बेहतर जीवन के लिए जरूरी ध्यान की शक्तिशाली प्रणाली : राजयोगी ब्रह्माकुमार निकुंजजी
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KANPUR : कहते हैं कि सूचना सबसे बड़ी ताकत है, किंतु आज के समय में आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी, इतिहास में पहले कभी भी नहीं हुआ हो, उतने व्यापक रूप से जानकारी फैलाने का कार्य कर रही है परंतु हैरत की बात यह है की सत्ता के नशे में चूर हमारे राजनीतिक नेताओं को इस बात की खबर तक नहीं है कि वर्तमान में सत्ता का स्वरूप किस कदर बदल गया है। आखिर क्या है वास्तव में सत्ता की परिभाषा? सरल भाषा में कहें तो यह मौसम की तरह है, जिसके ऊपर हम सभी आधार रखते हैं, जिसके बारे में सभी बात करते हैं किंतु बहुत से ऐसे लोग हैं जो उसे यथार्थ रीति से समझ पाते हैं। ऑक्सफोर्ड शब्दकोश के अनुसार, 'अन्य लोगों के व्यवहार को प्रभावित करने की विशिष्ट क्षमता' को पॉवर या सत्ता कहा जाता है। कुछ समय पूर्व ऐसा कहा जाता था कि मानव एक राजनीतिक प्राणी है, अर्थात् यह कि वह दूसरों पर शासन करने की आकांक्षा रखता है। राजनीति मनुष्य पर बुरा प्रभाव डालती है
उसके कुछ समय के बाद यह कहा गया कि सत्ता मनुष्य को भ्रष्ट बनाती है और पूर्ण सत्ता उसे बिल्कुल ही भ्रष्ट बना देती है। इन सारगर्भित कहावत के संयोजन से इतना अवश्य स्पष्ट होता है कि राजनीति, जो सत्ता के लिए एक खोज है, वह मनुष्य के ऊपर एक दूषित प्रभाव डालती है किंतु इसके पहले कि हम इस अवलोकन को सच समझना शुरू कर दें, हमें यह देखना होगा कि यह किस परिपे्रक्ष्य में व शासन के किस रूप में मान्य है। इतिहास के अनुसार, मध्य युग में जब स्व कल्याण की निति वाली राजाशाही का चलन था और उसके पश्चात 20वीं सदी में जब कुछ देशों में तानाशाही का प्रचलन था, उस काल के संदर्भ में उक्त अवलोकन को मोटे रूप से सच माना जा सकता है, किंतु वर्तमान समय में जबकि लोकतांत्रिक सरकारों का चलन है, वहां यह अवलोकन कितना सच हो सकता है, यह तो सोचने का विषय है। क्या आप समझाने की अनुकंपा करेंगे कि रहस्य-स्कूल का ठीक-ठीक कार्य क्या है?: ओशोअपने अस्तित्व का अनुभव करना हो हमारा उद्देश्य: साध्वी भगवती सरस्वतीप्राचीन काल में सिंहासन के लिए चालबाजी का सहारा नहीं लेना पड़ता था
इतिहास का एक निष्पक्ष अध्ययन, हमारे समक्ष यह सत्य प्रस्तुत करता है कि प्राचीन काल में राजनीति सत्ता का खेल नहीं था और न इसने अपने अस्तित्व या वैधता को बंदूक की नली या तलवार के जोर पर प्राप्त किया था और न ही यह किसी भी सामाजिक अनुबंध के आधार पर कभी आधारित रही जो लोग राजसिंहासन पर बैठते थे, उन्हें कभी भी किसी प्रकार की चालबाजी या प्रचार का सहारा नहीं लेना पड़ता था, क्योंकि उनके अंदर पहले से ही शाही और दिव्य गुण मौजूद होते हैं जो कि एक राजा या शासक की पहचान होते हैं। उस समय में राजा का चयन व उसका राज्याभिषेक किसी विशिष्ट युद्ध कला के आधार पर नहीं किया जाता था अपितु उसके निर्दोष चरित्र की शक्ति और उदार गुणों से, उसकी मनभावन प्रकृति और लोगों के साथ उसके सही तालमेल के आधार पर किया जाता था किंतु समय के परिवर्तन के साथ-साथ राज्य करने की विधि एवं शासक वर्ग के गुणों में भी विशाल परिवर्तन आ गया है। जैसे एक नदी विभिन्न चरणों के माध्यम से गुजरने के बाद, अपनी लंबी यात्रा के अंत में गंदी और प्रदूषित हो जाती है, वैसे ही आज राजनीति ने अपनी पवित्रता और सिद्धांतों को खो दिया है।राजयोगी ब्रह्माकुमार निकुंजजी