अमूमन हम सभी ऐसी कामना कभी नहीं कर सकते कि किसी की तेरहवीं यानी किसी के मौत पर शामिल होने की नौबत आये। लेकिन सीमा पाहवा की फिल्म रामप्रसाद की तेरहवीं में शामिल होने के कई कारण हैं। किसी की मृत्यु पर परिवार में क्या आडंबर बनता है और सगे संबंधियों से लेकर खुद के बच्चे किस तरह अपने ही पिता के संस्कार में शामिल होने पर क्यों सिर्फ सांसारिक लोभ में फंसे रहते हैं इसे फिल्म में बखूबी दिखाया गया है। फिल्म रिश्ते रिश्तों के पीछे मतलब और दुनियादारी को समझते हुए एक बेहतरीन नैरेटिव के साथ बनी है। फिल्म ऋषिकेश मुखर्जी और बासु चटर्जी के दौर की याद दिलाती है। पढ़ें पूरा रिव्यु

फिल्म : रामप्रसाद की तेरहवीं
कलाकार : पुष्पा जोशी, नसीरुद्दीन शाह, सुप्रिया पाठक, मनोज पाहवा, विनय पाठक, राजेंद्र गुप्ता, विनीत कुमार, कोंकणा सेन, परमब्रत, बृजेन्द्र काला, निनाद कामत, विक्रांत मेसी, दिव्या जगदाले, दीपिका अमिन, सादिया सिद्दीकी।
निर्देशक : सीमा भार्गव पाहवा
रेटिंग : 3. 5 स्टार

क्या है कहानी
फिल्म में एक संवाद है, आज सब साथ हैं, लेकिन ऐसा अकेलापन कभी महसूस नहीं किया। राम प्रसाद की तेरहवीं, वर्तमान दौर में परिवार, रिश्ते-नाते, किस तरह अब एक-दूसरे से दूर जा रहे हैं, उस पर एक बेहतरीन सटायर है। रामप्रसाद (नसीरुद्दीन शाह ) की मृत्यु हो जाती है, उनकी पत्नी अम्मा (सुप्रिया पाठक), अपने बच्चों को पिता के क्रियाकर्म के लिए बुलाती हैं। हिन्दू शास्त्र में माना गया है कि मृत्यु के बात, मृत व्यक्ति के नाम से मृत्यु के तेरहवें दिन, विधिवत कर्मकांड किया जाता है, तभी आत्मा को शान्ति मिलती है। इसी क्रम में पूरा परिवार एकत्रित होता है, लेकिन मां के गम में शामिल होने की बजाय, किस तरह लड़ाई-झगड़ा और जश्न का माहौल है, सुबह ब्रेकफास्ट से लेकर रात के डिनर तक का मेन्यू तय किया जा रहा है, इसे सटायर के रूप में दिखाया गया है। फिल्म एक शानदार कॉमेडी होते हुए, एक इमोशनल जर्नी के रूप में आगे बढ़ती है। यह फिल्म अपने आप में एक एक्सपीरियंस है। पारिवारिक मूल्यों, आपसी समझ, एक दूसरे के प्रति प्यार मोहब्बत के लिए क्या अब आज के दौर में स्थान है। यह महत्वपूर्ण सवाल उठाती है यह फिल्म।

क्या है अच्छा
अगर आप ऋषिकेश मुखर्जी और वासु चटर्जी की फिल्मों के फैन रहे हैं, तो आपको इस जमाने की यह वैसी ही फिल्म नजर आएगी।
फिल्म में बेहतरीन इमोशनल और हास्य से भरपूर न सिर्फ सिचुएशंस हैं, बल्कि संवाद भी है। फिल्म का नैरेटिव बेहतरीन हैं। एकदम रियलिस्टिक अप्रोच के साथ फिल्माई गई फिल्म है। इस फिल्म की खूबी इसके कलाकार भी हैं, सभी किरदारों को खूबसूरती से गढ़ा गया है, कोई किसी पर हावी नहीं हैं, सभी अपने पात्रों को जी रहे हैं। सीम चूंकि खुद थेयटर से रही हैं। शायद यही वजह है कि उन्होंने खूब बारीकी से काम किया है। यह इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण फिल्म मानी जानी चाहिए कि एक छोटे किरदार को भी कैसे प्ले करने का मौका दिया जा सकता है। कलाकारों के इस मेला में, सबने अपने हिस्सा खूब अच्छे से जिया है। सीमा अबतक अभिनेत्री के रूप जाती रही हैं, अब वह निर्देशन में आई हैं और क्या खूब आई हैं। फिल्म की कहानी और किरदार हमारे और आपके अपने घर से लिए गए हैं, आपको इस कहानी से जबर्दस्त कनेक्शन महसूस होगा।

क्या है बुरा
कुछ दृश्यों में खिंचाव दिखता है। कहीं कहीं थोड़ी भाषणबाजी है।अफ़सोस यह भी है कि पुष्पा जोशी जैसी शानदार अभिनेत्री की यह आखिरी फिल्म है।

अदाकारी
फिल्म की सबसे बड़ी खासियत फिल्म के कलाकार ही है। सभी अपने-अपना अंदाज़ में स्टार हैं, इतनी परफेक्ट कास्टिंग कम फिल्मों में देखने को मिलती है। मनोज पाहवा, सुप्रिया, पुष्पा जोशी, विनय पाठक, विनीत, राजेंद्र, विक्रांत, दिव्या, सादिया, कोंकणा, परमब्रत, दीपिका और जितने भी कलाकार हैं, सभी मंझे हुए हैं। यहीं वजह है कि उनका अनुभव नजर आता है। यह फिल्म कलाकारों के इस संजोग के कारण भी देखी जानी चाहिए।

Review By: अनु वर्मा

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari