- कचहरी कैंपस में कई लोगों का चल रहा है छोटा-मोटा रोजगार

- व्हीकल पार्किंग से लेकर फोटो स्टेट की दुकानों का कारोबार दस फीसदी भी नहीं रहा

- हड़ताल से टाइपिस्ट से लेकर चाय की दुकानों को हो रही है परेशानी

sharma.saurabh@inext.co.in

Meerut : पिछले तीन महीने से कचहरी में हड़ताल चल रही है। वेस्ट यूपी में हाई कोर्ट बेंच की मांग को लेकर वकील काम करने को तैयार नहीं हैं, लेकिन इस हड़ताल का साइड इफेक्ट अब भी देखने को मिल रहा है। ऐसे कई लोग हैं जो हड़ताल के कारण अपने बच्चों का पेट तक नहीं पाल रहे हैं। कैंपस में फोटो स्टेट वाले, चाय की दुकान वाले, ढाबे वाले, जैसे कई लोग हैं, जो दुकान का किराया तक नहीं निकाल पा रहे हैं। पिछले तीन महीने से मंदी के शिकार लोगों से बात हुई तो सच्चाई का पता चला

क्0 फीसदी भी नहीं रहा काम

कैंपस के बाहर फोटो स्टेट की दुकान लगाने वाले बलराम वर्मा को फ्0 वर्ष हो गए हैं। उनका कहना है कि हड़ताल से पहले मैं हर रोज भ्00 कॉपी फोटो स्टेट कर देता था। आज भ्0 भी मुश्किल से हो पाती हैं, जिसके कारण घर चलाने की तो दूर की बात दुकान का किराया तक निकालना भारी पड़ रहा है। इस हड़ताल ने हम जैसे लोगों की तो कमर ही तोड़कर रख दी है। ऐसा कहने वाले सिर्फ बलराम ही नहीं है। कैंपस और आसपास क्क्0 फोटो स्टेट के दुकानदारों का ऐसा ही कहना है।

अब तो सिर्फ तांकते रहते हैं

कचहरी कैंपस में टाइपराइटर्स की ठक-ठक कौन भूल सकता है? आंखे कागज पर और उंगलियां की बोर्ड पर। हड़ताल के बाद से तो ठक-ठक की आवाज ही आनी बंद हो गई। टाइपिस्ट साजिद की मानें तो हड़ताल से पहले मैं रोज ख्0 से फ्0 एफिडेविट तैयार कर देता था। आंख झपकाने तक की फुर्सत नहीं मिलती थी। अब सिर्फ यही ताकते रहते हैं कि कोई आ जाए। वकील लोग तो अपना काम चला लेंगे। हमें तो रोज कुआं खोदना है और रोज पानी पीना है। कुछ ऐसा ही टाइपिस्ट दीपक कुमार का भी कहना है। आपको बता दें कि कचहरी में कुल टाइपिस्ट की संख्या करीब क्00 है।

अब चाय कहां बनती है?

कोई भी मौसम हो। चाय की डिमांड हमेशा रहती है। जब वो कचहरी जैसे स्थान पर हो, लेकिन हड़ताल के बाद अब चाय की दुकानों से बहार गायब हो गई है। रमेश चाय वाले कहते हैं कि भाई साहब चाय बनती कहां है? मौज तो पहले थी रोज म्00-700 कप से ज्यादा चाय बना दिया करता था। बिस्किट और पकौड़ों की बिक्री अलग हो जाती थी। अब म्0 चाय भी मुश्किल से बनती है। पकौड़ों और बिस्कुट की तो बात मत कीजिए। हड़ताल वकीलों की है और सजा हमें भुगतनी पड़ रही है। कचहरी परिसर में मेरे जैसी क्ख् चाय की दुकानों की ऐसी हालत है, जिन्हें फ् से ब् लाख रुपए सालाना किराया देना है।

पान की दुकान पर सन्नाटा

मेरठ और आसपास के जिलों से कचहरी में आने वाले ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है जो पान के शौकीन न हो, लेकिन आजकल तो वहां भी सन्नाटा बिखरा हुआ है। पान की दुकान लगाने वाले लटूर सिंह की मानें तो रोज क्ख्00 रुपए तक कमाई हो जाती थी। ठीक गुजारा चल रहा था, लेकिन अब तो ये डर लगा रहता है कि कब दुकान बंद करने को आ जाए। हड़ताल के बाद तो ख्00 रुपए से फ्00 रुपए तक की कमाई होती है। कभी तो ये भी नहीं होती। ये कहानी सिर्फ लटूर सिंह की नहीं है। करीब ऐसे क्ख् और दुकानदारों की है जो इस साइड इफेक्ट के शिकार हो रहे हैं।

दो महीने से बंद हैं ढाबे

कचहरी में ढाबा रन करने वाले ओमप्रकाश आजकल बहुत दुखी हैं। उनकी दो महीने से दुकान की ही नहीं खुली है। बताते हैं कि भाई साहब लाखों रुपए में ढाबे की दुकान किराए पर ली हुई है। दो महीने से दुकान बंद है, लेकिन कोई भी सुनने को तैयार नहीं है। रोजाना भ् से 7 हजार रुपए की इनकम थी, लेकिन अब जीरो है। पता नहीं ये हड़ताल कब खत्म होगी। ये रोना सिर्फ ओमप्रकाश का ही नहीं, क्फ् ऐसे और ढाबे वालों का है।

अब पार्किंग को जगह ही जगह है

कचहरी में तो वैसे 7 गेट हैं, लेकिन पार्किंग सिर्फ चार जगहों पर होती है। इन चारों गेटों पर पार्किंग ठेका सिर्फ सुनील ठाकुर के पास है। वो कलेक्ट्रट के मेन गेट पर खड़े होते हैं। सुनील ठाकुर बताते हैं कि हड़ताल से पहले मुझे चारों गेटों से पर डे 9000 रुपए की इनकम होती थी अब वो घटकर ख्000 रुपए रह गई है। काफी परेशान हूं। 7 लाख रुपए में ठेका लिया था। सोच रहा हूं डीएम साहब से रियायत की मांग करूं। आपको बता दें कि कलेक्ट्रेट गेट पर पहले क्भ्0 बाइक और भ्0 कार आती थी, जो अब घटकर बाइक ख्0 और कार एक भी नहीं है। कचहरी गेट पर पहले कार 80 आती थी और बाइक फ्00 और अब कार की संख्या घटकर क्0 और बाइक की क्00 रह गई है। अंबेडकर गेट पर पहले ख्00 बाइक पार्क होती थी अब बामुश्किल भ्0 हो रही हैं। वहीं शनि भवन गेट पर पहले ब्0 कार और फ्भ्0 बाइक पार्क हो जाती थी जो घटकर भ् कार और क्00 बाइक रह गई हैं।

Posted By: Inextlive