अपने शुरुआती राजनीतिक दौर में 'चुप' रहने के लिए इंदिरा गांधी को 'गूंगी गुड़िया' कहा जाता था. मनमोहन सिंह तो बोले हैं हालांकि बहुत ज़्यादा नहीं. फिर भी जब वह बोले भी तो भी मुश्किल से ही सुनाई देते थे.


नरेंद्र मोदी रोज़ बोलते हैं और सबसे तेज़ बोलते हैं जैसे भीड़ को जगाने वाली आवाज़ हो. लेकिन फिर भी उनकी बात सुनाई नहीं देती- कम से कम उन लोगों को, जिनके पास उनके लिए सवाल हैं.मीडिया उनसे सवाल पूछ रहा है. अरविंद केजरीवाल ने भी उनसे कुछ सवाल पूछे हैं. 2002 के गुजरात दंगों के परिवारों के प्रभावित भी उनसे सवाल पूछ रहे हैं. उनके आलोचकों ने उनसे गहरे सवाल पूछे हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि इन सवालों के लेकर उन्होंने ख़ामोशी की दीवार बना ली है.जिस आदमी को भारत के अगले प्रधानमंत्री के रूप में देखने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है, उसके लिए यह अच्छा शगुन नहीं है. सबसे अधिक वांछित पद हासिल करने की दहलीज़ पर खड़े होकर अवर्णनीय चुप्पी ओढ़ लेने का मतलब उन लोगों को और मौक़ा देना है जो उनकी ताक में हैं.

जान बूझकर उपेक्षा


नरेंद्र मोदी की ख़ामोशी का एक स्वरूप है.वह सुशासन पर बोलते हैं. वह सरकार के 'गुजरात मॉडल' पर बोलते हैं. वह ख़ुद 'शहज़ादे' से बहुत से सवाल पूछते हैं.

यह काम वह हर रैली में करते हैं, रोज़ करते हैं और दिन में कई बार करते हैं. संभवतः बार-बार दोहराए गए उनके भाषण वापस उछलकर उनकी ओर ही लौट आते हैं और स्वाभाविक रूप से वह उन सवालों को नहीं झेल पाते जो उनकी ओर उछाले गए होते हैं.इसे लेकर उनकी प्रतिक्रिया ख़ामोशी बरतने से लेकर झुंझलाकर इंटरव्यू ख़त्म कर देने तक जाती है. अदालत के आदेश के बावजूद भी यह सवाल उनका पीछा नहीं छोड़ता.गैस की क़ीमतदो महीने पहले नरेंद्र मोदी को 'फ़ेसबुक टॉक्स लाइव' नाम के एक कार्यक्रम में शामिल होना था.इसमें अरविंद केजरीवाल, लालू यादव और कई अन्य नेता पहले ही शामिल हो चुके हैं.अंतिम समय में इसे आश्चर्यजनक ढंग से वापस ले लिया गया जबकि मोदी कैंप के लोग इसे लेकर उत्सुक थे.लेकिन उन्हें पता चला कि फ़ेसबुक यूज़र्स उनसे कई परेशान करने वाले सवाल पूछ सकते हैं जिनमें गैस क़ीमतों का विवादित मुद्दा भी शामिल है, जिसे केजरीवाल पहले भी कई बार उठा चुके हैं.केजरीवाल ने गैस की प्रस्तावित नई क़ीमतों को अदालत में चुनौती दी है.केजरीवाल का आरोप है कि गैस क़ीमतों की वृद्धि से मुकेश अंबानी के स्वामित्व वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज़ को भारी फ़ायदा होगा.

णसी में मोदी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रहे केजरीवाल ने मोदी को इस मुद्दे पर बोलने की चुनौती दी है. उनका और उनके समर्थकों का मानना है कि क्योंकि अंबानी मोदी के क़रीबी हैं इसलिए वह अंबानी के ख़िलाफ़ कुछ भी नहीं कह सकते.चुनाव ख़र्चजबसे मोदी को बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री पद का आधिकारिक उम्मीदवार घोषित किया गया है तबसे वह देश भर में उड़ान भर रहे हैं.इससे पहले हर बार नामांकन भरते वक़्त उन्होंने वैवाहिक स्थिति वाला खाना खाली छोड़ दिया था और इस बात की ओर सबका ध्यान गया.क्या वह सचमुच में शादीशुदा हैं? क्या वह अपनी पत्नी से विरक्त हैं?मोदी के विवाहित होने के ऐलान के बाद बीबीसी ने उनके भाई से बात की थी और उन्होंने साफ़ कहा था कि वह बरसों से अपनी भाभी से नहीं मिले हैं. इस ऐलान के बाद उनके उन दावे थोड़े अजीब लगते हैं कि वह इसलिए भ्रष्टाचारी नहीं हो सकते क्योंकि वह अकेले हैं.डॉक्टर माया कोडनानीमाया कोडनानी को 2002 के दंगों में उनकी भूमिका के लिए 28 साल जेल की सज़ा दी गई है.उस वक्त वह मोदी सरकार में एक महत्वपूर्ण मंत्री थीं. 2009 में गिरफ़्तारी के बाद उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया था.
उन पर दंगों में शामिल होने का आरोप लगने के बावजूद मोदी ने उन्हें अपनी सरकार में शामिल किया था. इस बारे में उनसे लगातार सवाल पूछे गए अब तक कोई जवाब नहीं मिला है.पत्रकारों पर हमलामोदी अपनी आलोचना से घृणा करते हैं.दो गुजराती पत्रकार इसकी गवाही दे सकते हैं- भरत देसाई और प्रशांत दयाल पर देशद्रोह के आरोप लगाए गए हैं.किसी जाने-माने पत्रकार के ख़िलाफ़ यह काफ़ी संगीन आरोप हैं. मोदी इस मुद्दे पर अभी तक ख़ामोश हैं.इसके अलावा भी और बहुत से सवाल हैं जो लोग मोदी से पूछते हैं और वह जवाब नहीं देते.कई बार ख़ामोशी बेशक़ीमती होती है. लेकिन कई बार ख़ामोशी को अपराध की स्वीकारोक्ति के रूप में भी लिया जा सकता है.अपनी ख़ामोशी को तोड़ना मोदी के हक़ में ही होगा.

Posted By: Subhesh Sharma