ब्रितानी स्कूलों में नस्लभेद के 88 हजार मामले
90 इलाक़ों से मिले आँकड़ों से 87915 नस्लवाद के मामलों का पता चला है जिसमें शारीरिक दुर्व्यवहार भी शामिल है। सेरा सोए चैरिटी संस्था शो रेसिज़म द रेड कार्ड (एसआरआरसी) से जुड़ी हैं। वे कहती हैं कि इस्लामोफोबिया यानी इस्लाम को लेकर डर जैसे पहलुओं के बढ़ते प्रभाव के कारण नस्लभेद की घटनाएँ बढ़ रही हैं। उनका कहना है कि पूर्वी यूरोपीय समुदाय के लोगों के प्रति भी नस्लभेद बढ़ रहा है।
बर्मिंघम में सबसे ज्यादा 5572 मामले सामने आए हैं जबकि लीड्स में 4690. फ्रीड्रम ऑफ इंफॉरमेशन के तहत मिले आँकड़ों के जवाब में ब्रितानी शिक्षा विभाग ने कहा है कि नस्लवाद खत्म किए जाने की जरूरत है।सरकार ने बदले निर्देश2007 से 2010 के बीच ऐसे मामले 22285 से बढ़कर 23971 हो गए। इंग्लैंड के ल्यूटन, बेडफर्ड और क्रॉएडन जैसे इलाकों में तो ऐसी घटनाओं में 40 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गई।
चैरिटी संस्था शो रेसिज़म द रेड कार्ड (एसआरआरसी) की सेरा सोए कहती हैं, “दुर्भाग्यवश नस्लभेद के दर्ज किए गए मामले तो पूरी तस्वीर का एक नमूना भर है। स्कूलों में नस्लवाद एक बड़ी समस्या है लेकिन ऐसे सारे मामले दर्ज नहीं किए जाते। कई बार तो शिक्षकों को भी पता नहीं होता क्योंकि बच्चे डर के मारे बताते ही नहीं.”
शिक्षक यूनियनों का कहना है कि छात्रों और शिक्षकों को शिक्षित करके ही इस समस्या से निपटा जा सकता है। ब्रिटेन में पूर्व सरकार ने निर्देश दिया हुआ था कि इंग्लैंड और वेल्स में स्कूलों को नस्लभेद के मामलों पर नजर रखनी होगी और ऐसे मामलों के बारे में स्थानीय प्रशासन को बताना होगा।लेकिन वर्तमान गठबंधन सरकार ने इस निर्देश को बदल दिया है और अब स्कूलों को नस्लभेद के मामले प्रशासन को बताने की जरूरत नहीं होती। गैर सरकारी संस्थाएँ और शिक्षक दोनों मानते हैं कि सरकार के नए निर्देश एक गलती है। लेकिन सरकारी शिक्षा विभाग नस्लभेद के मामले प्रशासन को न बताने के निर्देश को सही बताता है।शिक्षा विभाग के प्रवक्ता का कहना है, सरकार के बजाए शिक्षक और माता-पिता बेहतर जानते हैं कि स्कूलों में क्या हो रहा है। नस्लभेद की घटनाओं से निपटने के लिए वे बेहतर स्थिति में होते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि ऐसे मामलों से निपटने में स्कूल अपने तरीके अपनाए न कि सरकार के साथ कागजी कार्रवाई में उलझें।