अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो की लाली यानि रतन राजपूत बुधवार को बनारस में थी। एक टीवी शो के प्रमोशन से फुर्सत पाने पर शाम में वह पहुंची जागरण ऑफिस और यहां की ढेर सारी बातें। खुद रतन की जुबानी सुनिये उनकी कहानी

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किसी भी आर्टिस्ट के लिये हर रोल, हर करेक्टर एक चैलेंज लेकर आता है। मेरे साथ भी वैसा ही है। चाहे अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो की लाली हो या फिर महाभारत की अम्बा। स्वयंवर और बिग बॉस की रतन राजपूत। सभी जगह मैंने अपने काम को चैलेंज के रूप में लिया। हालांकि मुझे लगता है कि सबसे ज्यादा चैलेंजिंग रोल एक प्रोस्टिटूट का होता है। अगर मौका मिले उस करेक्टर को मैं भी करना चाहती हूं।

फिल्म जरूर करना चाहूंगी

आर्टिस्ट अगर एक ही तरह के रोल करे तो वह टाइप्ड हो जाता है। इसलिये बदलाव जरूरी है। हां, ये बदलाव दर्शकों को पसंद आएगा या नहीं इसका बहुत खयाल रखना पड़ता है। सबकुछ सोचने के बावजूद हम कलाकारों के हाथ में कुछ नहीं होता। ऐसा नहीं है कि मैं फिल्मों में काम नहीं करना चाहती हूं। मैं भी करना चाहती हूं मगर शायद अभी सही वक्त नहीं आया है।

बदली है दर्शकों की पसंद

पुराने जमाने और नये जमाने में बदलाव की बात करुं तो मुझ पर्सनली लगता है कि आज दर्शक रिएलिटी को ज्यादा पसंद कर रहे हैं। कई ऐसे शो हैं जिसमें नायिका लिपिस्टिक और मेकअप करके नहीं सोती। शूटिंग भव्य सेट्स पर नहीं होती बल्कि आम घरों में होती है। लोग ऐसे शोज पसंद भी कर रहे हैं। वास्तव में आज टीवी पर वहीं दिखाया जा रहा है जो दर्शक पसंद कर रहे हैं। जो टीवी सीरियल्स खींच रहे हैं, उनके पीछे भी दर्शकों की पसंद ही है।

निगेटिव रोल में भी संदेश

इंटरटेन्मेंट व‌र्ल्ड में सब कुछ पॉजिटिव ही मैसेज नहीं देता। निगेटिव चीजें भी संदेश देती हैं। एक शो में मैं वैम्पायर हूं। मुझे लगता है कि मेरा ये रोल भी मैसेज देगा कि ऐसा नहीं बनो। अब देखना ये है कि दर्शक क्या पसंद करते हैं। दर्शकों की पसंद नापसंद ही आर्टिस्ट का फ्यूचर तय करता है।

आज भी आम लड़की हूं

ग्लैमर की दुनिया में मैं अब आई हूं लेकिन मैं खुद को जमीन से जुड़ा हुआ ही मानती हूं। मैं आज भी पटना की एक आम लड़कियों जैसी हूं। हां, लोगों का मेरे प्रति नजरिया बदल गया है। वो मुझे आम नहीं मानते तो फिर मैं क्या करुं। आज के लड़कियों से मैं ये कहना चाहूंगी कि आप किसी की हेल्प पर निर्भर न हो। जो करना है खुद करें। और पैरेंट्स से भी कहना चाहूंगी कि बेटी को आगे बढ़ने दे। उन्हें बोझ ना समझें।

जोडि़यां ऊपर ही बनती हैं

लोग अक्सर मुझसे पूछते हैं कि शादी कब कर रही हूं। हमेशा बुजुर्गो से सुनती आई हूं कि जोडि़यां ऊपर बनती हैं। मुझे भी इस बात पर यकीन हो गया है। ये हकीकत नहीं होती तो स्वयंवर की मेरी सगाई ना टूटती। इस सगाई का टूटना बिलकुल वैसा ही है जैसे हमारे आस-पड़ोस के घरों में किसी की सगाई टूटना। मैं तो सिर्फ इतना चाहती हूं कि मुझे ऐसा पति मिले जो मुझे झेल सके।

Posted By: Inextlive