विज्ञापन संख्या 23 से 39 तक प्राचार्यो की सभी नियुक्ति कोर्ट से निरस्त तो अनिरूद्ध कैसे बने रहे प्राचार्य?

प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति ने सीएम को भेजे पत्र में याद दिलाया सीबीआई जांच का वादा

कहा, भर्तियों में भ्रष्टाचार से जवाब दे रहा प्रतियोगियों का धैर्य

ALLAHABAD: इलाहाबाद हाईकोर्ट से पूर्व अध्यक्ष डॉ। अनिल यादव की बर्खास्तगी के बाद वर्तमान अध्यक्ष डॉ। अनिरूद्ध सिंह यादव की नियुक्ति भी सवालों के घेरे में आ गई है। डॉ। अनिरूद्ध के खिलाफ शिकायत प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के मीडिया प्रभारी अवनीश पांडेय ने की है। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र के माध्यम से अवगत करवाया है कि जब उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के विज्ञापन संख्या 23 से 39 तक कि प्राचार्यो की सभी नियुक्तियां माननीय न्यायालय से रद्द हैं तो डॉ। अनिरूद्ध चेयरमैन नियुक्ति किये जाते समय संबंधित कॉलेज के प्राचार्य कैसे हो सकते हैं?

विज्ञापन संख्या 25 के तहत नियुक्ति

अवनीश ने सीएम को भेजे पत्र में सूचित किया है कि इनकी नियुक्ति विज्ञापन संख्या 25 के तहत हायर एजुकेशन कमीशन द्वारा की गई थी। डॉ। अनिरुद्ध यादव ने अपने बायोडाटा मे शैक्षणिक वर्ष तथा सेवारत वर्षो का भी उल्लेख नहीं किया है। क्योंकि, इन्होंने विधि में स्नातक तथा पीएचडी की डिग्री नौकरी करते हुए हासिल की। सीएम को लिखे पत्र में आयोग के दो सदस्यों सैयद फरमान अली एवं पूर्व कार्यवाहक अध्यक्ष डॉ। सुनील कुमार जैन के खिलाफ भी गंभीर शिकायतें की गई हैं। आयोग द्वारा सीधी भर्तियों में भ्रष्टाचार का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि आयोग माननीय सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना कर सीधे साक्षात्कार द्वारा चयन कर रहा है।

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आरटीआई से खुला सच

आयोग ने 20,593 पदों पर सीधे साक्षात्कार के माध्यम से नियुक्ति की है

शासन से मांगे जाने पर आयोग ने सीधी भर्ती से जुड़े परिणामों की जानकारी नहीं भेजी

शासन को भेजे गए कागजों में भी हेरफेर की गयी है

एपीओ वर्ष 2007 के वर्ष 2014 में घोषित परिणाम का उल्लेख है। जिसमे फूल सिंह यादव का चयन एससी कोटे में किया गया है जबकि शासन को भेजे गए आख्या में फूल सिंह यादव को ओबीसी वर्ग में दर्शाया गया है।

पत्र में ये बातें कहीं गई

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डॉ। अनिरूद्ध सिंह यादव ने आवेदन के समय खुद को वर्ष 2002 से जीबी पंत कॉलेज कछला बदायूं का प्राचार्य बताया है।

आवेदन के समय उन्होंने खुद पर किसी भी प्रकार के लंबित वाद से इंकार किया है।

डॉ। यादव ने तत्कालीन शासन के समय तथ्यों को छिपाकर अध्यक्ष पद के लिये आवेदन किया।

उनकी संबंधित कॉलेज में प्रॉचार्य पद पर नियुक्ति उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग से विज्ञापन संख्या 25 के तहत की गई।

आयोग के विज्ञापन संख्या 23 से 39 तक नियुक्त सभी प्राचार्यो को माननीय उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पद से हटाने का आदेश दिया गया है।

डॉ। अनिरूद्ध सिंह यादव ने शासन को दिये अपने बायोडाटा में शैक्षणिक वर्षो एवं सेवारत वर्षो का उल्लेख नहीं किया है।

आयोग के सदस्य सैयद फरमान अली ने भी अपने बायोडाटा में स्वयं को विधि में स्नातक बताया है।

उन्होंने खुद को 25 नवम्बर 1991 से बांदा सिविल न्यायालय में अधिवक्ता घोषित किया है

किन्तु काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश से आरटीआई के जवाब में फरमान अली का अधिवक्ता के रूप में नामांकन पंजीकरण संख्या यूपी 10,691/2002 दिनांक 29 नवम्बर 2002 अंकित है।

फरमान अली ने वर्ष 2002 में बार काउंसिल में अधिवक्ता के रूप में नामांकन करवाया है। फिर वे वर्ष 1991 से बांदा में अधिवक्ता के रूप में कार्य कैसे कर रहे थे?

एक अन्य सदस्य डॉ। सुनील कुमार जैन पर संगीन मुकदमों का विवरण आरटीआई से मांगा गया।

तत्कालीन सपा सरकार ने उनपर एफआईआर से ही इंकार दिया।

पुन: अपील दाखिल किये जाने पर उनपर आगरा के न्यू कैंट थाने में आपराधिक मुकदमों की जानकारी दी गई।

इन दोनो सदस्यों ने अपने बायोडाटा में अपने ऊपर किसी वाद का उल्लेख नहीं किया है और न ही शैक्षणिक योग्यता की जानकारी दी है।

विज्ञापन संख्या 25 के तहत मेरी नियुक्ति वर्ष 1999-2000 की है। कोर्ट ने जितनी भी नियुक्तियां रद की। वह सब वर्ष 2005-06 के समय की है। मेरी चेयरमैन पद पर नियुक्ति ओपन मेरिट और ओपन काम्पटेटिव माध्यम से बहुत ट्रांसपैरेंट तरीके से की गई। इसमें हाईकोर्ट के डायरेक्शंस का भी ध्यान रखा गया था। ये लोग तो कोई भी बेबुनियाद आरोप लगाते हैं। मैं पूरी पारदर्शिता के साथ काम कर रहा हूं और आगे भी करूंगा।

-डॉ। अनिरूद्ध सिंह यादव,

चेयरमैन यूपी लोक सेवा आयोग

Posted By: Inextlive