Ranchi: भूकंप कई बार ऐसी खूबसूरत रचनाएं करते हैं कि उन्हें विनाशकारी कहने पर सवाल उठने लगता है. भूगर्भशास्त्री डॉ नीतिश प्रियदर्शी की मानें तो जैसे पाकिस्तान में आए भूकंप के बाद अरब सागर में नया द्वीप उभर आया है वैसे ही रांची और उसके आसपास की खूबसूरत पहाडिय़ों और जलप्रपातों का निर्माण भी भूकंप का ही नतीजा है.


900 मिलियन वर्ष पुरानी चट्टानें

डॉ नीतिश प्रियदर्शी बताते हैं कि रांची और उसके आसपास के चट्टानों की एज करीब 900 मिलियन वर्ष है। यहां पर पहाड़ों और झरनों का निर्माण भी हिमालय पर्वत के निर्माण के साथ शुरू हुआ और ये 66 मिलियन वर्ष पुराने हैं। रांची में सबसे पुरानी चट्टानें सिंहभूम जिले की हैं, जो 3500 मिलियन वर्ष पूर्व निर्मित हुई थीं। आज से 66 मिलियन वर्ष पूर्व झारखंड में काफी उथल-पुथल हो रहा था और यहां भूकंप की घटनाएं हो रही थीं। जब छोटानागपुर की पहाडिय़ां उठ रही थीं और टूट रही थीं, उस समय यहां जल प्रपातों का निर्माण हो रहा था। यह वही समय था, जब भारत का प्लेट एशिया के प्लेट से टकराया था।

जमी थी लाखों साल तक बर्फ
डॉ नीतिश बताते हैं कि हिमयुग में लाखों सालों तक झारखंड के पहाड़ों पर बर्फ पसरी हुई रही थी। जब ये बर्फ पिघलनी शुरू हुई तो समुद्र तक का जलस्तर उठ गया था और यह झारखंड के डाल्टनगंज तक पहुंचा था। झारखंड में जुरासिक काल में भूगर्भीय हलचलों की वजह से ज्वालामुखी भी फटा था और उससे निकले लावे की मिट्टी को आज भी राजमहल में देखा जा सकता है।
वहीं झारखंड में पाए जानेवाले जीवाश्म की बात करें तो यहां की कोयला खानों में 200 मिलियन वर्ष पुराने फॉसिल्स भी देखने को मिल सकते हैं।

पहली सूनामी यहीं आई!
विश्व की पहली सूनामी भी झारखंड में ही आई थी। डॉ प्रियदर्शी बताते हैं कि झारखंड में हिमयुग के साक्ष्य रामगढ़ से 20 किमी दूर मांडू के दूधी नदी के पास देखे जा सकते हैं। यहां एक खास तरह का पत्थर पाया जाता है, जिसे गोलाश्म तल कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन गोलाश्म तल के गोलाश्म की उत्पत्ति हिमनद से हुई है। यह करीब 300 मिलियन वर्ष पुराना साक्ष्य है। झारखंड में कई ऐसे स्थान हैं, जो आपदाओं के लिहाज से खतरनाक साबित हो सकते हैं। ये जगहें धनबाद और झरिया, जमशेदपुर की खरकई नदी, दामोदर नदी, रांची की हरमू नदी, रांची हिल, बरियातू हिल और हिनू नदी हैं। झारखंड के कई पर्वत अपरदित हो चुके हैं, इसलिए ये जगहें संवेदनशील हैं। इनके अलावा सुतियाम्बे पहाड़, चाईबासा की कुछ जगहें और झारखंड की कोयला खानों समेत सिंहभूम में यूरेनियम की खान भी संवेदनशील है।

Posted By: Inextlive