MillennialsSpeak : #RaajniTEA में रांची के युवा बोले, स्किल डेवलपमेंट से दूर होगी बेरोजगारी, पार्टियां बताएं एजेंडा
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RANCHI: सिटी के मेन रोड स्थित आईसीए एड्यु स्किल संस्थान के कैंपस में मिलेनियल्स स्पीक के तहत राजनी-टी का आयोजन किया गया. इस दौरान युवाओं ने खुलकर अपने दिल की बात कहीं. सभी इस बात पर एकमत थे कि इस बार चुनाव में बेरोजगारी का मुद्दा अहम है. सरकार ने स्किल डेवलपमेंट के लिए जितनी योजनाएं बनाई हैं, उसका कुछ हद तक फायदा तो मिला है लेकिन अभी भी बहुत कुछ होना बाकी है. हालांकि, युवा यह जरूर कहते हैं कि देश में केवल चुनाव के दौरान ही रोजगार या युवाओं से जुड़े मुद्दों पर बात होती है, चुनाव खत्म होते ही सबकुछ जैसे का तैसा ही चलने लगता है.
आदमी की काबिलियत पर जॉब मिलना चाहिए
दैनिक जागरण आईनेक्स्ट, रेडियो सिटी व सतमोला की प्रस्तुति मिलेनियल्स स्पीक राजनी.टी में रोजगार के मसले को देश का सबसे अहम मसला बताते हुए युवाओं ने स्पष्ट कहा कि मौजूदा सरकार ने जो प्रयास किया है, वह आगे भी जारी रहना चाहिए. रोजगार उपलब्ध कराने की बात अगर चुनावी मुद्दा बनता है तो सभी राजनीतिक दलों को इस पर एक व्हाइट पेपर जारी करना चाहिए, तभी युवा आगामी लोकसभा चुनाव में अपनी पसंद की पार्टी के समर्थन में वोट कर पाएंगे. चर्चा की शुरुआत करते हुए रजनीश पांडेय ने कहा कि हर राज्य में बेरोजगारी की समस्या से जुड़े कई पहलू भी हैं. जैसे, झारखंड में सरकार की ओर से जितने भी रोजगार मेले लगाए जाते हैं, उनका हश्र अच्छा नहीं होता. काफी कम युवा ही किसी कंपनी में च्वाइन करते हैं. उनकी बातों से सहमति जताते हुए तरुण ने कहा कि रोजगार का मुद्दा इतना अहम है कि इसी बिना पर सरकार की वापसी भी हो सकती है और इसी आधार पर लोग नए दल को अपना समर्थन भी दे सकते हैं. इंद्रनील रॉय का कहना था कि जो भी पार्टी सत्ता में आए, उसका एजेंडा स्पष्ट होना चाहिए. कथनी और करनी में अंतर नहीं होना चाहिए. वहीं अर्चना का कहना था कि सरकारी जॉब में रिजर्वेशन की पूरी नीति ही बदली जानी चाहिए. केवल मेरिट के आधार पर ही नौकरी मिलनी चाहिए. किसी को उसकी जाति के बदौलत नौकरी न मिले, बल्कि आदमी की काबिलियत पर जॉब मिलना चाहिए.
कड़क मुद्दा
रोजगार उपलब्ध कराने के नाम पर जितने भी शिविर या भव्य तरह के मेले आयोजित होते हैं, उनमें नौकरी का स्टैंडर्ड काफी नीचे का होता है. राजनीतिक दल चुनाव से पहले कुछ कहते हैं, जबकि चुनाव के बाद उनका सुर बदल जाता है. मेगा जॉब फेयर का आयोजन सरकार खुद करती है. इनमें नौकरी सिर्फ नाम की मिलती है, काम की नहीं. एक लाख लोगों को च्वाइनिंग लेटर मिलता है तो 4 हजार से भी कम युवा नौकरी करने जाते हैं. दरअसल, मेट्रो सिटीज की बड़ी-बड़ी कंपनियां यहां के युवाओं को सात-आठ हजार के वेतन पर नौकरी देती हैं. बड़े शहरों में इतने कम पैसों में घर चलाना असंभव हो जाता है. इसलिए युवा झारखंड से नौकरी के लिए कहीं और जाने से इनकार कर देते हैं. इससे बेरोजगारी की समस्या धरी की धरी रह जाती है. इस मुद्दे को सरकार को ही सुलझाना होगा. वेतन और काम में संतुलन होना ही चाहिए. इसे ठीक करने वाले दल को ही इस बार मेरा समर्थन रहेगा.
शिक्षा, बेरोजगारी और गरीबी, ये तीनों एक-दूसरे से जुड़े हैं. कहीं भी चले जाएं, बेरोजगारों की फौज नजर आ जाएगी. इसके लिए किसी पर दोष देना उचित नहीं है. लेकिन, पहली जिम्मेवारी सत्ताधारी पार्टी की बनती है कि वह इस उधेड़बुन से युवाओं को बाहर निकाले. पढ़ाई के बाद भी युवाओं को काम नहीं मिलना एक बड़ा चुनावी मुद्दा है. हां, जो साक्षर नहीं हैं, उनके रोजगार का मसला अलग है. लेकिन, जिन्हें सरकार स्किल्ड कर रही है, उन्हें भी अपने हुनर से रोजगार न मिले, तो सवाल उठना लाजमी है. मौजूदा सरकार ने बेशक कई काम ऐसे किए हैं, जिनके आधार पर वह जनता से दोबारा समर्थन मांग सकती है. लेकिन, देश के युवाओं के अहम सवालों को देखा जाए तो अभी उन मसलों पर बहुत काम होना बाकी है. मौजूदा सरकार ने कहा है कि 2022 तक गरीबी हटा देंगे. लेकिन अहम सवाल तो यह है कि क्या प्लानिंग है सरकार की, जिसके बूते इतना बड़ा वादा किया जा रहा है.
इंद्रनील रॉयसतमोला खाओ, कुछ भी पचाओ
चर्चा के दौरान युवाओं ने साफ कहा कि अब तक किसी भी साल दो करोड़ लोगों को नौकरी नहीं मिली है. इस तरह का वादा ही पचने वाला नहीं होता. हालांकि, आम आदमी भी सरकार की करनी और कथनी में फर्क से इतना परेशान होता है कि वह यह भूल जाता है कि राजनेता कैसा वादा कर रहे हैं, क्या यह हजम करने लायक है भी या नहीं. इसी आधार पर वोटिंग कर दी जाती है. नतीजा यह होता है कि जब दूसरे दल की सरकार बनती है, तो उसके पास भी युवाओं के लिए कोई कंक्रीट प्लान नहीं होता. इस परिपाटी को समाप्त करने के लिए युवाओं को ही सामने आना होगा. चर्चा में शामिल युवाओं ने कहा कि चीन में निर्माण उद्योग काफी आगे है. हर चीज पूरी दुनिया की जरूरत के हिसाब से बनाकर उसे एक्सपोर्ट किया जाता है. भारत में ऐसा क्यों नहीं हो सकता. अगर कोई यह कहता है कि भारत में कुशल युवाओं की कमी है, तो यह पचने वाली बात नहीं होगी.