देश में उद्योगों को प्रोत्‍साहित किए जाने को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने एक बड़ा बयान दिया है। उनका कहना है कि किसी उद्योग को खत्‍म करना हो तो बस उसे प्रोत्‍साहित करना यानि कि छूट देना शुरू कर दिया जाए वह अपने आप खत्‍म हो जाएगा। उद्योग विशेष को रियायत देने की नीति का उन्‍होंने खुलकर विरोध किया। उनके मुताबिक नीतिनिर्माताओं को इस दिशा में ध्‍यान देने की जरूरत है।


खोखली नीतिभारतीय रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन ने उद्योग विशेष को रियायत देने की नीतियों पर अपनी राय व्यक्त की है। उनका कहना है कि यह बेहद खोखली नीति है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि आज के दौर में किसी उद्योग को प्रोत्साहित करने का प्लान उसे खत्म करने का इंतजाम जैसा है। इसके साथ ही उन्होंने सरकार से कुछ करने की बार बार की रट की भी आलोचना की। उनके मुताबिक इस दिशा में नीतिनिर्माताओं को विशेष ध्यान देने की जरूरत है। एक नीति निर्माताओं का मुख्य काम कारोबार गतिविधियों को अनुकूल बनाना न कि इसकी दिशा तय करना है। आज के हालातो से साफ है कि विकसित अर्थव्यवस्थाएं मांग को प्रोत्साहित करने के लिए आक्रामक मौद्रिक नीतियों के जरिए भारत जैसी उभरती बाजार व्यवस्थओं के रास्तों में बाधा बन रही हैं। उनके रास्ते कठोर कर रही हैं। मेहनत की जरूरत


इतना ही नहीं विकसित अर्थव्यवस्थाओं के और अधिक प्रतिस्पर्धी होने से भारत को इसके लिए और ज्यादा मेहनत की जरूरत है। इसके अलावा चीन के मूल्य श्रृंखला में आगे बढ़ने के बीच देश के भीतर और काम करने की जरूरत है। हालांकि इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि भारत अकेला देश नहीं है जो निर्यात में नरमी से जूझ रहा है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इस दिशा में बस यहीं सोचकर कदम रोक लिए जाए। आज उद्योग संगठन है कि सरकार से कुछ करने की मांग करने और इसमें भी रपए की विनियम दर में कमी की मांग किये बिना रह नहीं पाते हैं। उनका कहना है कि भारत के लिए आदर्श विनिमय दर है वह है जो न यह बहुत मजबूत हो न कमजोर लेकिन यह ‘आदर्श दर’ है जो बाजार तत्व ही पैदा करते हैं।’नवोन्मेष के जरिए

इसके साथ ही उनका कहना है कि आरबीआई दीर्घकालिक पूंजी प्रवाह पर ध्यान केंद्रित करता है और केवल अन्य मुद्राओं के मुकाबले रपए की चाल को ठीक रखने के लिए इंटरफेयर करता है। ऐसे मे साफ है कि व्यवस्थित बाजार सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। अच्छे वक्त में हमें अल्पकालिक विदेशी मुद्रा वाले रिण के लिए बाजार को बहुत अधिक खोलने होने से बचाना होगा। इस दौरान उन्होंने उदाहरण भी दिया कि उत्पादकता भी महत्वपूर्ण है। अमीर देशो की कंपनियां खास तौर से नवोन्मेष के जरिए उत्पादकता बढ़ा सकती है। जबकि भारत में स्िथतियां उल्टी हैं। यहां पर कंपनियां उत्पादकता सिर्फ फैक्ट्री से रेलमार्ग तक बेहतर सड़क बना कर सरलता से बढ़ सकती है।

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Posted By: Shweta Mishra