10 घंटे-सड़क पर

510 किमी-सफर

-कानपुर जूं में पहुंचा मेरठ में तीन दिन तक आतंक का पर्याय बना तेंदुआ

-स्क्रीजर में ट्रीटमेंट दे रहे डॉक्टर, घाव ठीक होने तक रहेगा निगरानी में

आई फालोअप

अखिल कुमार

Meerut : मेरठ में पकड़े गए तेंदुए ने कानपुर जूलॉजिकल पार्क में शुक्रवार दूसरे दिन भी कुछ नहीं खाया, पानी जमकर पिया है। हालांकि वेटनेरियन डॉ। आरके सिंह के निर्देशन में एक टीम तेंदुए का चिकित्सीय परीक्षण कर रही है। स्क्रीजर में उसका इलाज चल रहा है। जख्मी तेंदुए को जंगल में छोड़ना है या जू में रखना है, यह उसकी फिजिकल कंडीशन पर डिपेन्ड करेगा।

10 घंटे सफर कर पहुंचा कानपुर

मंगलवार प्रात: मेरठ के मिलिट्री हॉस्पीटल में देखे गए तेंदुए को 52 घंटे बाद रेस्क्यू ऑपरेशन चलाकर पिंजरे में कैद किया जा सका। इस बीच तेंदुए ने छह मजदूरों समेत कानपुर जू के वेटनेरियन डॉ। आरके सिंह को घायल कर दिया था। मिलिट्री कैंपस से रेस्क्यू के बाद कानपुर जू की टीम ने तेंदुए को लेकर परतापुर स्थित संजय वन पहुंची। टीम ने यहां ट्रैंकुलाइज्ड तेंदुए का रिवर्सल किया। करीब शाम चार बजे रवाना हुई टीम आगरा के रास्ते से 10 घंटे का सफर तेंदुए के साथ कानपुर जूलॉजिकल पार्क पहुंची।

नहीं खाया खाना

डॉ। आरके सिंह ने बताया कि तेंदुए को आगरा में खाने के लिए 4 किग्रा मीट लेकर डाला किंतु उसने नहीं खाया। जू में भी उसे रात में और सुबह खाने के लिए मीट दिया, उसने नहीं खाया। हां, पानी वो खूब पी रहा है। डॉ। सिंह ने बताया कि ट्रांसपोर्टेशन की स्थिति में वाइल्ड एनीमल तीन-चार दिन के लिए खाना छोड़ देते हैं। बाद में एडजस्ट होते हैं तो खाना शुरू कर देते हैं। जू में तेंदुए को शुक्रवार सुबह नहलाया भी गया है।

हो रहा इलाज

डॉ। सिंह ने बताया कि तेंदुए का इलाज चल रहा है। उसके आगे के दाएं पैर में गहरा घाव है, घाव की हीलिंग के लिए उसे एमाक्सीरम (एंटीबायोटिक) इंजेक्शन दिया जा रहा है। तेंदुआ अभी स्क्रीजर में रखा गया है। स्क्रीजर एक ऐसा पिंजरा है, जिसे आवश्यकता के हिसाब से छोटा-बड़ा किया जा सकता है। बता दें कि पैर में गहरे घाव की वजह से तेंदुआ शिकार में असमर्थ था और आसान शिकार की तलाश में आबादी की ओर आ गया था।

पार्क में हो गए 11 तेंदुए

नर तेंदुए के पहुंच जाने से कानपुर जूलॉजिकल पार्क में अब 11 तेंदुए हो गए हैं जिसमें से पांच मादा और छह नर हैं। डॉ। सिंह ने बताया कि हीलिंग न होने तक तेंदुए को स्क्रीजर में ही रखा जाएगा। संभावनाएं कम हैं, किंतु फिर भी देखा जाएगा यदि तेंदुआ शिकार करने में सक्षम होता है तो उसे जंगल में छोड़ेंगे। उन्होंने बताया कि घायल तेंदुए को जंगल में छोड़ना खतरे से खाली नहीं है, कभी-कभी ये आदमखोर भी हो जाते हैं।

जू की एक टीम तेंदुए की लगातार निगरानी कर रही है। घायल तेंदुए का इलाज चला है और उसकी स्थिति में सुधार है।

डॉ। आरके सिंह, वेटनेरियन, कानपुर जूलॉजिकल पार्क

Posted By: Inextlive