खेल का मैदान हो या घर का चौका एक लड़की के सामने अपने अस्तित्व को स्थापित करने के लिए कई चुनौतियाँ होती ही हैं। रश्मि रॉकेट के ट्रेलर से आपको ऐसा लग रहा होगा कि फिल्म एक स्पोर्ट्स पर्सन की फिल्म है। लेकिन हकीकत में यह सिर्फ एक खिलाड़ी की नहीं बल्कि उन तमाम लड़कियों की कहानी है जिन्हें जेंडर के नाम पर तो कभी किसी न किसी बहाने परेशान किया जाता है। लड़कों को अमूमन साज-श्रृंगार वाली लड़कियां पसंद आती हैं और कोई लड़की अगर ये न करें तो उनके लिए वह लड़कों जैसी लड़की कहलाने लगती है। जैसे बहादुरी शक्तिशाली और प्रबल होना केवल पुरुषों की जागीर हो। ऐसे में किस तरह रश्मि उन चुनौतियों से जूझती है। जानने के लिए पढ़ें पूरा रिव्यु

फिल्म : रश्मि रॉकेट
कलाकार : तापसी पन्नू, सुप्रिया पाठक, वरुण वडोला, प्रियांशु , सुप्रिया पिलगांवकर, अभिषेक बनर्जी
निर्देशक : आकर्ष खुराना
चैनल : ज़ी 5
रेटिंग : तीन स्टार

क्या है कहानी
रश्मि गुजरात के एक गांव से है। बचपन से उसे अपनी माँ का साथ मिला है। उसकी माँ अपने गांव की हर कमजोर महिलाओं की सारथि है। जाहिर है कि ऐसे में वह रश्मि को भी बहादुर बनाती हैं। रश्मि दौड़ लगाने में काफी उस्ताद है। इसलिए उसे गांव में रश्मि रॉकेट के नाम से बुलाते हैं। मोहल्ले के सारे लड़के उससे डरते हैं। वह लड़कों पर हाथ उठाने से भी नहीं हिचकती। ऐसे में जाहिर है कि लोगों को वह लड़कों वाले काम करने वाली लड़की ही नजर आती होगी। ऐसे में उसकी जिंदगी में एक प्रेमी आता है ,जो उसे और ऊँची उड़ान भरने को कहता है। गांव से निकल कर वह विश्व स्तर की खिलाड़ी बनती है। लेकिन इसी बीच कुछ सत्ता परस्त और मौका परस्त लोग उस पर ऐसे सवाल खड़े कर देते हैं कि रश्मि धप्प से गिर जाती है। ऐसे में वह कैसे एक वकील और अपने जीवन साथी की मदद से दोबारा अपने अस्तिव की लड़ाई लड़ती है। यह देखना दिलचस्प है।

क्या है अच्छा
कॉन्सेप्ट अच्छा है। कोर्ट रूम ड्रामा होते हुए भी भाषणबाजी और चीखना चिल्लाना नहीं है। एक अहम मुद्दे पर बनी सार्थक फिल्म है। कलाकारों का अभिनय अच्छा है।

क्या है बुरा
कहानी और ट्रीटमेंट बहुत सतही है। बेहद आसानी से सारी चीजें हो जाती हैं। कोर्ट रूम ड्रामा में दलीले भी बहुत स्वाभाविक हैं। उसमें थोड़े और ट्विस्ट होते तो कहानी और अच्छी होती।

अभिनय
रश्मि के किरदार में तापसी ने रंग भर दिया है। नॉन ग्लैमरस किरदार में उन्होंने जान डाल दी है। प्रियांशु एक बेहतरीन खोज हैं, हर फिल्म में वह अपनी भूमिका से हैरान कर रहे हैं। अभिषेक ने अपने अंदाज़ में बदलाव किया है और यह अच्छा बदलाव है। वरुण का काम अच्छा है। सुप्रिया के लिए खास था नहीं करने को।

वर्डिक्ट
फिल्म एक बार तो जरूर देखी जानी चाहिए।

Review by: अनु वर्मा

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari