यूमर्स की जेब काटने पर जुटे हैं।

क्या है मामला

दो हजार रुपए का बिल चढ़ते ही ड्यू डेट पर भुगतान न होने पर विभाग कंज्यूमर का कनेक्शन काट देता है। कनेक्शन कटने के बाद भी बिल भुगतान न होने पर कंज्यूमर का कनेक्शन पीडी (परमानेंट डिसकनेक्शन) करने का प्रावधान है। हालांकि इसके लिए कंज्यूमर को कुछ समय की मोहलत दी जाती है। लेकिन विभागीय कर्मचारी इसका गलत फायदा उठाने पर तुले हैं।

जैदी फार्म निवासी मोहम्मद असलम ने बताया कि तीन साल पूर्व बिजली का पूरा पेमेंट कर नौकरी के सिलसिले में परिवार सहित बाहर चला गया था। अचानक पता चला कि बिल चुकता न करने पर आरसी काट दी गई। बंद मकान पर विभाग ने 23 हजार का बिल बना दिया। अब वह विभाग के चक्कर काट रहा है।

केस तीन

सात हजार रुपए का बिल

बिजली विभाग के कर्मचारियों के गोलमाल पर गोलकुआं निवासी राहुल शर्मा बताते हैं कि किराएदार न होने पर साल भर से मकान बंद पड़ा था। बिजली विभाग को प्रार्थना पत्र भी दिया था। एक साल बाद विभाग ने अचानक सात हजार का बिल बनाकर भेज दिया। अब विभागीय अधिकारी ही बताए बंद मकान में कैसे बिल आता है।

महंगी पड़ रही लेटलतीफी

दरअसल, ये कर्मचारी बिल भुगतान न होने पर डिस्कनेक्शन के महीनों बाद तक कंज्यूमर का कनेक्शन पीडी नहीं करते। इसके उलट 7-8 माह में कभी-कभी तो सालों बाद कर्मचारी मौके पर जाकर कंज्यूमर का मीटर उतार लाता है, जिसके बाद उसका परमानेंट डिसकनेक्शन करता है। इसके बाद कर्मचारी डिसकनेक्शन से पीडी तक का फिक्स बिल बनाकर कंज्यूमर को भेज देता है।

क्या है प्रावधान

दरअसल, बकाए पर डिसकनेक्शन के दौरान विभाग कंज्यूमर को बिल भुगतान के लिए दस दिन का समय देता है। ऐसे में यदि ड्यू डेट के बाद भी कंज्यूमर बिल भुगतान नहीं करता, तो कर्मचारी को कनेक्शन पीडी किए जाने का नोटिस भेज दिया जाता है। जबकि कोई जवाब न मिलने पर कर्मचारी मौका मुआयना करते हैं। मकान बंद मिलने की स्थिति में विभाग मीटर उतारकर कनेक्शन को पीडी कर देता है। जबकि मकान में ताला लगा होने की स्थिति में केबल काट कर पीडी दर्शा दी जाती है।

यहां होता है खेल

वास्तव में विभाग के कर्मचारी मीटर रीडिंग काउंट के आधार पर बिल ना बनाकर कंज्यूमर से फिक्स चार्ज वसूलता है। यह न्यूनतम राशि 160 यूनिट पर 4.45 रुपए प्रति माह के हिसाब से वसूली जाती है। अब जबकि कंज्यूमर बिजली का कोई इस्तेमाल नहीं कर रहा है बावजूद इसके उस पर 1800 रुपए माह का बिल चढ़ता रहता है। जबकि पीडी के बाद कंज्यूमर मीटर रीडिंग के आधार पर बिल बनाने की मांग करता है।

काट दी जाती है आरसी

ऐसा अधिकतर उन मामलों में होता है। जहां पर घर का ताला लगा होता है और कंज्यूमर महीनों से कहीं बाहर रहता है। ऐसे में कंज्यूमर द्वारा नोटिस का जवाब न देने पर विभाग उसकी आरसी काट देता, जिसके बाद तहसील बिजली के बिल की रिकवरी करती है। कंज्यूमर्स पर बढ़े हुए बिल की मार तो पड़ती है साथ ही तहसील उससे दस प्रतिशत सर्विस चार्ज की अलग से वसूली करती है। ऐसे न जाने कितने कंज्यूमर तहसील और बिजली दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं।

बॉक्स

अगस्त में कुल पीडी और डिस्कनेक्शन

डिवीजन डिस्कनेक्शन पीडी

फ‌र्स्ट 1351 20

सेंकेंड 1197 50

थर्ड 1694 143

फोर्थ 1679 57

कुल 5921 270

बकाया बिल भुगतान न होने पर कंज्यूमर को पीडी का नोटिस दिया जाता है। नोटिस का जवाब न मिलने पर पीडी कर दी जाती है। बढ़े हुए बिल का मामला विचित्र है। जांच की जाएगी।

-आरके राणा, एसई अर्बन मेरठ

केस स्टडी

गंगानगर एल ब्लॉक निवासी सतेन्द्र पिछले कई सालों नोएडा में रह रहा है। बिजली विभाग ने उसके खाली पड़े मकान का 60 हजार रुपए बिल बना डाला। यहीं नहीं जब सतेन्द्र ने समय पर बिल भुगतान नहीं किया। तो विभाग ने उसकी आरसी काट कर तहसील को भेज दी। तहसील अफसरों ने जब रिकवरी करने को कंज्यूमर से संपर्क साधा तो उसके होश उड़ गए।

केस दो

23 हजार रुपए का थमाया बिल

Posted By: Inextlive