RANCHI: झारखंड में पहली बार एक दल को बहुमत मिलने और उसकी बागडोर रघुवर दास के हाथ में जाने के बाद से राज्य में एक नया राजनीतिक समीकरण तैयार हो गया है। स्थानीयता को लागू कर मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अपने सभी विरोधी राजनीतिक सूरमाओं को हाशिए पर धकेल दिया है। इस कड़ी में कभी झारखंड की राजनीति में सितारे की तरह चमकने वाले सिर्फ विपक्षी खद्दरधारी ही नहीं, बल्कि सत्ताधारी दल बीजेपी नेताओं के नाम भी शामिल हैं। महज डेढ़ साल में ही लोगों की जुबान से ये नाम गायब होने लगे हैं, जिनके नामों की कभी जमकर चर्चा हुआ करती थी।

बहुमत का खेल

राजनीतिज्ञों की मानें, तो यह सब बहुमत का खेल है। दरअसल राज्य गठन के बाद से जब भी कोई सरकार सूबे में बनी उसे गठबंधन की बैसाखी का सहारा लेना ही पड़ा। पिछले डेढ़ दशक में यह पहला मौका है जब बीजेपी के पाले में पूर्ण बहुमत आया है। ऐसे में लगभग साढ़े तीन दशक से सक्रिय रूप से राजनीति कर रहे और लगातार पांचवीं बार जमशेदपुर (पूर्वी) से विधायक बने रघुवर दास को यह मौका हाथ लग गया। हालांकि वो इससे पहले भी बीजेपी और झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की गठबंधन सरकार में डिप्टी सीएम रह चुके हैं। मंत्री भी रहे हैं, लेकिन उनके डेढ़ साल के सीएम का टेन्योर सब पर भारी साबित हो रहा है।

मेन स्ट्रीम से कटे तीन बार के सीएम

झारखण्ड की राजनीति में रघुवर दास के उदय के बाद से उनकी पार्टी के भी कई जानेमाने चेहरे धीरे-धीरे गायब हो रहे हैं। नजर दौडाएं तो तीन बार राज्य के मुखिया रहे और प्रोमिनेंट ट्राइबल फेस अर्जुन मुंडा सामान्य रूप से नजर नहीं आ रहे हैं। हालांकि पार्टी की ओर से गाहे-बगाहे उनका उपयोग किया जा रहा है, लेकिन वो मेनस्ट्रीम से कटकर रह रहे हैं। यही हाल कडि़या मुंडा, सुदर्शन भगत जैसे नेताओं का भी है। इतना ही नहीं, पार्टी का लम्बे समय से झंडा ढो रहे नॉन ट्राइबल लीडर्स में धनबाद के पीएन सिंह, अभय शंकर प्रसाद, यदुनाथ पाण्डेय, दिनेशानंद गोस्वामी समेत कई नाम भी बैकफुट पर आ गए हैं। अगर गौर से ऑब्जर्व करें तो मौजूदा सरकार के मंत्रियों का भी ग्राफ गिरा ही है।

शिबू सोरेन की उम्र भी हो चली

दूसरे दलों की ओर देखें, तो झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन भी एक्टिव नहीं हैं। हालांकि उनकी उम्र भी काफी हो चुकी है। इस वजह से भी उनकी एक्टिविटी कम हो गई है, लेकिन उनकी विरासत संभाल रहे बेटे और झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन जरूर झारखंड के बड़े नेता बनकर उभरे हैं। जबकि कभी झामुमो के दिग्गज रहे साइमन मरांडी, स्टीफन मरांडी और बाद में बीजेपी का दामन थामने वाले हेमलाल मुर्मू भी अब कम ही नजर आ रहे हैं।

बाबूलाल व सहाय की घटी सक्रियता

बीजेपी से अलग होकर झारखण्ड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) बनाने वाले राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की बात करें, तो उनका कद भी काफी नहीं बढ़ पाया। हालत यह हो गई है कि उनके आठ में से छह विधायकों ने विधानसभा चुनाव के बाद ही बीजेपी का दामन थाम लिया। महज दो विधायकों के इस दल के मुखिया मरांडी कभी-कभार ही नजर आ रहे हैं। कांग्रेस खेमे की बात करें तो अपने बयानों की वजह से सुर्खियों में रहनेवाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय भी काफी दिनों से सक्रिय नहीं लग रहे हैं। कोल्हान में पार्टी के नेता बागुन सुम्ब्रोई की भी एक्टिविटी कहीं नहीं नजर आ रही। इन सबसे इतर झारखण्ड की राजनीति में दिग्गज माने जाने वाले इन्दर सिंह नामधारी ने तो एक तरह से सक्रिय राजनीति से सन्यास ही ले लिया है।

Posted By: Inextlive