RANCHI : सेहत के 'मंदिर' रिम्स में इन दिनों चूहों ने कोहराम मचा रखा है। एक तरफ वे मरीजों के स्वास्थ्य में विघ्न डाल रहे हैं तो दूसरी ओर हॉस्पिटल के सामानों को कुतर-कुतर कर लाखों रुपए का नुकसान भी दे डाला है। इन चूहों की 'रोग प्रतिरोधक क्षमता' इतनी मजबूत है कि वे एक साल में छह लाख का 'जहर' भी पचा गए, लेकिन बाल भी बांका नहीं हो सका है। अब इन चूहों से कैसे निपटा जाए, यह रिम्स एडमिनिस्ट्रेशन के लिए चुनौती बन गई है। लेकिन, यहां ये सवाल भी उठ रहा है कि चूहों को मारने के लिए यहां हर साल लाखों रुपए खर्च हो रहे हैं फिर भी चूहों का आतंक बरकरार है। आखिर चूहों को कौन सा जहर दिया जा रहा है जिससे उनकी मौत की बजाय जिंदगी ही बढ़ती जा रही है।

वार्ड से किचन तक आतंक

यूं तो रिम्स के पूरे कैंपस में चूहों की 'दादागिरी' चल रही है। लेकिन, सबसे ज्यादा आतंक वार्ड, स्टोर रुम और किचन में देखने को मिल रहा है। शाम ढलते ही वार्डो में चूहों की टीम निकल पड़ती है। ऐसे में मरीज इस खौफ में रहते हैं कि कहीं ये चूहे उन्हें काट न लें। इतना ही नहीं, किचन में रखे खाद्य पदार्थ भी चूहों के 'निशाने' पर होते हैं। अबतक हजारों रुपए का सामान चूहों ने कुतर -कुतरकर बर्बाद कर डाला है। स्टोर रुम भी चूहों के कोहराम से बचा नहीं है। यहां भी कई सामानों को चूहे नुकसान पहुंचा चुके हैं।

'सुरंग' बना रहे चूहे, धंस न जाएं दीवारें

चूहों का आतंक केवल वार्ड और किचन तक ही सीमित नहीं है। ये चूहे रिम्स की जमीन खोदकर सुरंग भी बना रहे है। अगर जल्द ही इसपर रोक नहीं लगाई जाती है तो ये चूहें पूरे रिम्स को ही खोखला कर डालेंगे। इतना ही नहीं हॉस्पिटल कैंपस की कई बिल्डिंग की दीवारों के धंसने की भी आशंका बढ़ती जा रही है।

साल में छह लाख, फिर भी कोई असर नहीं

पेस्ट कंट्रोल ऑफ इंडिया को रिम्स में चूहों से निपटने का काम दिया गया है। इसके लिए हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन हर महीने 50 हजार रुपए खर्च करती है। इस तरह सिर्फ चूहों को मारने पर हर साल छह लाख रुपए खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन इसका कोई असर देखने को नहीं मिल रहा है। न तो चूहे ही मर रहे हैं और न ही सामानों की बर्बादी ही रुक रही है। ऐसे में कहीं चूहों को मारने के लिए इस्तेमाल होने वाला जहरीला केक नकली है या फिर केवल कागजों पर ही चूहों को मारने का खेल चल रहा है, ऐसी आशंकाए होने लगी हैं।

Posted By: Inextlive